बच्चों से अति लगाव के कारण ही मैंनें अपना अधिकांश समय बच्चों के मध्य ही व्यतीत किया है। यही कारण है कि उनकी समीपता से अति आनंद की अनुभूति मिलने के साथ ही साथ मुझे उनको समझने, परखने और उनके मनोभावों को पढ़ने का सुखद अनुभव हुआ।
बच्चे अपनी बाल सुलभ क्रिड़ाओं के द्वारा निरन्तर कुछ न कुछ अजीबोगरीब शरारते करने में व्यस्त व मस्त रहते है।उनका मस्तिष्क हरपल किसी न किसी समस्या को हल करने के उंधेड़बून में लगा रहता है, जिसके कारण वे कभी खाली नहीं बैठते है।
बच्चे रोते है...तो अपनी पीड़ा बताने या अपनी बात मनवाने के लिए, वे हँसते है...तो अपने या लोगो को बहलाने या खुश करने के लिए, वे खेलते है...तो अपने मनोरंजन और शारीरिक सुदृढ़ता के लिए या कुछ उलजलूल शरारतें करते है...तो अपनी जिज्ञासा व उत्सुकता शांत करने या नई उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए।
यही कारण है कि बच्चे जाने अनजाने ऐसी घटनाएं घटित कर देते है, जो दूसरों के लिए आकर्षक, मनोरंजक और दिल को छूने वाली होती है।
बच्चों के इन्हीं मनभावन गतिविधियों के सूक्ष्म अवलोकन से ही मेरी बाल कहानियों की नींव पड़ी है। मैंनें अपने अनुभवों को कलमबद्ध करके अपनी बाल कहानियों का संग्रह....के रुप में प्रतिरुपित करके प्रस्तुत किया है।
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