भगवान जी भी बहुत है (लघुकथा)

पाँच वर्षीय राजीव अपनी मम्मी की अंगुली पकड़े जब वह नानी के बड़े से मकान में घुसा तो वह अचम्भित होकर चारों तरफ निहारने लगा। वह पहले भी नानी के घर आया था, पर उसे देखकर यही लगता था कि जैसे वह पहली बार यहाँ आया हो।
अंदर पहुँचकर सभी लोग चाय और बातों में उलझ गये, पर राजीव चारों तरफ घुम-घुमकर पूरे घर का निरीक्षण करने लगा। इधर-उधर टहलने के बाद वह अपनी मम्मी के पास आकर बोला,"मम्मी, नानी का मकान कितना बड़ा है?"
"हाँ बेटा, नाना तहसीलदार है। यह उनका सरकारी बँगला है इसलिए इतना बड़ा है।" रागिनी राजीव को समझाते हुए बोली।
थोड़ी देर बाद राजीव फिर अपनी मम्मी के पास आकर बोला,"मम्मी, नानी के घर चारपाई बहुत है।"
"हाँ बेटा, यहाँ ज्यादा लोग है, इसलिए चारपाइयाँ भी अधिक है।" रागिनी राजीव को फिर समझाते हुए बोली।
थोड़ी देर बाद राजीव फिर माँ के पास आकर बोला,मम्मी, नानी के यहाँ बर्तन भी बहुत है।"
" हाँ बेटा, नानी के घर बहुत से लोग आते-जाते है, इसलिए यहाँ बर्तन भी बहुत है।"
राजीव बार-बार आता और किसी एक चीज की अधिकता का वर्णन करता, तो रागिनी के छोटे भाई-बहनों को बहुत मजा मिलने लगा। वे राजीव को छेड़ती। पर राजीव अपने ही धुन में मस्त बार-बार आकर रागिनी को परेशान करता। एक बार रागिनी खिज गई, तो झल्लाकर बोली,"मेरा पिंड छोड़ो। जाकर थोड़ी देर बाहर खेल लो।" उसी समय राजीव की नानी शारदा देवी पूजा करने जा रही थी। वे राजीव से बोली,"राजीव आओ, हम लोग पूजा करने चलते है। राजीव चुपचाप नानी के साथ पूजा करने चला गया।
पूजा करके लौटने पर राजीव फिर रागिनी के पास नहीं आया। वह नानी का आँचल पकड़कर बोला," नानी, आपके यहाँ भगवान जी भी बहुत है।"
यह सुनते ही सब लोग खिलखिला कर जोर-जोर से हँसने लगे। शारदा देवी राजीव पर झल्लायी नहीं, बल्कि सबके साथ हँसते हुए राजीव को गोद में लेकर पुचकारने लगी। फिर बोली,"बेटा, ये घर बड़ा है ना, तो यहाँ सब कुछ अधिक है। इसलिए भगवान जी भी अधिक है। अब तुम यही रहना। हम लोग रोज अधिक भगवान जी की पूजा करेंगे।"
तीक्ष्ण बुद्धि वाले बच्चों का ध्यान कब किधर अटक जाए, कहा नहीं जा सकता है। फिर वे तब तक अपना प्रश्न दोहराते रहेंगे, जब तक कि उन्हें संतुष्टि वाला उत्तर नहीं मिल जाता है। 
 

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