सड़क सुनसान और मौसम सुहावना था।मैं निर्विकार भाव सेआगे बढ़ रही थी, तभी सड़क पर एक कीड़ा (गोबर का कीड़ा गौबरैला) रेंगता हुआ नजर आया। वह अपने से बड़ा मिट्टी और गोबर के गोले को ढ़केलता हुआ आगे बढ़ रहा था। मेरे कदम उसकी चाल पर रुक गए। उसे देखकर मुझे यह सीख मिली….
"मेहनतकश जीव अपने जीने का मार्ग स्वयं प्रशस्त कर लेते है।"
जमाने से…
सीखना चाहिए,
समझना चाहिए,
पर….
अपना रास्ता
स्वयं बनाना चाहिए।।
शब्द एवं चित्र
रेणुका श्रीवास्तव
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