राघव और रोली दीपावली की तैयारियों में जुटे थे। रोली अपने गुड़िया-गुड्डे को सहेज रही थी तो राघव पुरानी पड़ी झालरों को सुलझा रहा था। अचानक राघव बोला," जानती है दीदी, अबकी मैं पापा से जिद करके ढ़ेर सारी झालरें लूंगा, क्योंकि हमारा घर छोटा है, दूसरे झालरें भी हम सिर्फ कामचलाऊ लगाते है। जिससे मुझे अपना घर काफी फीका लगता है।"
यह सुनते ही रोली तैश में आकर राघव को घूरती हुई बोली,"राघव, तुम्हारे दिमाग में ये बातें आई कैसे?"
"दोस्त मुझे चिढ़ाते है, तभी तो मैं चाहता हूँ कि मैं उन्हें दिखा दूं कि मैं भी किसी से कम नहीं हूँ।"
"ओह अब समझी, मेरा भाई व्यर्थ के बहकावे में फँसा है? भैया, मैं तो ये कहूंगी कि अबकी बार हम झालर बिलकुल लगायेंगे ही नहीं।"
यह सुनकर राघव आश्चर्य से बोला," लेकिन क्यों? क्या घर को ऐसे ही खाली छोड़कर ढ़पली बजायेंगे? घर की रौनक बढ़ाने की बजाय बिगाड़ देंगे।"
"मैं कब कह रही हूँ कि हम हाथ पर हाथ रखकर बैठेंगे। अबकी हम अपने घर को सिर्फ दिए और मोमबत्तियों से सजायेंगे।" रोली उत्साहित होकर बोली।
"इससे क्या फायदा होगा? पहले ढ़ेर बत्ती बनाओ, फिर एक एक दिए में तेल डालकर बत्ती लगाओं। उसके बाद सारे दिए को लेकर जगह-जगह सजाओ। इतने मेहनत के बाद भी घर फीका का फीका ही लगेगा।"
"फीका नहीं लगेगा,भाई। बल्कि झिलमिल-झिलमिल झिलमिलायेगा। इस तरह हम पुरानी परम्परा में लौटने के साथ ही उन कुम्हारों की मदद भी करेंगे जो इसी दीपावली के लिए ढ़ेर सारे दियों के साथ खिलौने इत्यादि भी बनाते है।"
"रह गये ना हम वहीं के वहीं। इस बार मैं फिर दोस्तों से सजावट में पिछड़ जाऊंगा। और उन्हें चिढ़ाने का मौका दे दूंगा।" राघव रुआँसा होकर बोला।
"अरे भाई, मैं कब ऐसा चाहुंगी? इन दियों के कारण तुम इन कुम्हारों से जुड़ोंगे, तब तुम्हें इनके और इनके बच्चों की मुस्कुराहट से जो आंतरिक खुशी मिलेगी, वह दोस्तों के बनावटी सोच पर भारी पड़ेगी। एक बार मेरा कहा मानकर तो देखो।"
रोली की बात में दम था। राघव बोला,"ठीक है दीदी। एकबार मैं यह भी करके देखता हूँ।"
"शाबास मेरे भाई। उम्मीद है हम अच्छा ही करेंगे।"
राघव कुछ कहता उससे पहले उनके पापा प्रमोद जी बोल उठे," वाह मेरे बच्चों, मुझे तुम्हारी सोच पर गर्व है। मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा। ढ़ेर सारे दियों से हम अपने छोटे से घर को सजायेंगे।"
"छोटा,नहीं पापा, अपने सुंदर घर को सजायेंगे।" राघव की इस बात पर सब लोग खिलखिलाकर हँसने लगे।
दीवाली के दिन चारों तरफ जगमग सजावट थी। अचानक बिजली गुल हो गई। ऐसे में सिर्फ राघव का घर ही दियों से जगमगा रहा था। राघव के सभी दोस्त आश्चर्यचकित थे, अँधेरे में दीये से चमकता राघव का घर बहुत सुंदर लग रहा था, सभी दोस्तों ने आके राघव को खूब बधाई दी। राघव फुलझड़ियाँ छुड़ाते हुए बहुत खुश था और बच्चों के नयी उपलब्धि पर उसके मम्मी-पापा दूर खड़े होकर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
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