वो ऐसी ही है (कविता)

फूल सरीखी वह लुभावनी है,
चितवन मन, उज्वल तन है।
चाँद सी ही चाँदनी बिखेरती
शीतलता फैलाती है घर में।

नदी सरीखी गतिशील है वह,
कल-कल करती बहती रहती।
लिए कोमलता का आभास देती,
वर्षाकाल में जब वह सावन सी।

खोल पंख सुनहरे परिंदों जैसी,
इठलाती जब वह डाली-डाली।
चहकती इधर-उधर समा बाँधती,
स्वंछन्द उड़ान भरती है आँगन में।

शांत-सौम्यता की मूरत धरा जैसी,
सरल हृदय, मृदुल मुस्कान लिए।
दीपक की लौ सी आलौकित होती,
मधुर-मुस्कान का तेज बिखेरती।

आती जब वो मेरी बाहों के घेरे में,
तब लगती बिलकुल गुड़िया जैसी।
शालिनता से मोहपाश में बँधी हुई,
ओस की सी मादकता में डूबी हुई।

वह मुझ पर फिदा, मैं उस पर फिदा,
एकसूत्र में बँधतें और तरंगित होते।
वह मुझमें समाती, मैं उसमें समाता,
यही अटूट बँधन है मेरा, मेरी पत्नी से।

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