अदिति और आरोही दो बहनें थी। उनका घर उत्तराखंड के सतताल झील के समीप की पहाड़ियों पर था। अदिति के पापा एक रेस्टोरेंट के मालिक थे।
गर्मी की छुट्टियों में अदिति के मामा-मामी अपने दोनों बच्चों राधिका और रोहन के साथ नैनीताल घुमने से पहले अदिति के घर आये थे और वहीं रुक गये।
बच्चें एक दूसरे से जल्दी ही घुलमिल गये। प्रकृति के सुंदर नजारों में एक दूसरे के साथ खेलने-कूदने, दौड़ने-भागने, डांस करने और फिर अपने पसंद की डिशे व फल खाने में उन्हें बहुत मजा आया। वे मस्ती में इतने चूर थे कि समय कब और कैसे इतनी जल्दी बीत जाता, ये उन्हें पता ही नहीं चलता था।
एकदिन अदिति के मामा अदिति से बोले," अदिति तुम लोग कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना। हम लोग नैनीताल घुमनें चलेंगे।"
"वाह मामा जी, आप बहुत अच्छे है। हम लोग आपको सुबह तैयार मिलेंगे।"
अदिति ने यह खुशखबरी सबको सुनाया तो सब खुशी से झूम उठे।
नैनीताल से घुमकर आने में सबको बहुत मजा आया।
उसी शाम अदिति के मामा लेटे थे, उसी समय अदिति उनके पास आकर बोली," मामा,आपने हमें नैनीताल तो घुमा दिया, पर यहीं घर के पास हीे एक झरना है, वह बहुत सुंदर और आकर्षित करने वाला है। आप हमें वहाँ ले जाकर कब घुमायेंगे। मैं राधिका और रोहन को वह झरना दिखाना चाहती हूँ। पापा वहाँ जाते नहीं है।"
"अभी-अभी तुम लोग घुमकर आये हो। अभी तुम लोगों का घुमने से पेट नहीं भरा क्या?" नींद की खुमारी में मस्त होने के कारण मामा ने झिड़ककर ऐसा जबाब दे दिया तो अदिति मायूस होकर चुपचाप वहाँ से हट गयी।
वह राधिका के पास आकर बोली," यहाँ पास में एक बहुत सुंदर झरना है। मैं चाहती थी कि हम लोग वहाँ चलते क्योंकि वहाँ बहुत मजा आता है। पर मामा साथ चलने को बिलकुल तैयार नहीं है।"
अदिति को मायूस देखकर राधिका भी दुखी हो गई, बोली, "अदिति दीदी, ये पापा तो ऐसे ही है। नींद में मस्त हो जाते है तब कुछ सुनते नहीं है। इसलिए ये तो अब हमें घुमा चुके। अब ये कहीं नहीं जायेंगे। कोई बात नहीं, अब हम लोग बिना झरना घुमें ही वापस चले जायेंगे?"
राधिका की मायूसी अदिति को मंजूर नहीं था, बोली,"अरे नहीं, दुखी क्यों होती हो? हम है ना। मुझे वहाँ का रास्ता पता है। हम कल तुम लोगो को लेकर झरना देखने चलेंगे। पर किसी को कोनों कान खबर न होने पाये, वरना कोई हमें वहाँ जाने नहीं देगा।" अदिति राधिका से फुसफुसाकर बोली ताकि कोई सुन न ले।
"ठीक है दीदी, मैं किसी को नहीं बताऊँगी।"
लेकिन होनी को कुछ और स्वीकार था। उस दिन शाम से ही मौसम बदलने लगा। खूब ठंड़ी हवा बहने के बाद गरजते-तड़कते बादलों ने झमाझम बरसना शुरु कर दिया।
"रोहन भैया, कितना मजा आ रहा है। चलिए हम लोग भीगते है।" नन्हीं आरोही टपकते पानी के बूंदों को हथेली में भरकर बोली।
"रोहन और आरोही, तुम लोग पानी में भीगना मत वरना कल झरना देखने जा नहीं पाओंगे।" अदिति ने उन्हें सतर्क किया।
"ठीक है। हम नहीं भीगेंगे। लेकिन यदि पानी कल तक बरसता रहेगा तब क्या होगा?" राधिका उदास हो गई।
"दीदी, हम बादलों से विनती करते है कि वह कल के बाद बरसे क्योंकि कल हमें झरना देखना है।" यह कहकर आरोही गाने लगी," रैन रैन गो अवे, कम्स अगेन अनेदर डे।"
"अरे चुप, तुम तो सारा पोल खोलकर मजा ही किरकिरा कर दोगी।" अदिति ने उसे झिड़ककर चुप कराया।
"आओ, हम सब मिलकर दूसरा गाना गाते और डांस करते है। इस तरह हमारा मनोरंजन भी होगा और बादल से विनती भी। हमारे मनोरंजन से कोई समझ भी नहीं पायेगा कि हम कल क्या करने वाले है?" राधिका आरोही का हाथ पकड़कर बोली।
"ठीक, बिलकुल सही। चलो सब लोग नाचते और गाते है।"
बच्चें मिलकर धूमधड़ाका मचाने लगे। जब वे थक गये तब सोने चले गयेे। सोने से पहले उन्हें सुकून था कि बरसात रुक चुकी है।
सोने से पहले राधिका अदिति के कान में फुसफुसायी," दीदी, पानी बंद हो गया। कल मजा आयेगा।"
"चुप हो जा। शुभ रात्रि। कल जल्दी उठना है।"
"ठीक, गुड नाईट, दीदी।"
दूसरे दिन जब सारे बच्चें गुपचुप तरीके से तैयार हो गये तब अदिति अपनी मम्मी से बोली," माँ ,हम लोग नीचे ताल के किनारे खेलने जा रहे है।"
"बेटी, सबको लेकर पानी के पास मत जाना क्योंकि वहाँ पानी बहुत गहरा है। तुम लोग खेलकर जल्दी आ जाना।"
"ठीक है माँ, हम लोग जल्दी आ जायेंगे।" यह कहकर अदिति तीनों बच्चों के साथ बाहर आ गयी।
अदिती बोली,"जल्दी चलो। कोई इधर-उधर मत जाना वरना मुझे ही डाँट पड़ेगी।"
"ठीक है दीदी, हम आपके ही साथ रहेंगें क्योंकि मुझे डर लग रहा है।" राधिका की बाते सुनकर आरोही राधिका की अंगुली पकड़ ली।
"डरो मत। झरना के पास बहुत मजा आयेगा।" अदिति राधिका का हौसला बढ़ाते हुए बोली।
कुछ दूर पक्के सड़क पर चलने के बाद अदिति रुक गयी, बोली," अब हम लोग ये सीढ़ियाँ उतर कर कच्चे पगडण्डी वाले रास्ते पर चलेंगे। सब लोग सम्भलकर सीढ़ियाँ उतरना क्योंकि यहाँ फिसलन बहुत है।"
अदिती रोहन का हाथ पकड़कर राधिका से बोली," राधिका, तुम आरोही का हाथ पकड़े रहना। आरोही अभी छोटी है अकेले चल नहीं पायेगी।"
"ठीक है दीदी, मैं आरोही का हाथ छोड़ूँगी नहीं। आप चिंता मत करिए।" राधिका आरोही की अंगुली पकड़ते हुए बोली।
राधिका आरोही का हाथ पकड़कर चलने लगी। आगे की सकँरी पगडण्डी गीली थी।इसलिए सबको चलने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
"दीदी यहाँ तो पानी से सड़क गीली हो गयी है। मुझे तो बहुत डर लग रहा है।" रोहन बोला ।
यह सुनकर अदिति बोली," डरो मत, ये रात में होने वाले बरसात का नतीजा है। धीरे- धीरे सम्भलकर चलो। अब हम लोग पहुचँने वाले है।"
थोड़ी देर बाद राधिका रुक गई। उसको रुकते हुए देखकर अदिति भी रुककर राधिका को देखने लगी।
राधिका बोली," दीदी मेरे पैरों में कुछ चुनचुना रहा है। बार बार अंगुलियों में कुछ चुभ रहा है जिससे आगे चल नहीं पा रही हूँ।"
"कीचड़ होगा। लाओ चप्पल का कीचड़ मैं निकाल देती हूँ। फिर तुम आराम से चलना।"
अदिति राधिका का चप्पल हाथ में ली ही थी कि तभी राधिका अपना पैर देखकर चिल्लायी," दीदी, मेरे पैरों से खून बह रहा है। ये कैसे हो गया?"
अदिति राधिका के चप्पल में फँसे जोकों को देख चुकी थी। वह भी घबड़ा गई, पर हिम्मत के साथ बोली," राधिका, तुम्हारे पैरों को जोंकों ने काटा है। चप्पल में भी बहुत सारे जोंक ही फँसे है। रुको, मैं पहले जोंकों को चप्पल से निकाल दूं, फिर आगे चलेंगे।"
अदिति जोंकों को निकालने का, असफल प्रयास कर रहीं थी तभी रोहन बोला," दीदी देखो, मेरे पैरों से भी खून बह रहा है। मैं क्या करु?"
तभी आरोही खून देखकर घबड़ाने के कारण जोर जोर से रोने लगी,"दीदी, मुझे अब यहाँ नहीं रुकना है। जल्दी घर चलो।"
एक साथ इतनी मुसीबत देखकर अदिति भी प्रत्यक्ष रुप से
घबड़ा गयी। वह झल्लाकर बोली,"आरोही रोना बंद करो। पहले जोंकों से छुटकारा तो मिलने दो, फिर घर चल चलेंगे।"
सूनसान पगडण्डी पर कोई दिख भी नहीं रहा था। अदिति जोंक को निकालने का प्रयास कर रही थी। जब वह जोंक को निकाल नहीं पायी तब राधिका को चप्पल देती हुई बोली,"अब कुछ हो नहीं सकता। राधिका जल्दी चप्पल पहनों, हम दौड़कर वापस घर चलेंगें। इन जोंकों से वहीं छुटकारा मिलेगा।"
"दीदी, झरने का क्या हुआ? क्या हम झरना नहीं देख पायेंगे?" रोहन रुआँसा होकर बोला।
"तुम्हें झरना की पड़ी है, यहाँ जान आफत में फँसती नजर आ रही है। नहीं रोहन, पहले यहाँ से जल्दी वापस चलो। देखो, तुम्हारे और आरोही के पैर से भी खून बह रहा है।"
आरोही अब भी रो रही थी। अदिति सबको साथ लेकर जल्दी जल्दी दौड़ती हुई बाहर सड़क पर आ गयी।
सड़क पर चाय का एक ढ़ाबा था। अदिति जल्दी से ढ़ाबा में घुस गई ,बोली "गोपी अंकल, जल्दी से थोड़ा नमक दे दीजिए।"
अदिति की घबड़ाहट देखकर गोपी बोले," लो नमक ले लो।पर नमक का करोगी क्या?"
"अंकल हमारे पैरों में बहुत सारे जोंक घुस गये है। उन्हीं को मारना है।"
"जोंक? पर वह कैसे? तुम लोग गयी कहाँ थी?" गोपी को आश्चर्य हो रहा था ।
"अंकल, हम लोग झरना के पास जा रहे थे।" अदिति सच बोल दी।
"झरना के पास क्यों जा रही थी? रात में बारिश हुई थी। जोंक गीली मिट्टी में निकलते है, यह तो तुम्हें पता होना चाहिए क्योंकि तुम तो यहीं रहती हो।"
"अंकल, मैं भूल गयी थी। मुझसे गलती हो गयी।आप हम लोगों की मदद कर दीजिए।"
"बेटी, हम तुम्हारी मदद करते है। पर तुम लोगों को बिना बताए इस तरह अकेले झरना देखने नहीं जाना चाहिए था। रास्ते में कुछ भी हो सकता था।" गोपी बच्चों को समझाते हुए बोले।
गोपी के मदद से बच्चों का जोंक साफ हो गया। गोपी अंकल बोले ,"ये जोंक केंचुए से छोटा पर मोटा कीड़ा होता है जिसके मुख पर गोल छोटे छोटे काँटेनुमा आकृति 'सकर' होती है। इसी से यह शरीर का गंदा खून चूसकर मोटा हो जाता है। नमक डालने से यह मर जाता है।"
"अंकल यह जहरीला तो नहीं होता है। हमें कोई नुकसान तो नहीं होगा।" राधिका घबड़ाकर बोली।
"नहीं यह जहरीला नहीं होता है। अब तुम लोग जल्दी घर जाओ, सब लोग घबड़ा रहे होंगें।" गोपी अंकल बोले।
"ओह, इस जोंकों ने तो हमें डराकर हमारा सारा मजा ही किरकिरा कर दिया। अब ड़ाँट भी खूब पड़ेगी।" राधिका रुआँसी हो गयी।
"हाँ दीदी, देखो ना..हमें मजा से मिली है सजा क्योंकि हम लोगों ने सबसे छुपकर यह प्रोग्राम बनाया था...उसी का हमें फल मिला। शुक्र करो कि जोंक ही खून चूसे है वरना कोई बड़ी सजा भी मिल सकता था। इसलिए कभी भी बड़ों से छुपकर कोई काम नहीं करना चाहिये।" रोहन बोला ।
"बात तो सही है। चलो, जल्दी घर चलो। हम मजा लेने निकले थे, पर मजा इन जोंकों के कारण सजा में बदल गया।"
अदिति सबके साथ घर के लिए रवाना हो गई। आरोही अब भी रो रही थी। रोहन अपना चिप्स और कुरकुरे का पैकेट आरोही को देकर बोला," आरोही, अब चुप भी हो जाओ वरना हम सभी को डाँट पड़ेगी।"
घर पहुँचने पर पता चला कि सब लोग परेशान हैं और वे लोग बच्चों को ढ़ूढ़ रहे थे।
अदिति के मामा बोले ," मैं तो तुम लोगों को घुमाने ही आया था। फिर तुम लोगों को इतनी जल्दी क्यों हो गई थी। थोड़ा इंतजार तो करते। इस तरह अकेले कहीं नहीं जाते है। आज तो तुम लोग बच गये, बस जोंको ने तुम्हारे खून का स्वाद ही चखा है, यदि इससे खतरनाक और जहरीले जीव-जन्तु से सामना होता, तब तुम लोग अकेले क्या करते?"
अदिति दुखी थी। उसका अभियान सफल भी नहीं हुआ। अतः वह मामा से बोली,"सॉरी मामा, अब ऐसी गलती दुबारा नहीं होगी। अब हम बिना बताए कहीँ नहीं जायेंगे।"
"पर मैं तो इन जोंको को भूल नहीं पाऊँगी। जोंकों ने हमें बहुत डरा दिया था। अब जब हिम्मत आ गया है तो लगता है कि जैसे घर जाकर अपने दोस्तों को बताने के लिए गरमागरम मसाला मिल गया है। जरूर बताऊंगी। "राधिका बोली, जो थोड़ी आश्वस्त हो गई थी।
"गरमागरम चाय पकौड़े तैयार है। जोंकों को भूलकर अब इसका मजा लो। अब हम सब लोग मिलकर कल झरना देखने चलेंगे।" अदिति की माँ ने कहा।
अदिति, राधिका और रोहन ताली बजाकर एकसाथ बोले, " वाह मजा आयेगा। हम लोग जोंकों के लिए नमक भी साथ में लेकर जायेंगे। अब जोंक हमें डरा नहीं पायेंगा।"
रोहन बोला," अब हम चाहे जितना भी घुमकर मजा ले ले, पर जोंकों से मिलने वाली सजा को हम कभी भूल नहीं पायेंगे।"
"एक बात है। हम जब भी किसी गलत काम की तरफ बढ़ेंगे, ये जोंक याद आकर हमारा रास्ता रोक देंगे। चलो अब चाय-पकौड़े का मजा लेते है।" राधिका बोली।
यद्यपि आरोही को भी जोंको ने काटा था पर वह यह भूलकर चुपचाप चिप्स और कुरकुरे खाने में व्यस्त व मस्त थी। क्योंकि सभी उसे बहलाने और चुप कराने के लिए अपना-अपना चिप्स और कुरकुरे उसे थमा चुके थे।
पकौड़े खाकर जब बच्चे खेलने के लिए बाहर आये तो अदिति मायूस होकर बोली," कभी बड़ों से बिना पूछे कोई काम नहीं की थी, इसलिए गलत काम की सजा हमें मिल गई।"
" हाँ दीदी, पर अब इसे भूलकर चलो खेलते है।"
बच्चे मिलकर खेलने और मस्ती मारने लगे।
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