जागरूक महिला (लघुकथा)

कई दिनों से काम वाली राधा जब काम करने नहीं आई तो प्रमिला को चिंता हुई। राधा कालोनी में आसपास के किसी और के घर काम भी नहीं करती थी, उसके पास मोबाइल भी नहीं था और वह इस तरह कभी बैठती भी नहीं थी, अतः प्रमिला को उसका राह देखते हुए जब कई दिन बीत गये, तब उनका मन अनिष्ट की आकांक्षा में बेचैन होने लगा। एकदिन घर में ताला डालकर मन ही मन राधा की सलामती की कामना करते हुए वह उसके घर की तरफ पहली बार चल दी। 
प्रमिला झोपडिय़ों के बीच राधा का घर ढ़ूढ़ती फिर रही थी कि उसे राधा के बच्चे खेलते हुए मैंदान में मिल गये। जब उसने उनसे राधा के बारे में प्रश्न किया तो वे अंगुली से अपने झोपड़ी की तरफ इशारा करते हुए बोले," माँ की तबीयत ठीक नहीं है। वे झोपड़ी में लेटी है।"
तेज कदमों से चलती हुई प्रमिला जब झोपड़ी के मुहाने पर पहुंची तो उसे अंदर से किसी के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी। वह तेजी से अंदर गई तो देखती है राधा लेटी हुई दर्द से कराह रही है। वह सीधे राधा के सिधाने पहुंच कर उसके बालों में हाथ फिराती हुई बोली," अरे राधा, तुझे अचानक क्या हो गया है? तुझे तो तेज बुखार भी है। किसी डॉक्टर को दिखाया क्यों नहीं? चल मैं तुझे डॉक्टर को दिखाकर दवा दिलाती हूँ।"
" अरे ऑंटी, जो होना था, वह तो हो गया। मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगी। मैंने अपने पति से आपके घर खबर भिजवाई थी। ये मुआं पति लोग ऐसे ही लापरवाह होते है, पत्नी की बातों को महत्व देते ही नहीं है। खैर आप बैठिए तो सही।" अपने को उठाती हुई राधा सामने की तरफ रखी एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए बोली।
"अरे रे रे, तुम उठों नहीं, लेटे लेटे ही बात करो। मैं यहां बैठ जाती हूँ।" प्रमिला कुर्सी खींचकर राधा के खाट के पास बैठ गई।
राधा ने प्रमिला को बताया कि वह अपने पति की नजरों में बच्चा पैदा करने वाली मशीन बनकर रह गई थी। उसे उसके स्वास्थ्य से कोई मतलब नहीं था। जब भी वह उससे कुछ कहती, तो वह ध्यान नहीं देता। मैं भी आगे कदम न बढ़ा पाने के कारण बच्चा पैदा करती रही। सोचते सोचते तीन बच्चे हो गए। एक मुन्ना, दो मुनिया। पिछली बार जब फँस गई, तो अपनी सहेली के साथ अस्पताल पहुंच गई। एबॉर्शन वाले दिन मुआं मेरे साथ गया, बोला,"पत्नी का एबॉर्शन हो और पति साथ न हो तो लोग क्या कहेंगे।"  पति की इस ढ़िठाई ने मुझे आहत कर दिया। मैं मन ही मन निश्चय कर ली थी अब बच्चा पैदा नहीं करुंगी। मैंने थोंड़ा प्रयास किया, पर सफल नहीं हो पाई, इसलिए इस बार जब फिर फँस गई और पति के टालमटोल में दिन बीतने लगा तो मैं एकदिन जिंद करके पति के पीछे पड़ गई और अस्पताल जाकर सफाई के साथ ही साथ ऑपरेशन भी करा ली। तकलीफ तो बहुत हुई, पर खुशी इस बात की है कि अब मैं बच्चा पैदा करने वाली मशीन नहीं हूँ। अब मैं भी स्वस्थ रहकर अपने और अपने बच्चों के लिए कुछ काम कर सकुंगी।"
राधा की आपबीती सुनकर प्रमिला की आँखों में आँसू आ गये। उसे आज की नारी जागरूकता पर गर्व हुआ। वह सोचने लगी,'काश, वह भी राधा की तरह निर्भिक होती, तो वह भी ज्यादा बच्चा पैदा करने की मशीन बनके इस तरह कमजोर और अशक्त न होती।'  प्रमिला अपने आँसू पोछकर राधा से बोली," सुन राधा, तू पूरी तरह आराम कर और अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान दे। मैं अभी आती हूँ।" यह कहकर प्रमिला वहां से निकल गई।
कुछ देर में प्रमिला जब राधा के झोपड़ी में आई तो उनके हाथ में फलों और मेवों के साथ दवा और टॉनिक की शीशी भी थी। वे राधा से बोली,"अब तू काम पर तभी आयेगी, जब पूरी तरह स्वस्थ हो जायेगी। मैं फिर आऊंगी, तेरा हालचाल लेने।"
अपने घर की तरफ कदम बढ़ाती हुई प्रमिला खुश थी कि आज की महिला वैसी कमजोर नहीं है, जैसी उसके जमाने में उसकी तरह थी।


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