कविता

तुम जा रहे थे (कविता)

ये वो आखिरी पल था
हमारे तुम्हारे विछोह का
तुम जा रहे थे
मैं अपलक निहार रही थी
तुम चले गये 
मैं देखती रह गई
फिर न मिलोगे 
जानती थी मैं
मन में घुमड़ती जज्बातों को
दिल में छुपाये थी।
प्यार के दो लब्ज 
सीखे थे तुम्हें देखकर
तुम्हें बता नहीं सकीं
जग जान न पाई
मेरे मूक प्रेम की
अजब दास्तां बन गई
वो तड़प, वो कसक
वो आहें, वो सांसें।
कसमसाती है
आज भी धड़कनों में मेरी
दर्द का ले सहारा 
यादों को ढ़ो रही हूँ
हँसती हूँ, रोती हूँ 
फिर भी जिएं जाती हूँ
ये मूक समर्पण 
अभिलाषा थी मेरी  
तहें दिल से तुम ही 
मुझको बहुत प्रिय थे
अक्षुण्य प्रेम में लिपटी
मैं समर्पित थी तुम पर
पर अब सारी जिंदगी यूं ही
मैं अजनबी रहूंगी तुम्हारे लिए
पर मैं कल भी तुम्हारी थी 
आज भी तुम्हारी हूँ
आगे भी तुम्हारी ही रहूंगी।।।।।

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