जिंदगानी कहते है (कविता)

जिंदगानी कहते हैं... (कविता)

मुट्ठी में बंद संकुचित 
विचारों को,
दिल खोल कर 
जीने को ही....
जिंदगानी कहते है।

ग़म व खुशी के 
मोतियों को,
एक तार में 
पिरोने को ही...
जिंदगानी कहते है।

सूरज की तपती-
जलती गर्मी में,
चांद की शीतलता 
सी एहसास को ही...
जिंदगानी कहते है।

सिकुड़ी सिमटी 
अधखिली कलियों को,
फूल बन कर 
खिलने को ही...
जिंदगानी कहते है।

कल-कल बहती 
नदियों की धारा को,
सागर में विलीन 
हो जाने को ही...
जिंदगानी कहते है।

अंधेरे में गुम 
होती जिंदगी को,
उजाले की रोशनी में 
खींचने को ही...
जिंदगानी कहते है।

मील का पत्थर 
न बन जाए जिंदगी,
ऐसे रुमानियत से 
खुशी चुराने को ही...
जिंदगानी कहते है।

उलझी हुई नकारात्मक 
गुत्थी के धागों को,
एक एक करके दिल 
से सुलझाने को ही...
जिंदगानी कहते है।

बेचैनी और बेकरारी 
के आलम को,
बेफिक्री के धुंए 
में उड़ानें को ही...
जिंदगानी कहते है।
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शब्द एवं चित्र
रेणुका श्रीवास्तव 
https://www.facebook.com/PhulkariRenuka/

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