मेरी बगिया में
एक गुड़हल का पेड़ है
खिलते हैं जिस पर
ढ़ेरों सुंदर लाल फूल
मैं सींचती, गुड़ाई करती
और मंद-मंद मुस्कुराती
अब यह पेड़ बन गई है
बुलबुल के जोड़े का नया बसेरा
दोनों बुलबुल तिनका लाते
चुन-चुनकर, नीड़ बनाते
मैं सोचती,
सिखलाया किस कारीगर ने
इन्हें नीड़ का तानाबाना बुनना
नीड़ बन गई सुंदर
नन्हीं बुलबुल अण्डे देकर
माँ की पदवी पाई
अण्डों को सुरक्षित रखने में
माँ के ममत्व के धैर्य-सौम्य परिश्रम का
अनुभव लगा बहुत सुहाना
कुछ दिनों बाद ही
गूँजने लगी नीड़ में
चींचीं-चूंचूं की आवाज
मैं सतर्क हो देखती
बुलबुल को नहीं डराती
दोनों बुलबुल दाना लाते बार-बार
दोनों के आहट पर, बच्चों का चूंचूं कर
मुंह खोलना और फड़काना
फिर बुलबुलों का
चोंच से चोंच में दाना डालना
और मचलना
लगता अद्भुत नजारा
मैं अपने बच्चों संग
खिड़की से उन्हें निहारती
बुलबुलों के वात्सल्य प्रेम से जनित
जीवन के जीवंत मनोहर दृश्यों का
पल-पल लेती सुखद अनुभूति।।।
1 टिप्पणी:
bahut hi sunder
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