बड़ा दिल (लघुकथा)

बिस्तर पर अजलस्त पड़ी माँ पास खड़ी होकर दवा देती बेटी ममता से फुसफुसाई," बेटी, शाम को आना तो मेरे बक्से में पड़ी हुई नयी हरे रंग वाली साड़ी-ब्लाउज का जो नया पैकेट पड़ा है..उसे लेती आना।"
ममता चौंककर माँ को देखते हुए बोली," अस्पताल में नई साड़ी का क्या काम है?"
माँ कुछ नहीं बोली। दवा पीकर वह चुपचाप करवट बदलकर लेट गई। तभी क्रोध से बुदबुदाती ममता को भाई महेश आते दिख गये।
दिन की जिम्मेदारी महेश के सुपुर्द करके ममता ऑफिस चली गई।
शाम को माँ के बक्सा से साड़ी निकालते हुए ममता के क्रोध की कोई सीमा नहीं थी। उसे रह रहकर माँ पर गुस्सा छलक रहा था। जिस माँ की सेवा में वह दिनरात जी जान से जुटी रहती थी..उसी माँ के भाई-भाभी के प्रति उमड़तें प्रेम को देखकर वह खुन्नस खा रही थी। माँ क्यों उस अनादर को इतनी जल्दी भूल गई , जो माँ को अकेले छोड़ते समय भाई-भाभी ने किया था और कभी पलटकर माँ की सुधि भी कभी नहीं लिया। महेश के जाने के बाद ममता ने ही माँ की देखभाल और जिम्मेदारी निभाई। यह साड़ी ममता ही माँ के  लिए लायी थी, पर जिद करने पर भी माँ उसको पहन नहीं रही थी। माँ के मन में क्या चल रहा था, यह ममता उस समय समझ नहीं पायी थी।
माँ ने ही जिद करके अपने बीमारी की खबर महेश तक पँहुचवायी थी। दो दिन के लिए आये भाई-भाभी के आज जाने का दिन था।
ममता माँ के लिए खाना बना रही थी, उसी समय उसके पति आशीष आ गये। ममता के विकृति मुखमण्डल को देख वे समझ गये कि मामला जरूर कुछ गड़बड़ है। वे ममता के करीब आकर प्यार से बोले," क्या बात है, आज श्रीमती जी के चेहरे पर बारह क्यों बज रहा है?"
ममता को मौका मिल गया। वह भाई की निष्ठुरता और माँ का उनके और भाभी के प्रति प्रेम से वशीभूत हुई भावना पर अंटशंट बड़बड़ाती हुई अपने मन की गुबार निकालने लगी।
ममता की बातें सुनकर आशीष बोले," तुम माँ की बातों को इस तरह समझों कि माँ आखिर में माँ ही होती है। उन्हें अपने सभी बच्चों से प्यार होता है। वे आज भी अपने को सक्षम समझती है। वे अपने अहम् को आज भी जीवित रखना चाहती है। वे तुम्हें अपना समझती है, तभी तो तुम्हारे दिए साड़ी पर अपना अधिकार और उसे अपना समझती है। इसलिए वे उसे देने की हिम्मत को संजों कर तुमसे साड़ी लाने को कह  सकी। तुम उनके अहम् की संतुष्टि के लिए अपना मन बड़ा करो और खुशी मन से साड़ी को दे आओ।"
ममता के मन का बोझ उतर चुका था। वह अस्पताल जाने की तैयारी में दुगने वेग से तैयार होने लगी क्योंकि बड़े दिल वाले पति का बड़ा सोच अब उसमें समाहित हो चुका था।
 

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