कान्हा की समझ (लघुकथा)

बच्चे जब अपने लय में मचलते है, तब अपनी नादानियों में बहुत सी उटपटांग बातें कर जाते है। यह उनके या यूं कहे किसी के भी समझ से परे होता है, पर होता मजेदार ही है।
घर में शादी के माहौल के कारण खूब धुमधड़ाका और खुशियों का माहौल था। यह देखकर नन्हा कान्हा मचलते हुए अपनी दादी सुमन से बोला, "दादी, मैं भी शादी करुंगा?"
सुमन चौककर कान्हा को देखती हुई बोली,"तुम शादी करोगे?"
"हाँ, शादी करुंगा टोस्टी से।"
"टोस्टी से शादी? लेकिन क्यों?"
"टोस्टी अच्छी लड़की है। वह मेरे साथ खेलती है और मुझे बहुत अच्छी लगती है।" कान्हा ने जवाब दिया।
"तुम उसके साथ शादी नहीं कर सकते हो, क्योंकि वह तुम्हारे बुआ की बेटी और तुम्हारी बहन है।" सुमन उसे समझाते हुए बोली।
कान्हा सोचने लगा फिर अकड़कर बोला," ठीक है, आप यहाँ टोस्टी से शादी नहीं करने देंगी तो मैं दिल्ली जाकर मंटू चाचा वाली आरुषि दीदी से शादी कर लूंगा। आरुषि दीदी मेरी बहुत बहुत अच्छी दीदी है। वे मुझे बहुत प्यार से खेलाती भी है।"
सुमन सोचने लगी कि अब इस नासमझ को कैसे समझाऊ कि बहनों से शादी नहीं करते है? पर कान्हा के बाल सुलभ समझदारी और कहने के अंदाज पर वहाँ मौजूद लोग हँसते-हँसते लोटपोट होने लगे कि वाह रे आजकल के बच्चों की बुद्धि।
 

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