बच्चे सिर्फ अबोध-नासमझ और अज्ञानी ही नहीं होते है। वे जो देखते, सुनते, समझते और मनन करते है..वही उनके बुद्धिमत्ता की पहचान कराती है। वे जो समझते है, उसे ही वे अपने व्यवहार में लाते है। हम उनके अल्हड़पन वाली होशियारी तब समझ पाते है, जब वे अपने व्यवहार में कुछ अनहोनी व अनूठा दिखलाते है। उसी समय हम समझ पाते है कि उनकी तर्कशक्ति कितनी तीव्र व जिज्ञासु होती है।
जमशेदपुर के सरला के पड़ोस में मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले प्रहलाद रहते थे। प्रहलाद काफी हँसमुख और मिलनसार थे। उनकी शादी भी नहीं हुई थी इसलिए वह अकेले ही रहते थे। यही कारण था कि वे सरला के परिवार से काफी घुले मिले हुए थे। सरला का पाँच वर्षीय पोता पप्पू जो प्रहलाद के साथ सुबह-शाम खेलता था और अधिकतर वहीं रहता था। पप्पू अकेला, नन्हां और बहुत चंचल बच्चा था, उसे भी मन बहलाने वाले चाचा की और प्रहलाद को भी सुबह-शाम मन बहलाने वाले साथी की जरुरत थी। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के पूरक बने हुए थे। दोनों का समय बड़ी सुगमता से बीतने लगा।
इसी बीच प्रहलाद की शादी तय हो गयी। प्रहलाद शादी के लिए गाँव गये। शादी के रस्मोंरिवाज के बाद प्रहलाद जब जमशेदपुर वापस आये तो उनकी पत्नी उषा भी उनके साथ थी।
करीब एक महीना बाद प्रहलाद को पत्नी उषा के साथ देखकर पप्पू अचम्भित हो गया। अब वह बुलाने के बाद भी प्रहलाद के पास जाने से कतराता था। प्रहलाद उसे तरह-तरह का प्रलोभन देते, उषा से मिलाने की कोशिश करते, पर पप्पू बहाना बनाकर दूर से टुकुर-टुकुर देखता, बार-बार प्रहलाद के कमरे की निगरानी करता हुआ झांकता, फिर भाग जाता, पर अंदर जाने से साफ इंकार कर देता। अब लोगों ने पप्पू को समझाना छोड़ दिया था कि दो-चार दिन बाद वह स्वयं ही जब समझेगा, तब प्रहलाद के पास आना-जाना शुरु करेगा।
एक दिन बाहर बैठी हुई सरला के पास पप्पू आकर बोला," दादी, ये चाचू पता नहीं किसको बनारस से लाकर घर में रख लिए है और उन्हें अकेले छोड़कर रोज-रोज ऑफिस भी चले जाते है। चाचू कुछ समझते भी नहीं है। यदि वह अकेला घर पाकर चाचू का कीमती सामान चुराकर भाग जायेगी, तो चाचू क्या कर पायेंगे?"
सरला अचम्भित होकर पप्पू को देखने लगी फिर उसे समझाते हुए बोली," बेटा, ऐसा नहीं बोलते है। वह तुम्हारी चाची है, जिसे तुम्हारे चाचू शादी करके ही बनारस से लाये है। तुम उनके पास जाओ तो। वह तुम्हें बहुत प्यार करेंगी। फिर वे तुम्हारी दोस्त बन जायेंगी।"
इस बात पर पप्पू मासूमियत से अकड़कर बोला," मैं नहीं जाता उनके पास और मुझे नहीं करनी है कोई दोस्ती-वोस्ती। मैं तो चाचू के जाने के बाद अक्सर बाहर खेलता हुआ चाचू के घर की रखवाली करता हूँ, ताकि वह चाचू का कोई कीमती सामान लेकर भाग न सकें।"
पप्पू अपनी होशियारी पर इतराता हुआ सरला को देखता, उससे पहले ही उसकी नजर पास में दरवाजे पर खड़ी उषा से टकरा गई। उषा दोनों की बातें सुन चुकी थी, अतः वह हँसती हुई बोली," रुको, अभी इस चाचू के नन्हें पहरेदार को बताती हूँ।"
यह कहकर वह पप्पू को पकड़ने के लिए लपकी, तो वह उनके हाथ से छूटता हुआ वहाँ से गायब हो गया।
इसके बाद पप्पू की नादानी पर सरला और उषा दोनों हँसते हुए लोटपोट होने लगी।
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