चंदन वन में रहने वाली लल्ली लोमड़ी बहुत चालाक थी। वह लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इतनी चिकनी चुपड़ी बातें करती कि लोग उसके झाँसें में फँस जाते। चिकनी चिपुड़ी बातों के बीच में वह उनका शिकार करने की कोशिश भी करती। ऐसे समय में उसके चंगुल से जो बच जाता, वह उससे सतर्क हो जाता और अपने साथियों को भी सतर्क करता।
लल्ली लोगों की सतर्कता को समझने लगी थी। फिर भी वह हमेशा अपने लिए नये शिकार की तलाश में इधर-उधर भटकती रहती थी।
एकदिन मालू कौवा अपने पेड़ पर बैठकर अपने बच्चे को रोटी खिला रहा था। ठीक उसी समय लल्ली मस्ती में चौकस नजरों से शिकार की तलाश में घुमती फिरती हुई वहाँ आ गयी।
मालू को रोटी खिलाते देखकर वह बोली," मालू, तुम बहुत चालाक और बुद्धिमान हो। फिर तुम यह बेवकूफी क्यों कर रहे हो?"
"मैं कौन सी बेवकूफी कर रही हूँ, लल्ली बहन।" मालू आश्चर्यचकित हो गया। उसके काँव-काँव करके बोलते ही उसके चोंच से रोटी छूटकर नीचे जमीन पर गिर गया।
"बच्चे को अपने चोंच से खिलाकर बच्चे को आलसी बना रहे हो। वह अपना भोजन खोजकर खायेगा तभी तो आत्मनिर्भर बनेगा। चलो, हम पास के सुंदर पार्क में सैर को चलते है और वहीं मौज-मस्ती करेंगे। तभी तुम्हारे बेटा को भोजन ढूंढ़कर खाने का मौका मिलेगा।"
यह सुनकर मालू को आश्चर्य हुआ। वह लल्ली से बोला, "अरे लल्ली बहन, मेरा बेटा अभी बहुत छोटा है। वह अपने आप कुछ खोज कर खा नहीं पायेगा।"
लल्ली बोली," तुम कहाँ अपनी पुरानी परम्परा में फँसें हो? बच्चे को जागरुक और सक्षम बनना है कि नहीं। उसको आगे बढ़ाने के लिए तुम्हें थोड़ा त्याग तो करना ही पड़ेगा। इसलिए जल्दी से नीचे आओ और बच्चे को समर्थ बनने दो।"
लल्ली की मीठी बोली में मालू फँस गया। कुछ सोचकर वह कावँ-कावँ करता हुआ बोला," तुम ठीक कह रही हो, लल्ली बहन, मैं जल्दी से आता हूँ। तुम पेड़ के नीचे बैठकर मेरा इंतजार करो। मैं बच्चे को थोड़ा समझा तो दूं, तभी वह अपना भोजन ढूँढने को तैयार होगा।"
मालू के काँव काँव करने से गिरी रोटी को उठाकर लल्ली बोली,"तुम जब तक बच्चे को समझाओं, तब तक मैं यह रोटी खा लेती हूँ।" यह कहकर मालू गिरे रोटी को उठाकर खाने लगी।
बच्चे की रोटी को उठाकर लल्ली को खाते देखकर मालू सतर्क हो गया। उसे समझ में आ गया कि यह लल्ली बहुत लालची और चालाक हैं, तभी यह बच्चे की गिरी रोटी उठाकर खा रही है। यह मुझे अपने जाल में फँसाना चाहती है। इससे बचकर रहना पड़ेगा। यह सोचकर मालू नीचे आया ही नहीं। वह अपने बच्चों के पास घोंसलें में ही बैठा रहा।
लल्ली बार-बार आवाज लगाती रही पर मालू ने कोई जवाब दिया ही नहीं। मालू को अपने जाल में फँसता न देखकर लल्ली निराश होकर वँहा से चली गयी।
अब मालू सावधान हो गया। वह लल्ली को जब भी शिकार के खोज में भटकता देखता तब वह लल्ली के धूर्त स्वभाव से सबको आगाह करता। वह जोर-जोर से बोलता," कावँ- कावँ- कावँ, लल्ली से हो जाओ सावधान।" इस प्रकार वह लल्ली के आने की सूचना सबको देता। जिससे आसपास के जीव-जन्तु सावधान हो जाते। इस प्रकार जो नादान जीव-जन्तु उसके बोली को समझ नहीं पाते थे, वहीं लल्ली के चंगुल में फँसते थे। ऐसे समय मालू बहुत दुखी हो जाता। पर उसने सबको सतर्क करने का अपना काम छोड़ा नहीं था।
मालू की सतर्कता के कारण लल्ली को मिलने वाले शिकार कम हो गये। मालू के कारण लल्ली बहुत परेशान हो गई। अब वह लोगों को अपने चिकनी-चिपुड़ी बातों में फँसाना छोड़कर चुपके से घात लगाकर शिकार करने लगी थी।
एकदिन बेनू मेमना मैदान की हरी घास को आराम से चर रही थी। पीछे से लल्ली धात लगा कर झाडियों के बीच में छुपी थी। पेड़ पर बैठा मालू काँव-काँव की रट लगाए जा रहा था,"कावँ-कावँ-कावँ, लल्ली से हो जाओ सावधान।"
उसके काँव-काँव का जब कोई असर बेनू पर नहीं हुआ तब वह मैदान में आकर बेनू के सर पर चिल्लाने लगा। उसके काँव-काँव से परेशान बेनी झल्लाकर बोली," क्यों अपने बेसूरे सूर का राग मेरे सर पर बजा रहे हो। यहाँ से चले जाओ। मुझे चैन से घास चरने दो।"
"जब बचोगी, तभी तो चैन से घास चरोगी। लल्ली पीछे घात लगाकर बैठी है। मैं तो चला। अब अपनी जान बचाओ।" यह कहकर मालू जाने लगा तब बेनू को झाड़ियों में आहट सुनाई पड़ी। वह घबड़ाकर जोर से चिल्लाने लगी," मुझे छोड़कर मत जाओ मालू भैया। मै आपकी बात समझ नहीं पायी थी इसलिए ऐसा बोल दी। मुझे माफ कर दो।" मालू रूक गया। वह नन्हें बेनी को अकेला छोड़ना नहीं चाहता था।
मालू को रूकता देखकर लल्ली घबड़ा गयी। वह झाड़ियों से निकलकर बेनी को झपटने वाली थी तभी मालू पीछे से अपनी चोंच उसके पीठ में गड़ा कर उड़ गया। लल्ली तिलमिला कर पीछे मुड़ी तब तक मालू घात लगाकर बार-बार उसे चोंच से चोट पॅहुचाने लगा था। मालू के आक्रामक रुख से लल्लीे घबड़ा कर उसे पकड़ने की कोशिश करती। लेकिन मालू के सतर्कता के आगे लल्ली विफल हो गई जंगल में भाग गयी। बेनू भी दौड़कर भागने लगी। उसी समय उसे उसकी माँ मिल गयी। बेनू की बातें सुनकर उसकी माँ बोली," आज तुम मालू के कारण बच गयी। पहले मालू अंकल को धन्यवाद बोलो।"
"माँ, मैंने मालू अंकल की बातें न सुनकर बहुत बड़ी गलती की है। मुझे इस बात की सजा मिल ही जाती, यदि मालू अंकल लल्ली पर हमला नहीं करते।" बेनू अपनी गलती पर पछताते हुए बोली।
बेनू की माँ बेनू को प्यार करते हुए बोली," बेटा, कभी दूसरें की बातों को सुनने और समझने में विलम्ब नहीं करना चाहिए। हरपल सतर्क होकर अपना काम करो। इसलिए दूसरों की बातों को पहले सुनों और फिर उस पर अमल करो।"
"हाँ माँ, आपकी बातें मैं समझ गयी। मालू अंकल, मुझे माफ कर दीजिये। अब ऐसी गलती नहीं होगी।"
'मात खा गई, लल्ली' इस खुशी को मालू काँव-काँव करके दिखा रहा था। थोड़ी देर बाद मालू बोला," ठीक है बेनू। पर आगे से सदैव सावधान रहना। अब अंधेरा घिरने वाली है। इसलिए सतर्कता से तुम लोग घर जाओ। कल फिर मिलेंगे।" यह कहकर मालू उड़ गया। बेनू की माँ बेनू को समझाते हुए घर की ओर चली गयी।
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