स्मृतियाँ कभी कभी बहुत मधुर व मजेदार होती है। जिन्हें याद करने पर हँसी के फौआरे फूट पड़ते है और मन हँस-हँस कर लोटपोट करने लगता है।
शादी के बाद की ही तो घटना है, जिसे मैं (शालू) अक्सर याद करके हँसती रहती हूँ। नयी नवेली दुल्हन थी। शादी के बाद ही बूआ सासू माँ के यहाँ पारिवारिक पार्टी में जाना पड़ा। फुफा जी सेना में कैप्टन थे।
खुशनुमा माहौल में खुले मैदान में कोल्ड-ड्रिंक का दौर चल रहा था। मैं जुकाम से पीड़ित थी, अतः कोल्ड-ड्रिंक न लेकर चुपचाप एक जगह अकेले बैठ गयी। अचानक वेटर मेरे पास आकर बोला," मैम, आप क्या लेंगी?" मैंने पूछा, "कुछ हाॅट है? कोई हाॅट-ड्रिंक चाहिए।" वेटर चुपचाप चला गया। मैं यूंही बैठे हुए अपने में मगन थी।
कुछ देर बाद वेटर ट्रे में सजे सुंदर गिलास में बीयर के साथ उपस्थित हो गया। मैं अचकचा गई। ससुराल का भरापूरा माहौल। लोग मुझे विस्मय से देखने लगे। मैं वेटर को घूरने लगी। वह बीयर लेकर यहाँ क्यों खड़ा है?
मैं घबड़ाकर तल्ख स्वर में बोली," ये क्या है?"
"मैम, हाॅट-ड्रिंक, जो आपने मांगा, वही तो है।" वेटर भी सकपकाकर सफाई देने लगा।
मैं झेंपकर झुंझलाहट भरे लहजे में बोली, "मेरा मतलब चाय-काॅफी से था। इससे नहीं। ले जाओ यहाँ से।"
वेटर मेरी बेवकूफी समझ गया कि मैं इस माहौल से अनजान हूँ। अतः सहमकर बोला, "साॅरी मैम, यहाँ चाय-काॅफी नहीं मिलता है। मुझे समझने में गलतफहमी हो गई। वेरी साॅरी।"
दूर बैठे पतिदेव की निगाह जब बीयर के साथ वेटर पर पड़ी तो वे अचम्भित हो सोचने लगे कि इतनी माडर्न लेडी कौन है यहाँ? जो सभा में बीयर मगां रही है। जब वेटर मेरे पास रुका तब ये घबड़ाकर लम्बे-लम्बे डग भरते आ गये। बताने पर इन्हें भी हकीकत समझते देर नहीं लगी। फिर तो सबके साथ ये भी हँसते-हँसते लोटपोट होने लगे और मैं सबके सामने अपने बेवकूफी पर शर्मिंदगी महसूस कर आँखें नीची कर ली।
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