कुरकुरे-चाकलेट गया (लघुकथा)

बच्चे चिप्स-कुरकुरे-टाफी के बहुत दिवाने होते है। यहीं कारण है कि उन्हें रिश्तों में वही संबंध ज्यादा प्यारा होता है, जो उनको ये चीजें उपलब्ध कराता है। 
मोहित-मोहिनी को अपने बाबा प्रेम प्रकाश जी से लगाव इसलिए ज्यादा था, क्योंकि बाबा बिना किसी के फरमाइश के ही ये चीजें घर पर लाकर बच्चों को खुश कर देते थे। दादी अंजली के पास इन चीजों के लिए बच्चों की दाल नहीं गलती थी, इसलिए इन चीजों के उम्मीद में कोई दादी के पास फटकता भी नहीं था।
एक बार प्रेम प्रकाश जी और अंजली बेटा मयूर के पास गुडगांव ज्यादा दिन टिक गये। मौज-मस्ती के बीच बच्चों की इच्छाएं भी पूरी हो रही थी। इसलिए सभी खुश और मस्त थे।
कुछ दिनों बाद अंजली को छोड़कर प्रेम प्रकाश जी लखनऊ वापस जाने लगे। बच्चों ने बाबा का पैर छुआ। बाबा आगे बढ़े। तभी नन्हा मोहित, दीदी मोहिनी के कान में फुसफुसाया," दीदी, अब तो कुरकुरे-चाकलेट गया।" यह सुनते ही मोहिनी चौंककर चारों तरफ इस भय से देखने लगी कि कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया है। बच्चों का दिमाग कितना सतर्क व तेज होता है...यह मोहित के फुसफुसाने और मोहिनी के चौंककर देखने से पता चलता है।
कहने को तो मोहित ने धीरे से फुसफुसाया था, पर उसकी कही बातें सबके कानों से टकरा गई । बातों का मर्म बहुत दिलचस्प व अनोखा था और सबके दिल को छू भी गया। इसलिए बाबा के यात्रा पर जाने के विदा बेला पर भी सब लोग जोर से हँसने लगे।
आगे बढ़ते बाबा भी पल भर के लिए ठिठक कर बच्चों को प्यार से देखकर मुस्कुरा दिए। और आगे बढ़ गये। तब दादी हँसकर बच्चों से बोली," अच्छा, तो तुम लोगों को बाबा से नहीं, बल्कि बाबा के लाये कुरकुरे-चाकलेट से प्यार था। बहुत चालू हो। अब मैं समझ गयी तुम लोगों के मतलब को।"
मोहित बोला," दादी, मेरे कहने का मतलब ये नहीं था। मैं आप दोनों को बहुत प्यार करता हूँ।" यह कहकर वह मोहिनी के पीछे छिपने का असफल प्रयास करने लगा तो अंजली उसे पकड़कर अपने गोद में समेट ली।

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