सच्ची खुशी का राज (बाल कहानी)

कार से उतरते ही तोमर सिंह माली मुरली से बोले," मुरली, बच्चे तुम्हारे पास क्या कर रहे हैं? उनसे कह दो चबूतरे पर जा कर खेले।" तोमर सिंह की कड़कती आवाज सुनते ही मुरली के पास खेलते बच्चे चंदू और चंदा डर कर एक दूसरे का हाथ पकड़कर पेड़ों के पीछे छुपने का असफल प्रयास करने लगे। वे छुप नहीं पाए, तब वे चबूतरे की तरफ भागे। डर के कारण वे सहमें हुए थे। आगे बढ़ते ही तोमर सिंह की नजरें बरामदे में खामोश खड़े अपने बेटा आकाश से टकराई। वे आकाश से बोले," बेटा, तुम यहाँ अकेले क्या कर रहे हो? अंदर आओ। देखो, मैं तुम्हारे लिए कितना सुंदर खिलौना गिफ्ट में लाया हूँ?" आकाश पापा के साथ अंदर आ गया। तोमर जी रिमोट से चलने वाला हेलिकॉप्टर उसे पकड़ाते हुए बोले," देखो, कितना सुंदर हेलिकॉप्टर है? उड़ाओगे, तब तुम्हें बहुत मजा आएगा।" आकाश चुपचाप पैकेट तोमर जी के हाथ से पकड़ कर एक तरफ रख दिया। उसकी इस हरकत पर तोमर जी गुस्सा कर बोले ,"क्या इसे खोल कर उड़ाओगे नहीं? तुम्हारे लिए प्यार से खिलौना लाता हूँ , पर तुम्हारा मुँह हमेशा लटका रहता है। लाओ मैं ही इसके पंखों को जोड़ कर उड़ाता हूँ।" तोमर जी पंखों को जोड़ कर हेलिकॉप्टर को उड़ा दिए। आकाश हेलिकॉप्टर को उड़ता देखता रहा। हेलिकॉप्टर उड़ कर नीचे गिरा, तब वह उसे उठा कर अनमने मन से मेज पर एक तरफ रख दिया। फिर वह पापा के पास जा कर धीरे से बोला," पापा, आप वह खिलौना क्यों नहीं लाते हैं, जो चंदू गोल-गोल घुमा कर नचाता है।" तोमर जी चौंक कर बोले," बेटा, वह छोटे लोगों का खेल होता है। उसे तुम्हारे जैसे समझदार और अच्छे बच्चे नहीं खेलते। उससे बहुत अच्छा और महगां खिलौना तुम्हारे पास है। तुम उसी से खेलो।" यह कह कर तोमर जी अपने काम में व्यस्त हो गए। उन्होंने आकाश की तरफ ध्यान नहीं दिया। आकाश माँ के पास चला गया। उसे हेलिकॉप्टर में कोई रुचि नहीं थी। तोमर जी सरकारी सेवा में कार्यरत बड़े इंजीनियर थे। अपने काम में चुस्त-दुरुस्त, कड़क स्वभाव और अनुशासन प्रिय होने के कारण वे काफी लोकप्रिय थे। तोमर जी अपने बेटा आकाश के प्रति काफी सजग और सतर्क थे। बेटा उन्हीं की तरह अफसर बने, इसका वह पूरा ध्यान रखते थे।इसीलिए उन्हें आकाश का माली के बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं था। बेटा को सारी सुविधा उपलब्ध थी। घर खिलौने से भरा था। पर आकाश खुश नहीं था। तोमर जी बेटा के मन की पीड़ा को समझने में असमर्थ थे। तोमर जी के घर से निकलते ही आकाश फिर बरामदे में आ गया। वह ललचाई नजरों से चंदू को देखने लगा। चंदू के पास लाल रंग का लट्टू था। वह लट्टू को नचाता तो नाचते लट्टू को देख कर उसकी बहन चंदा ताली बजा कर नाचने लगती। लट्टू के रुकते ही वह लपक कर लट्टू को उठाती और चंदू को पकड़ा देती। चंदू फिर लट्टू पर रस्सी लपेटने लगता। दोनों अपने खेल में मस्त थे। तोमर जी ने बच्चों के बीच में लक्ष्मण रेखा खींच दिया था। जिससे आकाश चंदू के पास जा नहीं सकता था। वह कभी जाने की कोशिश करता तो मुरली उसे रोक देता क्योंकि मुरली को तोमर जी का सख्त निर्देश था कि यदि उसके बच्चे आकाश के साथ खेलते मिलेंगे, तब उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। मुरली की पत्नी नहीं थी। बच्चों को साथ लाना और उनको आकाश से दूर रखना उसकी मजबूरी थी। आकाश अपने पापा और मुरली के पाबंदी के कारण मायूस हो जाता। चंदू के साथ खेलने की उसकी इच्छा तब और अधिक बलवती हो जाती। वह ऐसे मौके की तलाश में रहता जब उसे चंदू के पास जाने को मिलता। एक दिन चंदू का लट्टू गायब हो गया। लट्टू को ढूढ़ता हुआ वह मुरली के पास पहुँच कर बोला," पापा,मेरा लट्टू गायब हो गया। मैं क्या करु?"
"तुम चंदा के साथ खेल लो। मैं बाद में तुम्हारा लट्टू खोज दूगां।" काम में व्यस्त मुरली चंदू को बहलाने के लिए बोला। लट्टू लेने वाला चोर कोई और नहीं बल्की आकाश ही था। लट्टू को ललचाई नजरों से घूरने वाले आकाश को एकदिन लट्टू चबूतरे पर पड़ा दिख गया। वह चुपके से लट्टू को लपका और जेब में रख लिया। अचानक मिले इस अमूल्य निधि का उपयोग वह खुले घर में नहीं कर सकता था। एकांत छत उसे उपयुक्त स्थान लगा। नाश्ता करके वह अकेला ही चुपके से सबकी नजरें बचाता हुआ छत पर पहुँच गया। वह रस्सी को लट्टू पर वैसे ही लपेटने लगा जैसे चंदू लपेटता था। वह लट्टू को फेकता तो लट्टू छिटक कर दूर चला जाता। वह नाचता नहीं था। एक बार नहीं जब बार-बार उसका प्रयास विफल हो गया, तब वह निराश हो कर नीचे लौट आया। उसने सोचा,' उससे न नाचने वाला लट्टू उसके लिए बेकार है। वह ऐसी लट्टू ले कर क्या करेगा? पहले उसे लट्टू नचाना सिखना पड़ेगा, जो उसे सिर्फ चंदू ही सिखा सकता है। उसे किसी न किसी प्रकार चंदू से दोस्ती करनी पड़ेगी।' उसने चुपके से लट्टू वही वापस रख दिया। 
दूसरे दिन मौका पा कर वह चंदू के पास गया। उसके हाथ में उसका एक खिलौना भी था। उसने वह खिलौना चंदा को दे कर चंदू से बोला," साँरी दोस्त! तुम्हारा लट्टू मैं ही उठा कर ले गया था। मैं इसे नचाना चाहता था, पर यह मुझसे नाचता ही नहीं। क्या तुम मुझे इसे नचाना सिखा दोगे?" चंदू चंदा से खिलौना ले कर आकाश को वापस करते हुए बोला ,"हम इससे खेल नहीं सकते। परंतु मैं तुम्हें लट्टू नचाना जरुर सिखा दूंगा।" चंदू लट्टू पर रस्सी लपेटने लगा तभी तोमर जी की गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ा। 
"ठीक है। मैं तुमसे बाद में मिलूंगा।" यह कहते हुए आकाश अपना खिलौना ले कर घर के अंदर भागा। वह पापा के डाँट से ड़रता था। आकाश अपना खिलौना वँहा छोड़ नहीं सकता था क्योंकि वह जानता था कि उसके पापा को चंदू पर चोरी का इल्जाम लगाते देर नहीं लगेगा। आकाश का खिलौना कोई और खेले यह तोमर जी को पसंद नहीं था और चंदू को ड़ाट पड़े यह आकाश नहीं चाहता था। आकाश को अपने पापा का यह कहना कि माली और घर में काम करने वाले लोग छोटे आदमी होते है....बहुत बुरा लगता था। आकाश के बाबा भी खेती करते थे, तो क्या पहले वे लोग भी छोटे लोग थे ? यह पूछने की हिम्मत आकाश में नहीं था। अफसर बनने के कारण उसके पापा का जो रौबदार व्यवहार था, वह आकाश को पसंद नहीं था। 
छुट्टी का दिन था। तोमर जी टूर पर जाने की तैयारी में व्यस्त थे। यह जान कर आकाश का मन मयूर नाचने लगा । वह मन ही मन चंदू के साथ खेलने का प्रोग्राम बनाने लगा । पापा की गाड़ी जैसे ही घर से बाहर निकला, वैसे ही आकाश दौड़ता हुआ चंदू के पास पहुँच गया। वह चंदू और चंदा को मना कर छुपते छुपाते छत पर पहुँच गया। उसे छत सुरक्षित स्थान लगा जहाँ उसे चंदू के साथ खेलते हुए कोई देख नहीं सकता था, जिससे उन लोगों की शिकायत तोमर जी के पास पहुँच न पाए। छत पर पहुँच कर चंदू आकाश को लट्टू पर रस्सी लपेटना और फिर उसे फेंकना सिखाने लगा। आकाश रस्सी लपेटता और लट्टू फेंकता ...पर उससे लट्टू नाचा ही नहीं। चंदू डर रहा था। वह घबड़ाया हुआ था। अतः वह बार-बार आकाश को समझाता, झिझकता फिर झल्ला कर कहता ,"तुम सीख नहीं पाओगे। मुझे जाने दो...वरना मेरे पापा मुझे बहुत डाटेगें।" आकाश लगन का बहुत पक्का था। वह अनुनय और विनय से चंदू को मना लेता। काफी प्रयास के बाद अचानक आकाश का लट्टू नाचने लगा। वह खुश हो कर ताली बजाते हुए गोल-गोल घूमने और जोर से बोलने लगा," मैंने सीख लिया...मैंने सीख लिया।" आकाश की इस सफलता पर चंदू और चंदा भी खुश हो कर ताली बजाते हुए कूदने लगे। अचानक आकाश सहम गया। सामने तोमर जी जलती आँखों से खड़े उसे घूर रहे थे। वह भयभीत हो कर सोचने लगा,' पापा यहाँ कैसे आ गए? वे तो चले गए थे।' चंदू और चंदा भी चुपचाप खड़े हो गए। डर से सहमें आकाश ने थोड़ी हिम्मत दिखाई। वह अपना कान पकड़ कर तोमर जी के सामने आ कर बोला," साँरी पापा, आप जो सजा देंगे उसे मैं भुगत लुंगा, पर आप चंदू को कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि मैं ही जबर्दस्ती इसे यहाँ ले कर आया था। मुझे लट्टू नचाना सीखना था, जो सिर्फ चंदू को ही आता था।" आकाश का चंदू को बचाने के लिए माफी मांगना तोमर जी के दिल को छू गया। वे नरम पड़कर एकटक आकाश को निहारनें लगे। लट्टू नचाते समय आकाश जितना खुश था...वैसी खुशी आकाश के चेहरे पर तोमर जी बहुत दिन बाद देखे थे। आकाश का हँसता खिलखिलाता चेहरा ...जिसे देखने के लिए वे काफी दिनों से लालायित थे ...वही उनकी उपस्थिति में क्षण भर में कुम्भला कर मलीन हो गया। इस अंतर को महसूस कर तोमर जी सोच में पड़ गए। वे सोचने लगे,'बड़े अरमानों से खरीदा उनका मँहगा से मँहगा खिलौना भी आकाश को वह खुशी नहीं दे पाया, जो इस छोटे से लट्टू ने और चंदू और चंदा के साथ ने दिया।' तोमर जी की आँखें खुल गई। पहले तो वे कुछ नमर पड़ गये, फिर खामोशी से कुछ सोचने के बाद वे बोले," ठीक है। तुम लोग खेलो। मैं जाता हूँ।" यह कह कर वे जाने के लिए मुड़ गए। ऐसे मौके पर सदैव डा़टने -डपटने वाले तोमर जी ने आज उन्हें साथ -साथ खेलने की खुली और पूरी छुट दे दी। यह समझ में आते ही बच्चे ताली बजा कर कूदने और नाचने लगे। ऐसी स्वतंत्रता उन्हें पहली बार मिली थी, जिसका वे भरपूर आनंद उठाने लगे। थोड़ी देर बाद तोमर जी पुनः पीछे मुड़े। बच्चों की उन्मुक्त हँसी ने तोमर जी को सच्ची खुशी का राज समझा दिया। वे समझ गए कि बच्चों के लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं होता और न ही उनके मन में कोई छल-कपट, द्वेष भाव या मनमुटाव होता है। इसलिए उनकी गलत धारणा...उनकी भूल थी। मिलजुल कर जिंदगी जीना ही सच्ची खुशी है...वही सच्ची खुशी जिसमें डूबे तीनों बच्चे उछल-कूद कर जश्न मना रहे थे। और जिसे वे अब तक बच्चों से छिनते आ रहे थे। बच्चों की सच्ची खुशी के उन्माद से अपने सोच को बदलने वाले तोमर जी बच्चों पर भरपूर नजर डाल कर नीचे जाने के लिए मुड़ गये। अपनी आजादी के जश्न में ड़ूबे तीनों बच्चे अब बेफिक्र व बेखौफ थे। उनकी उन्मुक्त खुशी व उन्माद उनके लबों पर थिरकने लगा। वे बल खा-खाकर लोट पोट होने लगे।

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