आखिर ये पैर है
किस-किस के???
बार-बार आता है
ये प्रश्न मेरे मन में,
ये पैर है किसके?
कटे-फटे,मटमैले
बिवाईयों से पूर्ण,
थके-हारे गंदे पैर
को देख,
विह्वल मन
फिर पूछता है...
आखिर ये पैर
है किसके???
क्या ये है, उस
किसान का,
जो जी तोड़ मेहनत
करके खेतों में
खून-पसीना
बहाता है,
पर बर्बाद फसल
से बेबस होकर
मौत को
गले लगाता है।
या यह है, उस
मजदूर का
जो काम की
तलाश में
दर-दर भटकता
और तड़पता है।
और काम न
मिलने पर
खाली हाथ
घर लौटता है।
फिर सामने पा
भूखे बच्चों को
मुँह चुराये फिरता है।
या यह है, उस बेबस
बेरोजगार युवा के,
जो रोजी-रोटी की
तलाश में भटकता है
फिर नाकामी का
ठप्पा लगाकर
नाकारा कहलाता है।
बाप की लाठी न
बन पाने के दुख से,
मुट्ठी मींच कर
रह जाता है।
या यह है, उस
कुवांरी बेटी के
बेबस पिता के।
जो घर-घर
सुयोग्य वर की
तलाश में कुंडी
खटखटाता है।
पर मोटी गठरी
के अभाव में
मुँह लटकाये
विवश हो जाता है।
या यह है,उस विवश
नारी मन की
विवशता का,
जो चक्कर
लगाती है चँहु ओर
सम्बन्धों को
सुदृढ़ करने को,
पर तानों-उलाहनों
में फँसकर
आँसू बहाती व
तड़पती है।
किसने-किसने
देखा है इन पैरों को???
किसने महसूस किया
उनके दर्द को???
किसके मन में
कौंधता है ये प्रश्न मेरी तरह,
आखिर ये पैर है किस-किस के???
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