रोमांचकारी यात्रा पीलीभीत के शारदा डैम की (यायावरी)

यात्रा --- 26.06.2021 - 28.06.2021.

मन में ताजगी और उमंग भरने के लिए जरूरी नहीं है कि जब भी हम कहीं घुमने का प्रोग्राम बनाये, तो हमें लम्बी छुट्टी की दरकार हो और  हमारा दर्शनीय स्थल कोई प्रसिद्ध नदी, पर्वत, सागर या उसका कोई समीपवर्ती इलाका हो। 
कभी-कभी छोटी छुट्टी में छोटा अनजाना शहर भी बड़ी खुशी और ढ़ेर सारी जानकारियां देकर हमें उमंग और उत्साह से लवरेज कर देता है। पीलीभीत हमारे लिए अनजाना शहर था। कोरोनाकाल की बीमारी झेलने के बाद मन को ऐसे ही किसी खूबसूरत वातावरण की तलाश थी, जो मन की हताशा को दूर करके जीवन्तता का रंग भरके उम्मीदों की चमक से मन को जगमगा दे। पीलीभीत का वीकेंड यात्रा, इस उम्मीद पर खरा उतरा।

वीकेंड पर पीलीभीत जाने का प्रोग्राम बना, तो हमने सारी तैयारी रात में ही कर ली, ताकि सुबह 6 बजे ही हम लोग अपने घर से टैक्सी द्वारा निकल सकें। गर्मी अपने चरम पर था, पर रास्ते में दिखने वाले नजारों और बच्चों की चुहुलबाजियों में छह पारिवारिक लोगों का सफर आसानी से कट गया। बीच में जब उछल कूद मचाने वाला सड़क मिला, तो बच्चे हो-हल्ला मचाकर यात्रा में रोमांच भर दिए। पीलीभीत पँहुचते पहुँचते हमें पुरनपुर के आसपास के खेतों में धान की रोपाई करते हुए जो ग्रामीण महिलाएं दिख रही थी...वह हमें बहुत मनमोहक और लुभावने लग रहे थे। खेतों का यह दृश्य बहुत लुभावना था, जो जगह-जगह के खेतों में दिख रहा था। पीलीभीत के मुख्य शहर में तो हम गये ही नहीं। पर शहर आने से पहले ही हमारी कार दाहिने तरफ मुड़ गई और हम रॉयल किंगडम रिजार्ट पहुंच गए।

नहर के पानी के प्रेशर फ्लो की सुंदरता-----
रिजार्ट शानदार था। खा-पीकर हम आराम किए। चार बजे हम उठकर तैयार हो गए। हम माधो टॉड़ा रोड पर निकल गये। रास्ते में सड़क के साथ ही साथ समानांतर में नहर का पानी भी बह रहा था। हम पानी की लहरों को देखकर उत्साहित हो रहे थे, तभी हमें लहरें दो भागों में बटी बटी हुई दिखी, तो हम कार को रुकवाकर कार से उतर गये और नहर के किनारे खड़े होकर लहरों के इस अद्भुत दृश्य का नजारा देखने लगे। नहर पानी से लबालब भरा था। 


शांत गति से एक लय में बहने वाला पानी अचानक एक सीधे में किसी व्यवस्था के कारण गिरते ही पूरा उबलते हुए पानी की तरह बुलबुले मारते हुए उछलने लगता था। नहर तो बहुत देखने को मिला था, पर लहरों का इस तरह सुंदर और खुबसूरत तरीके से दो अलग-अलग रुपों में बँटना पहली बार दिखा। पानी की उछाल मारती लहरें समुंद्र की याद दिला रही थी। 



हम काफी देर तक लहरों के शांत और उछाल मारते लहरों का आनंद एक साथ लेते रहे। हमें बहुत मजा आया। नहर के समानांतर चलते हुए कार से हमें यह दृश्य हर थोड़ी-थोड़ी दूर पर कई बार देखने को मिला। नहर के इस पार से उस पार जाने के लिए कई लाल रंग का खूबसूरत पुलिया भी था, जहाँ आने जाने वालों के अतिरिक्त आनंद लेते हुए लोगों का भीड़ भी दिखा। अंधेरा होने पर हम रिजार्ट लौट आये।

गोमती नदी का उद्गम स्थल-----
दूसरे दिन हम लोग नाश्ता के बाद गोमती नदी के उद्गम स्थान को देखने के लिए निकल पड़े। जिस गोमती नदी के किनारे हमारा शहर लखनऊ बसा है, उसी गोमती नदी के उद्गम स्थल को देखेंगे, यह कल्पना से परे था। गोमती नदी का उद्गम माधौटांडा (पीलीभीत) के गोमत ताल से होता है और यह शाहजहांपुर, लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर होते हुए जौनपुर में गंगा नदी में  जाकर मिल जाती है। लेकिन करीब 900 किमी की इस नदी के जन्म स्थान  (पीलीभीत) में ही इसे खोजना कठिन हो जाता है, क्योंकि  यह नदी अपने जन्म स्थान पर ही मृतप्राय होकर गायब हो रही है।
हम यहां गोमत ताल में वोटिंग का मजा लिए। वोटिंग के मध्य कछुआ, बत्तखों का झुंड और नन्हीं मछलियों के तैराकी का सुख भोगे। इसके बाद हम मंदिरों में ईश देवीयों-देवताओं का दर्शन किए और पेड़ों से टपकने वाले मीठे जामुनों का मजा और रसास्वादन वहां के पेड़ पर चढ़े बच्चों की सहायता से किए । लौटते समय नहर के एक पुलिया के किनारे बने सुंदर सजे हुए साफसुथरे ढ़ाबा के किनारे बैठकर चाय पीने और गर्मागर्म पकौड़े खाने का और बहते पानी को देखने और उसके कलकल आवाज की मधुरता सुनने का आनंद  उल्लसित मन से भरपूर लिए। रिजार्ट लौटकर भी हम कुछ देर उन्हीं आनंद में ड़ूबे हुए आपस में चर्चा करते रहे। उसके बाद  खाना खाकर आराम कर लिए, क्योंकि शाम को खुली जीप से बफर जोन ऑफ चुका फॉरेस्ट जाना था।

जंगल सफारी की यात्रा------
शाम को हम लोग खुले जीप पर बैठकर माधोटांडा रोड़ होते हुए नहर के लहराते पानी के समानांतर बने सड़क पर आगे बढ़ते रहे, फिर एक पुलिया पार करके फिर नहर के समानांतर ही आगे बढ़ते हुए आगे बढ़ते रहे। यह सड़क हमे एक ऐसे स्थान पर पहुंचा दिया जहाँ नहर चार भागों में बंटा था। नहर के पानी को रोकना और छोड़ना यहां के सिंचाई विभाग का काम था। तीन भाग तो स्पष्ट दिख रहा था, पर एक भाग सुखा था। यहाँ की खूबसूरती देखते बन रही थी। सबसे मजेदार यहाँ के लोगों की निर्भिकता लगी। बहुत से लड़के पुलिया पर चढ़ते,चलते और फिर छपाक से नदी में कूदकर डूबते-उतराते और फिर तैरने लगते। पानी की लहरें उफान पर थी। ऐसे विकराल व वीभत्स रूप में लहराते पानी में निर्भिकतापूर्वक पानी में कूदना और तैरना अद्भुत था। यह दृश्य कई जगह बड़ी संख्या में नहाते हुए लड़कों में दिखा। हम तो भयभीत होते हुए भी देखने का़ सुख त्याग नहीं पा रहे थे, इसलिए ऐसे रोमांचकारी पल को भोगते हुए आनंदित हो रहे थे, क्योंकि ऐसे रोमांकारी अनुभव से वंचित होना कोई नहीं चाहेगा। शायद यहां के युवा और बच्चे ऐसे वातावरण में रहते हुए ही ऐसा करने के लिए अभ्यस्त हो चुके थे। 
इसके बाद हमारी जीप बफर जोन ऑफ चुका जंगल की तरफ बढ़ने लगा। सूर्यास्त की लालिमा का समय, एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ नहर का बहता पानी...तीनों के संगम स्थल को एक साथ निहारने का पल काफी रोमांचकारी था। जंगल के अधिकांश भाग में जाने का इजाजत नहीं था।  जंगल का जितना भाग हमें दिखा, उसमें हम बंदर और हिरण का झुंड और उनके धड़ामचौकड़ी का मजा ही ले पाये। 


शारदा डैम-----
आगे जाकर शारदा डैम का पानी अपने विशालता और फैलाव में काफी दूर तक नजर आया। पानी का दृश्य बहुत विहंगम और अद्भुत था। डैम के किनारे-किनारे आगे बढ़ते हुए हम उस स्थान पर पहुंच गए, जहाँ सड़क के नीचे ढ़लान के बाद  बसा हुआ बहुत ही खुबसूरत, साफ सुथड़ा और हरियाली से भरा हुआ गांव मन को मोहने के लिए बहुत था। भले ही यह गांव अपने कठिनाइयों से भरा और जुझता हुआ हो, पर हमारे जैसे शहर के भीड़भरे वातावरण में बसने वालों के लिए बहुत सुकून भरा और मनमोहने वाला लगा। यहां से आगे जाने पर एक तरफ उत्तराखंड का बार्डर था तो दूसरी तरफ नेपाल का बार्डर वाली नदी का आभास हो रहा था।

रोमांचित मन में यादों को संजोये हुए हम वापस उन्हीं राहों पर लौटने लगे। जंगल में सड़क के किनारे बने एक झोपड़ी में ड्राइवर ने बताया कि यहां सोनपापड़ी बनता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट और प्रसिद्ध है। हम लोग भी सोनपापड़ी खरीदे और आगे बढ़ गये। लौटते समय नहर वाले ढ़ाबा पर एक बार फिर रुककर चाय पिएं, लहरों का मजा लिए और उछलकूद के बाद फिर लौटने लगे। लौटते समय पेड़ों और झाड़ियों के बीच जुगनू चमचमा रहे थे, पीछे देखने पर दोनों तरफ के पेड़ों की टहनियों और पत्तियों से बना गुफानुमा आकृति और उपर आकाश में तारें की झुंड चमकते हुए इतने करीब लग रहे थे कि हम इन्हीं मनमोहक नजारों में डूबते-उतराते और चहकते हुए और  एक दूसरे को रोमांचित करते हुए अपने रिजार्ट लौट आये। यात्रा को यादगार बनाने के लिए हमने फोटोग्राफी और वीडियों भी खूब बनाये, ताकि इसकी यादें जब स्मृतिपटल से ओझल होने लगे, तो हम इसे देखकर इस रोमांचकारी क्षणों की पुनरावृत्ति फिर से कर लें।
इस यात्रा ने कोविड़ भरे माहौल के जीवन में जीवंतता व खुशियों का रंग भर दिया। हम जब-जब इस यात्रा की यादों को स्मृतिपटल पर लाकर जीवंत करेंगे.. उस दिन कोरोना की सारे बोझिल पीड़ा को कुछ क्षणों के लिए भूलकर जीवंत होते नजर आयेंगे।




1 टिप्पणी:

Shalini Raman ने कहा…

Behatarin lekhni