पहली बार माँ मुझे ले गोद में
स्निंग्ध मुस्कान से मुस्कुराई थी।
मिला स्नेहिल आंचल का छांव
पुलकित हो अंग फड़कने लगा।
मां ने प्यार से चूमकर दुलाराया
खिल-खिल कर मैं खिलखिलाया।
अमृत सदृश दुग्ध पान किया
सुखद अनुभूति से संतृप्त हुआ।
सेवा टहल कर मेरा रुप संवारा
खुशी से इठलाने व झूमने लगा।
मां के करकमलों से मिला निवाला
प्रेम के बशीभूत हो तृप्त हो गया।
डगमग-डगमग पांव लड़खड़ाएं
अंगुलियों का मिला सबल सहारा।
शैतानियों पर जब वे हुंकार भरती
मैं भी क्रोधित हो आंखें तरेरता।
मां छड़ी उठाकर जब भी धमकाती
मेरे झरझर आंसू झट बहने लगता।
मां के अति प्रेम ने जीवन संवारा
उन्नति पथ पर मैं अग्रसर होने लगा।
मां सौ-सौ बलैया लेती रही मेरी
मैं गदगद हो उन्हें निहारता रहा।
मेरी शादी करके निढ़ाल हुई वे
जीवन संगनी पा मैं इतराने लगा।
मेरे बीवी-बच्चों में मगन हो गयी
घर खुशियों भरा संसार कहलाया।
मां दिनचर्या में अपनी मगन रही
मैं लाठी बन उनका सहारा बना।
मां अचानक चिरनिंद्रा में सो गयी
अश्रुपूरित श्रद्धासुमन अर्पित किया।
वे नहीं,पर स्नेहसिंचित आशीर्वाद ही अब
मेरे घर के खुशियों का सबल सहारा है।।।
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