बहुत अजीज हो (कविता)

बहुत अजीज हो प्रियतम,मेरे तुम,
आकर मेरे पहलू में विश्राम करो।
जब तुम मेरी सांसों में बँधोंगे,
फूल सरीखी मैं खिल जाऊंगी।

राग रागिनी गीतों की माला,
मैं गा-गाकर तुम्हें रिझाऊंगी।
बाँधकर अपने आँचल में,तुमको,
मैं लता सी लिपट ही जाऊंगी।

असीम आंनद की अनुभूति में,
जुल्फों के लटों में छुपा लूंगी।
बालों को सहलाकर तुम्हारे,
नैसर्गिक सुधारस बरसाऊंगी।

प्रेम पुजारी बन दीपों सी,
अर्पित तुम पर हो जाऊंगी।
हर क्षण की अनुराग में डूबकर,
असीम आनंद का रस पीऊंगी।

न्योछावर हो एकाकार की भाव से,
सम्पूर्णता का पाठ तुम्हें पढ़ाऊंगी।
विकल वेदना सी अधुरी चाह है मेरी,
हाँ कहके,स्वीकृति का हार पहनाओ।

बहुत अजीज हो प्रियतम, मेरे तुम,
मेरे पहलू में आकर विश्राम तो कर

कोई टिप्पणी नहीं: