मेघालय की यात्रा (यायावरी)

मेघों के घर मेघालय राज्य में घुमकर मन को सुकून व शांति मिली

साल 2019 मई माह में जब सूर्य देव हमारे करीब आकर हमें अपनी जलती तपती गर्मी से जलाने लगे, तब हमारा मन मेघों के घर में उमड़ते-घुमड़ते बादलों के झुंड में लोटने पोटनें का करने लगा। तब हम मेघालय यानि मेघों के आलय (घर) का मेहमान बनने के लिए मेघालय पँहुच गये। 
30 मई को हम सपरिवार राजधानी ट्रेन से लखनऊ से गौहाटी आ गये। कभी सपनों सा लगने वाले गौहाटी शहर में हम आयेंगे... यह मैं सोच भी नहीं सकती थी। पर जब मौका मिला तब मैं यहाँ का लुफ्त उठाने में पीछे नहीं रही। गौहाटी के होटल में हम लोग रात्रि विश्राम किये, फिर सुबह ही टैक्सी से शिलांग के लिए निकल गए। गौहाटी से जी.एस.रोड होते हुए, जिसके एक तरफ असम और दूसरी तरफ मेघालय था, हम शिलांग पँहुच गये। रास्ते में प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण जो नजारे दिख रहे थे..हम उसकी चर्चा करते हुए मजा लेते रहे।

शिलांग 

शिलांग से पहले ही हम एक रिजार्ट में रुक गये। रिजार्ट एक पहाड़ी पर स्थित था, जो देखने में काफी सुंदर व व्यवस्थित था। इसकी खूबसूरती से मन प्रफुल्लित हो गया। मुख्य सड़क से अंदर मुड़ते ही एक नदी के पुल को पार करना पड़ा। नदी बहुत खूबसूरत था। रिजार्ट से आते-जाते हमें नदी का किनारे ही चलना पड़ता था जो स्वयं में ही आकर्षण का केंद्र प्रतीत होता था।
शिलांग में हम नोगापोह लेक, वास्को म्यूजियम, वाह लेक, पोलो मार्केट, मवाना गुफा घुमने गये। वास्को म्यूजियम के बहुमंजिली कमरों में विभिन्न संस्कृतियों और कलाकृतियों के दर्शन हुए। यहाँ के उपरी मंजिल तक हम पहुँच गये, जहाँ से पूरे शिलांग शहर का दर्शन हुआ, जो बहुत अच्छा लगा। पहले दिन हम शिलांग शहर घूमकर और खरीदारी करके रिजार्ट लौट आये।
दूसरे और तीसरे दिन - दूसरे और तीसरे दिन हम डॉकी व्यू प्वाइंट, एलिफेंटा फाल्स,एशिया का क्लियरनेस्ट विलेज, लीविंग ट्री ब्रिज, भारत-बाग्लादेश बार्डर देखने गये। 
दूसरे दिन शिलांग शहर से आगे बढ़ने पर हम छोटी-छोटी पहाड़ियों को पुलों के माध्यम से पार करते हुए आगे बढ़े। आगे बढ़ने पर एक जगह सड़क एक तरफ चेरापूंजी के लिए कट गई और दूसरी डाउकी के लिए। 

यातायात व्यवस्था - यहाँ की यातायात व्यवस्था मन को बहुत छू गई। एक कतार में एक के पीछे एक चलती-रेंगती गाड़ियाँ यातायात व्यवस्था को भंग नहीं करती थी। जिसके कारण विलम्ब हो सकता था,पर अव्यवस्था नहीं होती थी।

एशिया का सबसे साफ गाँव मावलिननॉन्म -

इसके बाद हम एशिया के क्लियरनेस्ट विलेज को देखने गये। मेघालय के इस सुदूर गाँव को 2003 में डिस्कवर मैगजीन ने एशिया के क्लीनेस्ट विलेज यानि 'सबसे साफ-सुथरे गाँव का दर्जा दिया था।  तभी से मेघालय के ईस्ट खासी हिल जिले का यह गाँव दुनियाभर के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। 

पेड़-पौधों के बीच साफ-सुथरे गाँव को देखकर हमारा मन प्रसन्नता में डूब गया। गाँव की पगडंडियों पर एक भी पत्ता गिरा नहीं था। हरे-पीले रंगों में रंगे घरों के आसपास भी कोई गंदगी नहीं थी। गाँव में बाँस का पेड़ भी बहुत था। दालचीनी के पत्ते भी खेतों में रखे थे। गाँव में कच्ची सड़क और सींमेंट की पगड़ियाँ थी जो घरों तक जाती थी।  बीच में बने चौक के एक तरफ बाजार था जिसमें हस्तशिल्प का सामान बिक रहा था। खासी पारिवारिक परिधान में सजी धजी महिलाएं इन परिधानों को पर्यटकों को बड़े उत्साह से पहना रही थी। पर्यटक भी पूरे मनोयोग से इसे पहनकर उत्साहित होते और फोटो खिंचवाते थे।  यहाँ बांस और छप्पर की  खासी जनजाति के अपने तरीके से बनी झोपड़ियाँ थी । झोंपड़ी के बाहर ही बांस के कुड़ेदान थे जिसमें सड़क पर गिरने वाले पत्तों को भी डालकर सफाई रखी जाती है। यहाँ बांस के तनों और रस्सियों से बना उँचा मचान था जिसपर चढ़कर दूर तक का शानदार नजारें को आसानी से देखा जा सकता था।  नजारा देखना तो दूर इस 85 फीट उँची मचान पर चढ़ना ही एक चुनौती थी।  जो लोग उत्साहित होकर जा रहे थे वे भी आधे दूर जाकर हिम्मत हार जाते थे। कुछ हिम्मती लोग जरूर उँपर पहुँच पाते होंगे। शालू और अनुष्का ने भी उपर जाने का हिम्मत दिखाया, पर आधी दूर से ही ये लोग वापस आ गई। यहाँ की साक्षरता दर सौ फीसदी है। यहाँ नानवेज की भी सुविधा थी पर हम लोगों ने शुद्ध भोजन चावल-दाल-सब्जी खाकर मन को तृप्त किया।

लीविंग ट्री ब्रिज -  

आगे गाडी एक जगह रोक दी गई क्योंकि यहाँ से आधा किमी दूर लीविंग ट्री ब्रिज था। सब लोग आगे बढ़ने लगे। लीविंग ट्री ब्रिज का रास्ता बहुत कठिन था। सीढ़ियाँ गीली थी पर फिसलन नहीं थी। रास्ते में कई लोगों ने उत्साहित करने की अपेक्षा हतोत्साहित करने का प्रयास किया पर मैंने मन में ठान लिया कि जब तक आसानी से रास्ता पार कर सकती हूँ, तब तक करुंगी। ज्यों ही कोई परेशानी अनुभव होगा, वहीं रुक जाऊंगी क्योंकि बच्चे इसी रास्ते आगे गये है अतः वे लौटेंगे इधर से ही। वैसे पति मुझे अकेला छोड़ नहीं रहे थे। वे कुछ दूर आगे जाते फिर मेरे लिए रुक जाते। मेरी हिम्मत काम आई। हम उस उँचे-नीचे फिसलने वाले सीढ़ियों को पार करके प्रकृति के उस अद्भुत रचना का दर्शन किए जो अद्भुत और अविश्वमरणीय था। सामने रबड़ का उचाँ वृक्ष हमारे सामने था।  जिसकी जड़े एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर पहुँचती हुई  एक अनूठा पुल बना रही थी। पुल के नीचे एक छोटी पहाड़ी नदी बह रही थी। पेड़ की जड़ों से बना पुल, जिस पर लोगों का आना-जाना जारी था...उसकी अलग ही पहचान थी। अगर मैं  हिम्मत हार जाती तो उस नजारे का कल्पना ही नहीं कर पाती, जिसका सुख मैंने पाया था। ब्रीज पर चढ़कर फाल्स के पानी तक गये और पानी का भी लुफ्त उठाये।

मेघालय के ईस्ट खासी हिल, वेस्ट खासी हिल और  जयंतिया में ऐसे कई रुट ब्रिज है। नोडियाट नामक जगह के पास तो पेड़ की जड़ो से बना दो मंजिला पुल है। जिसे डबल डेकर रुट ब्रिज कहा जाता है। इन्हें बनाने के लिए रबड़ की खास प्रजाति (फिकस इलास्टिका) के पेड़ो की जड़ों को खास तरह से गूंथकर फैलने दिया जाता है। इस मानव निर्मित पुलों को पूरा विकसित होने में करीब 15 से 20 साल लग जाते है। इनमें से कई पुलों की उम्र 500 साल तक भी होती है।

चेरापूंजी (सोहान)
रास्ते में देवदार वृक्षों से घिरे जंगल, सफेद धुंध से भरी घाटियाँ और इठलाती-मचलती नदियाँ थी। आगे जाकर हम लोग एक चाय की दुकान पर रुके। यहाँ मौसम बहुत सुहावना था। ऐसा लग रहा था जैसे हम  बादलों की नगरी में घूम रहे है। चारों तरफ पानी से लदे भूरे काले बादलों का हुजूम इधर-उधर उडता और मड़राता हुआ हमें झीनें बूंदों से नहला रहा था। हम चाय पीते हुए मजा भी ले रहे थे और फोटोग्राफी भी कर रहे थे। सुहाने मौसम के कारण कई गाड़ियाँ यही रुक रही थी। ये रुकती क्यों नहीं? क्योंकि इन्हीं नजारों का अवलोकन करने हम इतनी दूर से आये है। आगे मौसम साफ था।  फिर हम चेरापूंजी के लिए निकल पड़े। प्रकृति के पल पल बदलते नजारों का जो अनुठा रुप हमें इन रास्तों पर यँहा देखने को मिला, वह बहुत अद्भुत था। पानी की शीतलता से ओतप्रोत हरे-भरे पौधों से ढ़के उँची-उँची पहाड़ियाँ और घाटियाँ...यहाँ की खूबसूरती थी। और इस खूबसूरती में चार चाँद तब और लग गये जब लौटते समय भी हमें इन पहाड़ियों पर सफेद-काले बादल अठखेलियाँ करते हुए नजर आने लगे। जाते समय चेरापूंजी के पास मौसम साफ था,पर चेरापूंजी के व्यू प्वाइंट पर पँहुचने के कुछ देर बाद ही झमाझम बरसात भी हो गयी। हमनें बरसते पानी का भी खूब मजा लिया। हमने जी भरकर पाईनेपल का जूस पिए और मसाला कालीमिर्च, हल्दी और दालचीनी इत्यादि भी खरीदे। हमने इलेफेंटा फाल, ईको पार्क,  सेवन सिस्टर्स फाल, गुफा का लुफ्त उठाया।

उमंगोत नदी -

इसके बाद हमारी टैक्सी डाउकी की तरफ बढ़ रहा था। घनें जंगलों के बीच से गुजरती संकरी सड़क काफी सूनसान थी।कभी कभी एक-दो गाड़ी दिख जाती थी। घनें जंगल के दूसरी तरफ बांग्लादेश की सीमा थी। ये घनें जंगल भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाली तस्करी के भी गढ़ है। आगे बढ़ने पर एक पुल से गुजरे। पुल के नीचे की नदी बहुत साफ-सुथरी और दोनों देशों के बीच बहने वाली थी जिसके कारण दोनों देश के मछुआरे अपने-अपने क्षेत्र में नावों पर बैठकर मछली पकड़ रहे थे। हम लोग नाव से उतरकर पत्थरों पर पांव रखते हुए नदी तक पहुँचे। किसी नदी का पानी इतना साफ और पारदर्शी था, जिसे मैंने पहली बार देखा था। पानी में चलती नाव ऐसी लग रही थी मानों हवा में लहरा रही हो।यह समुंद्र तल से 1800 मी की उँचाई पर मौजूद शिलांग पीक से निकलने वाली उमंगोत नदी थी। 1932 में बना नदी का पुल नेशनल हाईवे 40 का हिस्सा है, जो भारत और बांग्लादेश के बीच एक अहम् कड़ी बनकर नदी के छोरों पर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ रही थी। भारत और बांग्लादेश के बीच कोयले, चूना, पत्थर से लेकर संतरा और अन्नानास तक का व्यापार होता है, जिसमें इस पुल की बहुत बड़ी अहम् भूमिका है।

भारत-बॉगला देश बार्डर -

डाउकी के पास भारत और बांग्लादेश को जोड़ने वाली उमंगोत नदी के किनारे हमने पहले पानी से अठखेलियाँ की उसके बाद बोटिंग किए। बोटिंग के समय कभी जब नाव डगमगाने लगती तो बच्चे डर जाते थे। फिर भी यहाँ नदी के आसपास और बोटिंग में बहुत ही मजा आया। हम लोग बहुत ही ज्यादा आनंद से सराबोर हुए। बांग्लादेशी बच्चे हाथों में बंद डिब्बे में कुछ बेच रहे थे। वे सहमें हुए लग रहे थे। हमने भी एक डिब्बा खरीद लिया। कुछ लोग रात में यहीं ठहरने और कैंपिंग के लिए टेंट लगाते हुए मिले। इसके बाद हम भारत-बांग्लादेश के सिलहट बार्डर पर गये। जो डाउकी कस्बे के बाजार के छोर पर था। सरहद क्या था?हम देखने लगे। एक बड़ा सा गेट था जिसके दोनों तरफ बैरिकेड लगे थे। यह भारत-बांग्लादेश की सांकेतिक सीमा थी। दोनों तरफ चेकपोस्ट थे जिसके बाहर दोनों देश के सैनिक गश्त लगा रहे थे। गेट पर लिखा था,'भारत-बांग्लादेश मैत्री द्वार'। पड़ोसी देश के सरहद तक पहुँचना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वँहा के स्वच्छ साफ हवा में सांस लेना बहुत सुखदाई था। कुछ देर सीमा पर बिताने के बाद हम वापस लौट आये। 

शाम को हम शिलांग स्थित रिजार्ट में लौट आये। और अगले सफर की तैयारी करने लगे।
                         

अन्य जानकारियाँ -

चेरी ब्लॉसम इवेंट -सड़क के किनारे फूलों से ढ़के पेड़ और सड़क पर ढ़ेर सारी सफेद-गुलाबी फूलों के बिखरे चादर चेरी ब्लॉसम मौसम के प्रारम्भ होने को दर्शाता है। चेरी के पेड़ो पर सफेद-गुलाबी और बैगनी रंग के फूल लगे होते है। यह सीजन बहुत छोटा पर अद्भुत होता है। इसे देखने के लिए सैलानी महीनों इंतजारी करते है क्योंकि इस समय ऐसा लगता है कि जैसे स्वर्ग ही जमीन पर उतर आया हो।
भारत में भी चेरी ब्लॉसम इवेंट का आयोजन शिलांग और मेघालय के नवम्बर माह में किया जाता है। ऐसे समय में यहाँ के चेरी के पेड़ सफेद-गुलाबी और बैगनी फूलों से भरा हुआ था। 

असम - शिलांग से हम लोग सुबह ही टैक्सी से गौहाटी के लिए निकले। हमारी ट्रेन रात में थी। ड्राइवर से पहले ही तय था कि वह हमें घुमाते हुए स्टेशन छोड़ेगा। लौटने का मन न होने के बावजूद भी हमें लौटना ही था। अतः हम लौटने के लिए रिजार्ट से निकल पड़े प्राकृतिक संपदाओं को निहारते और उत्साहित होते हुए। सबसे पहले हम एक बड़े से क्षेत्र में बने मंदिर में गये। यहाँ की भव्यता के साथ जो मनोरंजन हुआ..वह तो हुआ ही, पर जो प्रसाद के रुप में लड्डू मिला वह बहुत स्वादिष्ट और अलग था। गाड़ी में सबने लड्डू का मजा भरपूर लिया।

कामाख्या मंदिर - आगे हमारी गाड़ी कामाख्या देवी के मंदिर के लिए चल दी। घुमावदार पहाड़ी पर बने सड़क पर बढ़ती हुई गाड़ी में बैठे हुए हम लोगों को सड़क और वहाँ के मनोहर दृश्य ने मन मोह लिया।
मंदिर की ख्याति बहुत थी। भीड़ न होने के कारण हमें दर्शन आसानी से मिल गया। देवी माँ का दर्शन हम लोग पूरी निष्ठा व भक्ति भाव से किए।

ब्रम्हपुत्र नदी - यहाँ से निकलकर हम ब्रम्हपुत्र नदी के पास पहुँचे। पुल पर बहुत जाम था। हमारी गाड़ी धीरे-धीरे सरक ही रही थी।पर हमें तो मनोरंजन ही करना था.. वह हम कर रहे थे।
ब्रम्हपुत्र नदी की विशालता व विक्रांतता सुनते आ रहे थे। आज देख लिए तो अच्छा ही अनुभव हुआ। घुमते-घामते हम ठीक समय पर स्टेशन पहुँच गये।
हमारी यात्रा बहुत सुखद और अनुभवों से पूर्ण थी। यहाँ इतना अच्छा लगा कि यदि दुबारा मौका मिलेगा तो हम फिर आयेंगे।

 
कैसे पहुँचे- शिलांग के उमोई हवाईअड्डे या गुवाहाटी के हवाई अड्डे तक आप फ्लाइट से आ सकते है। गुवाहाटी तक ट्रेन से भी आया जा सकता है। वहाँ से टैक्सी के द्वारा शिलांग पहुँचा जा सकता है। शिलांग से आगे घुमने के लिए भी टैक्सी मिलती है।

कहाँ ठहरे- शिलांग में ठहरने के लिए होटलों की कमी नहीं है। शहर से थोड़ा बाहर जाने पर अच्छे रिजार्ट भी उपलब्ध है। उमंगोत नदी के किनारे कैंपिंग का आनंद भी ले सकते है। मावलिननॉग्म में भी रहने के लिए होम स्टे मिल जाता है।

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