परिवार संग गोवा में की शानदार मस्ती (यायावरी)
देश-विदेश के पर्यटकों के लिए प्रसिद्ध शानदार गोमांतक भूमि अर्थात गोवा सबके दिलों में बसने व आकर्षित करने वाला दर्शनीय स्थल (अल्टीमेट डेस्टिनेशन) है। यहां की खूबसूरती आँखों को सुकून देती है, तो यहाँ के सागर की लहरें मन में चंचलता भरती है। तभी तो इसकी सुंदरता में रचने और आनंदित होने के लिए लोग दूर-दूर से आते है और यहाँ से सुकून भरी-शांतिपूर्ण लाइफस्टाइल का मजा लेते हुए तरोताजा होकर और यहाँ की यादों को दिल में बसाकर लौटते है। अब यहां के खूबसूरती में एक नया आयाम जोड़ा गया है वह है इको टूरिज्म। यह कुदरती पर्यटन स्थल है अर्थात कुदरत ने इसे हमें जैसा नवाजा है, हम वैसी ही सुंदरता यहां पाते है। इसलिए जो कभी गोवा नहीं आया, वह आना चाहता है और जो एक बार आ गया, वह बार-बार आने को उत्सुक रहता है। यहां की मूल भाषा कोंकणी है।
गोवा जाने का हमारा पहला अनुभव बहुत उत्साहवर्धक और सुखद अनुभूतियों से पूर्ण था। हम लोग लखनऊ से दिल्ली गये फिर वहाँ से राजधानी ट्रेन से गोवा के लिए रवाना हुए। ट्रेन का सफर बहुत ही ज्यादा उत्साहवर्धक था, क्योंकि हम रास्ते का पूरा लुफ्त उठाते हुए जा रहे थे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के स्टेशनों और दर्शनीय साइड सीनों को पार करते हुए हम गोवा पहुंचे।
गोवा में दिन-रात कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। अब बार -बार जाने की इच्छा बलवती होती है। आइए आपको गोवा की खूबसूरती का दर्शन कराते है...जिससे आप भी इच्छुक होंगे और मौका मिलने पर गोवा जरुर जायेंगे------
नार्थ गोवा के बीच पर की मस्ती---नार्थ गोवा के होटल में विश्राम करने के पश्चात हम पणजी बस स्टेशन पहुँचे। वहां की सड़कों पर टहलते हुए वहां का नजारा और शिंगमोहत्सव त्यौहार के पोस्टर और झाँकियां देखने को मिली। इसके बाद हम कोयम्बटूर बीच गये। यहां के समुंद्र की लहरों के बीच हम लोगों ने खूब उधमबाजी, उछलकूद और मस्ती किए।
दूसरे दिन हम जल्दी ही निकल गये। कोकोबीच पर स्टीमर से लहरों पर सैर को निकल पड़े। नाव के हिचकोलों से हमारी सांसें अटकने लगी, पर जब हमें डार्फिन मछली के दर्शन होने लगा तो हम इतने उत्तेजित हो गए हमारा डर अपने आप रोमांचकारी उत्सुकता में बदल गया। अब हम निडर होकर लहरों पर सैर का मजा लेने लगे।
हम अगोंडा फोर्ट, सेंट्रल जेल, जिमी पैलेस, लाइट हाउस देखे। इसके बाद हम कलंगूट बीच (क्वीन ऑफ गोयन बीच) आरमबोल बीच और मोजिम बीच गये। हम लोग लहरों के बीच खूब लोटपोट कर लहरों के विशाल झोंकों का आनंद उठाते रहे।
क्रूज पर बितायी शाम---- शाम का समय हमनें क्रूज पर बिताया। यहां हमें गीत-संगीत के मधुर स्वर के साथ सबके डांस का मजा मिला। हमारे बच्चे भी डांस और संगीत में शामिल होकर मजा लिए।
साउथ गोवा----- नार्थ गोवा घुमने के बाद हम लोग साउथ गोवा के लिए रवाना हो गए। हम कार्बो फोर्ट (राजभवन), सेंट जेवियर्स चर्च, म्यूजियम, श्री मंगुएश मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, बाला कुंडी गवल मंदिर, अवर लेडी ऑफ रोजरी चर्च,सेंडोरस चर्च देखते हुए हम दूध सागर गये।
भगवान महावीर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी---- इसे पहले मोलेम नेशनल पार्क कहा जाता था। पणजी से यह 60 किमी दूर पणजी-बेलगाम हाईवे पर यह वन्यजीव अभयारण्य 107 वर्ग किमी इलाके में फैला है। यहां उँचे पहाड़ भी है और गहरी घाटियां भी। यहां के पक्षी मन को भाते है। यहां पक्षियों और जंगली जानवरों को बहुत करीब से देखने को मिलता है। यहां से एक घंटे की दूरी पर दूघसागर है।
बोन्डला वन्यजीव अभयारण्य----पणजी से 52 किमी और मडगांव से 36 किमी की दूरी पर बना जंगल बोन्डला वन्यजीव अभयारण्य है। यहां चिड़ियाघर और बोटोनिकल गार्डन भी है। सरकार की तरफ से यहां परिवार के रहने का बेहतरीन कॉटेज भी है। यहां देखने लायक अन्य चीजें डीयर सफारी पार्क, बर्ड लाइफ पार्क, नेचर एजुकेशन सेंटर, रोज गार्डेन भी है।
कोतिगांव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी----दक्षिण गोवा का यह पर्यटक स्थल पणजी से 76 किमी की दूरी पर बना है। यही पर सालिम अली बर्ड सेंचुरी तो पूरी दुनिया में जानी जाती है। यह गोवा की प्रख्यात मांडवी नदी के किनारे फैली है। यहां पक्षियों के विविध किस्में देखने पूरे सालभर पर्यटक आते है।
स्पाइस फार्म----कोई भी देसी हो या विदेशी पर्यटक यहां के स्थानीय फूड खाये बिना बिना उसकी यात्रा अधुरी मानी जाती है। दुनिया भर में मशहूर यहां के खाने का असली जायका तो यहां के मसालों में है। यही कारण है गोवा के इको टूरिज्म में स्पाइस प्लांटेशन भी प्रमुख रुप से शामिल है। गोवा के हर्बल गार्डंस पर्यटकों को आकर्षित करते है पार्वती-माधव पार्क प्लान्टेशन केरी नामक गांव में बसा है, जहां ढ़ेर सारे हर्बल कल्टीवेशन किया गया है। ऑर्गेनिक फार्मिंग के अतिरिक्त यहां पर पर्यटको को ठेठ गोवन लजीज खाना भी खिलाया जाता है। इसके अतिरिक्त वालपई गांव के पास रस्टिक प्लांटेशन फलों के बगीचों के लिए विशेष रूप से देखने के लिए उपयुक्त है।
स्पाइस फार्म्स में प्रसिद्ध है पास्कल ऑर्गेनिक स्पाइस विलेज। गोवा की मशहूर खांडेपार नदी के नाम पर एक गांव है खांडेपार। इसी नदी के किनारे पास्कल स्पाइस फार्म स्थित है। यहां पहुंचने के लिए फोंडा शहर से आठ किमी अंदर जाना पड़ता है। मिलग्रीस फर्नांडिस और उनकी पत्नी एमिशिएना के प्रकृति प्रेम ने ही उन्हें पास्कल स्पाइस फार्म का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। 1992 में इन्हें गोवा सरकार का सर्वश्रेष्ठ किसान का पुरस्कार मिल चुका है । 1998 में यह एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीत चुका है। यहां के गेट पर हाथी की सवारी का मजा ले सकते है। खांडेपार नदी में राफ्टिंग का अनुभव भी लिया जा सकता है। मेहमानों के खातिरदारी के लिए गोवन संगीत और नृत्य से सजी महफिल मदमस्त कर देती है। प्रकृति के असाधारण खूबसूरती से सराबोर वातावरण में जब इतनी शानदार मेहमाननवाजी हो , तो क्या कहने। यहां जंगल के बीचोबीच बने रेस्तरां में बैठकर गोवन फूड जैसे--झींगा, लॉबस्टर क्रेब (केकड़ा) सोलकढी का मजा लेना अनोखा अनुभव है। स्थानीय फूड में सीफूड के अतिरिक्त शाकाहारी व कॉर्टिनेटल व्यंजन भी परोसे जाते है। रुकने के लिए खूबसूरत कॉटेज भी है। कई कॉटेज ठीक नदी के सामने है जहां फिशिंग, बोटिंग, स्वीमिंग जैसी सारी मौज-मस्ती उपलब्ध है। दूधसागर का बहता पानी आगे जाकर खांडेपार नदी में मिल जाता है, तभी तो वह इस नदी की सुंदरता में भी चार चाँद लगा जाता है। चारों ओर सुगंध फैलाने वाले खिले फूल, खिले हुए कमल, औषधि वनस्पतियां सबका मिला जुला असर दिवाना बना देती है। लौंग, इलायची, काली मिर्च, जायफल, हींग, हल्दी जैसे पारम्परिक मसाले तो है ही, साथ में है केसर, वैनिला और एलोवेरा जैसी खोजी औषधियां और बांस, तुलसी, नीम, लेमनग्रास जैसे पेड़-पौधे यहां पर भरपूर है। लोकप्रिय विदेशी फूल-एंथूरियम,ऑर्किड, जरबेरा, बोगनबेलिया, एक्झोरा कयी तरह के फर्न, हेलिकोर्निया, पेंडुलम वगैरह यहां की प्रकृति में रंग भरते है।
दूधसागर फॉल्स---
गोवा से केवल किमी की दूरी पर कुदरती वाटर-फॉल्स दूधसागर है। यहां हमें वन विभाग की गाड़ी और लाइफ जैकेट लेना पड़ा। जंगल के बीहड़ रास्तों से गुजरते हुए हम फॉल्स के पास पहुंचे। गाड़ी छोड़ने के बाद हम उँची-नीची फिसलने वाली चट्टानों पर पांव बढ़ाते हुए हम फॉल्स के पास पहुंचे। आगे चट्टानों को बेधती हुई पानी की लहरें कलकल करके बह रही थी। हम आह्लादित होकर पानी के पास एक चट्टान पर बैठ गये और पैर पानी के सुपुर्द कर दिए। अब पानी अपने रफ्तार से हमारे पैरों को भी बेंध रही थी। ठंड़े पानी में भीगते हुए ठंड़ी का पूरा एहसास और सिरहन हो रही थी। बेटी बार-बार आगे न बढ़ने की हिदायत दे रही थी। जिसके प्रत्युत्तर में मेरे पति बोले,"यहां कोई ड़ूबेगा नहीं।" तब बेटी बोली," जो चट्टान हमें रोकेंगे, वही हमें चोट भी तो पहुंचा सकते है।" ठीक उसी समय एक महिला फिसल गई। हम घबड़ाकर उसे देखने लगे। तभी वह स्वयं ही सम्भल गई और फिर परिवार वालों ने उसे उपर खिंच लिया।
स्वप्नगंधा जंगल में कोलारघाट में स्थित दूधसागर वाटरफॉल्स गोवा-कर्नाटक सीमा पर स्थित है। उंचाई में यह प्रपात भारत में पांचवे नंबर पर है। अति उँचाई से बड़े वेग से गिरता पानी दूध के समान सफेद दिखता है, तभी इसका नाम दूधसागर पड़ा। यहाँ की खूबसूरती दिल-दिमाग और आँखों को सूकून देती है। यहाँ के पानी में पैरों को डालकर, भींगने और लोगों को भिगोने में बहुत मजा आता है। यही मजा लेने लोग दूर-दूर से यहाँ आते और समय व्यतीत करते है।
पणजी या मडगांव से टैक्सी या बस से यहाँ पहुँचा जा सकता है। 2000 फुट की उँचाई से गिरते इस झरने के ठीक सामने कुछ मीटर की दूरी पर रेल पटरी गुजरती है। रेलयात्री भी इस विहंगम दृश्य का अवलोकन ट्रेन में बैठे- बैठे ही लेते है। मड़गांव से यहाँ ट्रेन से भी आया जा सकता है। रोमांच प्रेमी प्रपात के सहारे-सहारे चट्टानों व झाड़ियों पर चढ़ाई करते हुए इसके शीर्ष तक पहुँचा जा सकता है।
कोला बीच----दूधसागर से लौटकर हम कोला बीच आयें। कोला गावं से उबड़खाबड़ रास्ते से चलती हुई हमारी कार कोला बीच पर पहुंची। अब हमें नीचे रिजार्ट षतक पैदल ही जाना था। अपने टैंट तक आने पर हमें खुशी बहुत हुई क्योंकि हमारा टैंट समुंद्र के किनारे ही था। थोड़ा विश्राम करके हम बीच पर आ गये। दो दिन हमें यहीं रुकना था। खुशी इस बात की थी कि हम समुंद्र की लहरों को बिना किसी व्यवधान या रोकटोक के किसी भी पल निहार सकते थे।
रात में अचानक महसूस हुआ कि बाहर आंधी-तुफान जैसी तेज हवा चल रही है। मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पायी। भय मिश्रित माहौल में धीरे से दरवाजा खोल कर झांकी तो बाहर समुंद्र की लहरों की गूँज या यूं कहे शोर ही सुनाई पड़ा। यह शोर मुझे रोमांचित करने लगा, पर डर के कारण शीघ्र ही दरवाजा बंद कर ली।
हमें तैरना आता नहीं था इसलिए हम यहां के लहरों की झकझोरते हुए उँचे-उँचे उफनती वेग को झेल नहीं पाते। इसलिए हम यहां के सागर की लहरों का मजा वैसे नहीं ले पाये जैसे नार्थ गोवा के बीच पर लिए थे। घुटनों तक लहरों का मजा लेते रहे और सागर तट पर लेटकर सनवाथ का मजा भी लिए। समुंद्र के सामने ही छिछले साफ पानी का बड़ा सा तालाब जैसा भाग था। यहां का पानी बिलकुल साफ, पारदर्शी, शीतल और प्राकृतिक नजारों वाले नारियल के पेड़ों से घिरी धीमी-धीमी ठंड़ी हवा के झोंकों के साथ बह रही थी। हम यहां के पानी में घंटों लोटपोटकर नहाते रहे। दो दिन का प्रवास बड़ा सुखद और मनोरंजक था। आनंद के अतिरेक से अभिभूत होकर हम तीसरे दिन मड़गांव आ गये। हमने काजू और मसालों की ढ़ेर सारी खरीदारी किए ताकि लोगों को उपहार स्वरूप भेंट दिया जा सकें।
ट्रेन आने पर राजधानी ट्रेन से हम दिल्ली आ गये। एकदिन दिल्ली में रुककर हम लखनऊ आ गये।
हम अपने शहर लखनऊ तो आ गये ,पर मन अब भी भटककर गोवा की हसीन वादियों और लहरों के बीच पहुंच जाता है। तब हम वहां के उस सुखमय क्षणों में खो जाते है, जो हमनें वहां महसूस किया था।
कैसे घूमें-----
गोवा की सड़के बेहद आराम दायक है। यहां कहीं से भी कहीं जाने के लिए किराये पर मोटरसाइकिल और कार उपलब्ध है। निजी बस सेवा और सरकारी बस सेवा भी हर शहर के लिए उपलब्ध है। दूधसागर या मडगांव से टैक्सी या बस से यहां पहुंचा जा सकता है। दूधसागर के झरने से गिरते पानी से कुछ मीटर की दूरी पर ही रेलवे लाइन है। मडगांव से ट्रेन से यहां आया जा सकता है। मडगांव से दिल्ली-मुम्बई व अन्य जगहों के लिए सीधी ट्रेन है।दांबोलिन हवाई अड्डा भी मड़गांव से पांच किमी दूर है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें