ट्रेन में तरबूज (संस्मरण)

तरबूज एक ऐसा फल है, जिसे उसके टपकते रस के साथ खाना बहुत कुछ अजीब लगता है, पर उसी तरबूज पर मेरा अनुभव बहुत रोचक और आनंददायक था।
गर्मी का मौसम था। मैं अकेले लखनऊ से बनारस जा रही थी। भीड़ इतना अधिक था कि बोगी के अंदर पैर जमाना ही कठीन था। मैं किसी तरह एक बोगी में घुस गई और अपना अटैची एकतरफ खड़ा करके उसी पर बैठ गई।
ट्रेन रफ्तार पकड़ ली, तब मैं सकून से बोगी के अंदर बैठे लोगों का अवलोकन करने लगी। ठसाठस भरे भीड़ में सामने की सीट पर एक बुजुर्ग दम्पत्ति बैठे थे। करीब एक घंटे का सफर पूरा होने पर मेरी नजर जब बुजुर्ग दम्पति पर पड़ी तो मैंने देखा कि वे एक तरबूज के कटे आधे-आधे भाग को लेकर उसका गुदा हाथ से खा रहे है। मेरी नजर बार-बार उनकी तरफ खिंचने लगी।
मैंने देखा, खाते हुए वे बीज को उसी कटे भाग में डालते जा रहे है। गुदा जब समाप्त हो गया, तब वे तरबूज के रस को आसानी से पी गये और फिर आराम से तरबूज के बचे छिलके को बाहर फेंक दिए।
इतने भीड़ भरे माहौल में इतने सफाई से तरबूज खाने की क्रिया देखकर मैं आश्चर्यचकित होकर सोचने लगी कि यदि काम को सुचारूरूप से सुव्यवस्थित ढ़ंग से सम्पन्न किया जाए तो वह आकर्षण का केन्द्र बिंदू बन जाता है। वरना भीड़ भरे माहौल में रस टपकाने वाले तरबूज को खाना कितना कठिन था, पर उस बुजुर्ग ने जिस सफाई से उसे खाकर उदाहरण प्रस्तुत किया, वह बहुत शानदार, सुंदर और अनुकरणीय था।
इस अनुभव से मेरा सफर सुखद व मनोरंजन से पूर्ण लगा। अब तक मैं भीड़ भरे मुसीबत को भूल चुकी थी।

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