खतरों के बीच का रोमांचकारी पल-पन्ना टाइगर रिजर्व
(पन्ना राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों की सीमा पर स्थित है इस पार्क का क्षेत्रफल 542.67 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ प्रमुख वनस्पतियों में सागौन, बांस, बोसवेलिया आदि शामिल है। इस उद्यान में कई दुर्लभ प्रजातियों और लुफ्तप्राय प्रजातियों को देखा जा सकता है। यहाँ पाये जाने वाले जानवरों में बाघ, तेंदुआ, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सांभर और भालू है।)
एडवेंचर से पूर्ण था हमारा सफर
हम खजुराहो घूमने गये थे। खजुराहो भ्रमण के पश्चात हमें पता चला कि यहाँ से 25 किमी दूर ही पन्ना नेशनल पार्क है,जो मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है। हम पन्ना नेशनल पार्क की हरी-भरी घाटियों, दुर्गम झरनों और प्राकृतिक पार्क की सुंदरता देखने की उत्सुकता को दबा नहीं पाये। अतः हमारा अगले दिन का प्रोग्राम पन्ना नेशनल पार्क ही था। पन्ना के वन्यजीवों को बहुत करीब से देखने और समझने के साथ ही यहाँ के खूबसूरत परिदृश्य में फोटोग्राफी और वीडियो बनाने की कल्पना में हम पूरी रात गोते लगाते रहे।
खुले सफारी का मजा
खजुराहो के कलात्मक कलाकृतियों का अवलोकन करने के पश्चात तीसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही हम अपने होटल से सफारी से निकल पड़े पन्ना टाइगर रिजर्व घूमने के लिए।
सुबह के सुहाने मौसम में खजुराहो शहर से दूर गाँव की गलियों से होती हुई तेज रफ्तार में दौड़ती सफारी हमें अभी से आनन्द की अनुभूति कराने लगा। खुली जीप के तेज रफ्तार में जब हम डरने लगे, तब हमने ड्राइवर भैया से रफ्तार धीमी करने का अनुरोध किए, तब वे बोले," टाइगर सड़क पर आने वाला है, यदि समय पर नहीं पँहुचे, तो हम उसे देख नहीं पायेंगे। फिर आपकी यात्रा उतनी जानदार नहीं रह जाएगी, जितनी की उम्मीद लगाकर आप यहाँ तक आये है। फिर साहब हमारी मेहनत भी बेकार साबित हो जायेगी।"
ड्राइवर के तर्क भरी जिंदादिली के हम कायल होकर खामोश हो गये। जब दिखाने वाला ही इतना उत्साहित था, तो हमारी जिज्ञासा भी चरम सीमा पर पँहुचने लगी। अब हम लोग सफर के साथ ही साथ गाँव के सुहाने अनुभवों को साझा करते हुए आनन्दित होते रहे।
सामने से टाइगर का दर्शन
पन्ना टाइगर रिजर्व के गेट के बाहर आई डी चेक करवाने के पश्चात हमारी जीप फाटक के अंदर धड़धड़ाती हुई 50 मीटर की दूरी पर जाकर एक जगह खड़ी हो गई। आगे तीन-चार जीप और खड़ी थी। 15 मिनट इंतजार करने के पश्चात आगे वाली चारो जीप आगे बढ़ गई। हमारे ड्राइवर साहब आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे। अभी मुस्किल से पांच मिनट ही हुए होंगे कि आगे जाने वाली जीपें धड़धड़ाती हुई वापस आई और बीच का कुछ जगह छोड़कर खड़ी हो गई। ड्राइवर गाड़ी को और आगे बढ़ाने लगा तो हम सब एक साथ चिल्ला पड़े," हमें इससे आगे नहीं जाना है, क्योंकि हम कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते है।" गाइड भी रुकने को बोले, तब ड्राइवर भैया रुक गये। अब गाइड ने हमें न बोलने की निर्देश दिया, तो हम चुप हो गये। भयमिश्रित उमंग,उत्साह से लबरेज़ होकर हम लोग उस ओर टकटकी लगाये एकटक निहारने लगे, जिधर से टाइगर के आने की उम्मीद थी। हमारी इंतजारी रंग लायी। थोड़ी ही देर में झाड़ियों में झूमता, बल खाता, इठलाता धीमी गति से चलता टाइगर हमारे जीप के सामने आकर खड़ा हो गया। डर लगने के बावजूद भी हम उसे अपलक निहारते रहे। एक क्षण रुककर वह आगे के पेड़ के पास जाकर सू-सू किया, फिर कुछ सोचता हुआ एकपल को रुक गया, जैसे वह आगे के सफर का अंदाजा लगा रहा था कि किधर जाने पर वह सुरक्षित है। हम उससे डर रहे थे, तो वह हमें भी छेड़ना नहीं चाहता था। जानवरों को जबतक छेड़ों नहीं, तब तक वे भी हिंसक नहीं बनते है। उनके इसी सूक्षबूझ के कारण हम इतने करीब से एक खूंखार जानवर के खुले रुप का दर्शन आसानी से कर लिए, वरना वर्षों से बनी उसके डरावने रुप के अवधारणा को हम तोड़ नहीं पाते। इसके बाद वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए दाहिने तरफ के पगडंडियों पर आगे बढ़ गया। हम निर्विकार रुप से उसके मतवाली चाल का आनंद लेते रहे। कुछ लोग फोटोग्राफी में तो कुछ लोग वीडियो बनाने में मस्त थे। हमारे ड्राइवर भैया सबसे आगे थे और वे भी वीडियो बनाने में मस्त थे। टाइगर के जाने के बाद वे उत्साहित होकर बोले," देखा आपने, यदि टाइगर का दर्शन नहीं होता, तो हमें अपनी यात्रा अच्छी नहीं लगती।" ड्राइवर भैया का उत्साह हमारी उत्सुकता में चार चांद लगा रहा था। टाइगर के दर्शन से हमारे सफर की शुरुआत अच्छी हो गई।
दुर्लभ प्रजाति के पशु-पक्षियों का दर्शन
अब हम रास्ते में पड़ने वाले पशु-पक्षियों का आनन्द उठाते रहे। रास्ते में सांभर खड़ा होकर हमें यूं आश्चर्यमिश्रित नजरों से एकटक ऐसे घूर रहा था, जैसे हम उसे देखने नहीं, बल्कि वह हमें देखने आया था। हमने उसका फोटो खिंच लिया।
नदी के किनारे का लुफ्त
नदी के किनारे पत्थरों का टिला था। यहाँ उँचा एक मचान भी बना था। इस मचान पर चढ़कर दूर तक के नजारों का अवलोकन किया जा सकता था। बच्चे उपर चढ़कर खूब मजा किए। हम लोग नदी के किनारे बैठकर नाश्ता किए। होटल से ढ़ेर सारी खाने की सामग्री लाये थे। थोड़ी दूर अलग हटकर ड्राइवर और गाइड ने भी खाने में साथ निभाया। फिर हम लोगों ने विभिन्न स्थानों से, विभिन्न पोजों में फोटो खिंचवाकर अपनी यात्रा को सुरक्षित कैमरे में कैद कर लिए। क्योंकि यात्रा पूरी होने पर यादगार लम्हों का अवलोकन फोटोज में करने पर बहुत मजा आता है।
वापसी का दौर
वापसी का दौर भी सुहाना था। धूप थी, पर उसमें वह तेजी नहीं थी कि हमें बर्दाश्त न हो। एक ओर जंगल के उबड़खाबड़ कच्चे रास्ते, तो दूसरी तरफ दूर बहती हुई केन नदी। ढ़ेर सारे आँवले पेड़ के नीचे बिखरे पड़े थे।
पाण्डव फॉल का मनमोहक नजारा
पन्ना नेशनल पार्क से निकलने पर हमारे पास पर्याप्त समय था। ड्राइवर भैया से जानकारी लेने के बाद हम पांडव वाटर फॉल घूमने के लिए निकल पड़े। पांडव फॉल टाइगर रिजर्व से केवल ऑठ किमी दूर था। लगभग 20 मिनट में हम वहाँ पँहुच गये। करीब 300 सीढ़ियां उतरने के बाद ही सामने वॉटरफॉल था। वॉटर फॉल की ठंडक बहुत राहत देने वाली थी। गाइड ने बताया कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहाँ भी बिताया था। प्राचीन पत्थरों से बनी गुफाएं इस बात की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त थी। गाइड ने हमें यह भी बताया कि यहाँ का पानी औषधीय गुणों से पूर्ण है, जो लैब टेस्ट के मानकों पर भी खरा उतरता है। पत्थरों से गिरती पानी की ठंडी बूंदें तन-मन को शीतलता से सराबोर करके सुधबुध खोने के लिए पर्याप्त थी। सबने खूब मजे किए। शाम को हम वापस अपने होटल आने के लिए तैयार हो गए।
कैसे पँहुचे और कहाँ रुके
यह जंगल खजुराहो से 25 किमी दूर है। इसलिए खजुराहो यहाँ के लिए नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन है। ठहरने के लिए पन्ना नेशनल पार्क के समीप ही विकल्प मिल जायेंगे, जिसमें मध्य प्रदेश पर्यटक विभाग के होटल भी शामिल है। वैसे सही रुप में पर्यटन का मजा लेना हो तो खजुराहो के होटल में रुककर खजुराहो और पन्ना के नेशनल पार्क का मजा एक साथ ले सकते है, बशर्ते आपके पास दोनों जगह घूमने का पर्याप्त समय हो।
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