तेज हवा और आँधी के कारण जब पेड़-पौधे जोर-जोर से हिलने लगे, तब सभी जीव-जंतु मौसम के बदलाव को महसूस कर अपने घरों में पनाह लेने के लिए तेज गति से भागने लगे। पक्षियों का झुंड भी अपने-अपने घोंसलें में छुपने के लिए जल्दी जल्दी उड़ान भरने लगे। थोड़ी ही देर में बादलों के गरजने ,चमकने और तड़कने के कारण जोर-जोर की दिल दहलाने वाली आवाजें आने लगी।
चंदन वन में सड़क के किनारे स्थित विशाल बरगद के पेड़ पर बहुत से पक्षियों के साथ ही नन्हीं गुलकी बुलबुल अपने मम्मी-पापा गुल्लू और पोनी बुलबुल के साथ रहती थी। उसके सामने हवा इतने रफ्तार में पहली बार बह रहा था। गुलकी को डर नहीं लगा। वह मस्ती के मूड में थी। तभी वह उत्सुकतावश बार बार घोंसलें से बाहर सर निकालकर झांक रही थी ।
उसके इस हरकत से गुल्लू परेशान हो गई। तभी वह उसे समझाते हुए बोली," गुलकी, बाहर मत झाकों, वरना घोंसलें से गिर जाओगी। फिर मैं तुम्हें बचा नहीं पाऊंगी।"
"माँ, मुझे देखने दो। इतनी तेज हवा और आकाश में इतनी चमक तो मैंने पहले कभी न देखा और न कभी महसूस ही किया। मुझे तो अपना घोंसला हिलते हुए देखकर बहुत मजा आ रहा है, जैसे मैं झूला झूल रही हूँ।"
मजा लेते हुए अचानक अपने उपर पानी की बूंदें गिरने से गुलकी चौंक गयी। वह आश्चर्यचकित होकर बोली,"अरे माँ देखो, ये मेरे उपर पानी किसने गिराया है।"
गुल्लू बोली,"आँधी-तुफान और बिजली चमकने के बाद पानी ही बरसता है। मेरा कहना मानों और अंदर आकर मेरे पंखों में छुप जाओ।"
पानी जोर से बरसने के कारण गुलकी को मजबूरी में माँ का कहना मानना ही पड़ा। क्योंकि अब तेज बरसात शुरू हो चुकी थी।और गुलकी के घोंसले पर टप-टप पानी की बूंदें पड़ रही थी। झोपड़ी के अंदर गुलकी माँ के पंखों के नीचे दुबकी बैठी थी। गुलकी की यह पहली बरसात थी। इसलिए डरने के बाद भी वह ज्यादा उत्साहित थी।
झमाझम पानी गिरने की वजह से सड़क पर सन्नाटा छा गया। सड़क पर पानी बहने लगा, जिससे वहाँ के गड्ढ़े और नालियाँ सब लबालब पानी से भर गये।
काफी देर बाद पानी बरसना जब बंद हुआ, तब सड़क पर लोगों की चहल-पहल शुरू हो गयी। ऐसे समय में गुलकी भी माँ के पंखों के बीच से निकलकर फिर झांकने लगी ।
ऐसे समय में गड्ढ़ों में छुपे मेढ़क भी खुली हवा मे सांस लेने के लिए सड़कों पर निकल आये थे । वे सड़क पर फुदकते हुए कीड़े मकोड़े को लपकते हुए खाते, फिर टर्र टर्र की आवाज करते हुए आगे बढ़ जाते।
घोंसले से झांकती गुलकी की नजर फुदुकते हुए मीठी मेढ़क पर पड़ गयी। वह टर्र टर्र करते हुए कीड़ो को खाती हुई आगे बढ़ रही थी। गुलकी के लिए यह अनुभव अनोखा व नया था। क्योंकि वह मेढ़क को इससे पहले कभी नहीं देखी थी।
गुलकी अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पायी। वह उड़ती हुई नीचे मीठी के पास आकर उसे एकटक देखने लगी। फिर बोली ," तुम इस पेड़ के नीचे क्या कर रही हो? मैनें तो तुम्हें इससे पहले यहाँ कभी नहीं देखा। तुम अब तक कहाँ थी?"
उसी समय एक कीड़ा मीठी को दिखा तो मीठी पहले उसे लपककर खा ली फिर बोली ," मैं अब तक मिट्टी के नीचे सो रही थी, इसलिए मैं तुम्हें दिखती कहाँ से? अब बरसात शुरु हो गया तब मैं बाहर निकली हूँ।"
"तुम्हारा कोई घर नहीं है क्या, जो तुम्हें मिट्टी के अंदर सोना पड़ा? रात होती है सोने के लिए फिर दिन होता है जागने के लिए। तुम किसी दिन मुझे दिखी नहीं। और अब जब पानी बरस रहा है तब तुम इस बरसते पानी में फुदकती हुयी टर्र-टर्र बोलती हुई बाहर आ गई।"
"मुझे ज्यादा सर्दी और गर्मी दोनों बर्दाश्त नहीं होता है, इसलिए मैं अबतक मिट्टी के नीचे सो रही थी। बरसात में जागती हूँ। तभी मैं बाहर निकलती हूँ।"
"बाप रे बाप। इतने दिन एक ही जगह सोते हुए तुम परेशान नहीं होती हो?" गुलकी अचम्भित हो गयी।
"परेशानी कैसी? यही तो मेरे जीने का तरीका है। मुझसे अधिक सर्दी और गर्मी दोनों बर्दाश्त नहीं होता है, इसलिए अपनी जिंदगी को सुरक्षित करने के लिए मैं सर्दी और गर्मी दोनों में जमीन के अंदर चली जाती हूँ।" मीठी अपने जीने के तरीका को गुल्लू को समझाते हुए बोली।
"जमीन के अंदर? फिर वहाँ तुमको भोजन कहाँ से मिलता है और तुम सांस कैसे ले पाती हो? मुझे तो तुम बहुत विचित्र, पर बहुत अच्छी लग रही हो।" गुलकी को मीठी से बातें करते हुए और उसके रहन-सहन की जानकारी लेने में बहुत मजा आने लगा।
मीठी बोली,"मुझे भी तुमसे बात करने में मजा मिल रहा है। मैं जब जमीन के अंदर रहती हूँ, तब मैं अपने त्वचा से सांस लेती हूँ और उस समय मैं कुछ खाती भी नहीं हूँ। यह मेरा सुप्तावस्था होता है।"
"वाह, किसी का सुप्तावस्थाऔर वह भी इतना लम्बा। मैं तो पहली बार सुन रही हूँ।" गुलकी जिज्ञासा वश बोली।
उसी समय मीठी को एक फतिंगा दिखा। मीठी अपनी जगह से छलांग लगाकर अपनी लम्बी जीभ से फतिंगे को लपक ली। यह देखकर गुलकी की आँखे चौड़ी हो गयी। वह मीठी से बोली,"अरे, तुम्हारा अगला पैर तो पीछे वाले पैर से छोटा है और तुम्हारी जीभ कितनी लम्बी है।"
फतिंगा खाकर मीठी बोली," हाँ, मेरा आगे का पैर छोटा और पीछे का बड़ा होता है, ताकि मुझे उछलने में सुविधा मिले। मेरे जीभ की बनावट भी अलग है। यह आगे से जुड़ी होती है और पीछे से दो भागों में बटी होती है, जिससे मैं दोनों के बीच में कीड़े को आसानी से पकड़ लेती हूँ , देखों ऐसे।" यह कहते हुए मीठी फिर एक कीड़े को उछलकर खा ली।
"वाह, तुम हो बहुत मजेदार। मुझे तुमसे बातें करने में बहुत मजा आ रहा है।"
मौसम सुहावना हो चुका था। पानी बंद था। भोजन के खोज में बहुत से पक्षियों का झुंड, चेनू चूहा, लूसी बिल्ली, गेटू गिलहरी और पप्पी पिल्ला भी पेड़ के नीचे टहलने लगे।
तभी गुलकी तेज रफ्तार में आती गाड़ी को देखकर जोर से चिल्लायी,"अरे मीठी बचों,वरना ये गाड़ी तुम्हें कुचल देंगी।"
गुलकी की आवाज पर सारे पक्षी तो उड़कर पेड़ पर बैठ गये। गेटू, चेनू और लूसी अपने बिल में छुप गयी। पप्पी भौं-भौं करता हुआ सड़क के उस पार भाग गया। मीठी टर्र टर्र करती वहीं सड़क के किनारे जमा पानी में कूद पड़ी। गाड़ी तेज रफ्तार में निकल गई। गाड़ी के गुजरते ही सबसे पहले गुलकी उड़ते हुए नीचे आयी तो देखी कि मीठी पास के गड्ढ़े में तैर रही थी। गुलकी को देखते ही मीठी उछलकर पानी से बाहर आ गई।
मीठी को तैरते और फुदुककर बाहर आते देखकर गुलकी फिर आश्चर्यचकित होकर मीठी से बोली ," तुम पानी में कैसे चली गई? तुम पानी में डूबी नहीं। मैं तुम्हें सुरक्षित देखकर बहुत खुश हूँ।"
"मैं उभयचर जीव हूँ अर्थात पानी और जमीन..दोनों जगह पर रहने वाली। इसीलिए मैं दोनों जगहों पर रह सकती हूँ। पानी में मैं तैरती हूँ और जमीन पर फुदुकती हूँ। इसीलिए पानी में ड़ूबी नहीं। पर तुम्हें मेरी इतनी चिंता थी। यह जानकर मुझे बहुत खुशी हुई।" मीठी खुश होती हुई बोली।
"मैं तुमसे मिलकर बहुत खुश हूँ। क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?" गुलकी मीठी के करीब आती हुई बोली।
"दोस्त तो बन ही जाऊंगी। पर कुछ दिनों बाद तुम्हें मेरा वियोग उस समय झेलना पड़ेगा। जब मैं बरसात समाप्त होने के बाद जमीन के अंदर सोने चली जाऊंगी।"
"ठीक है दोस्त, जब तक बरसात है, तब तक तो हम साथ रह सकते है, बातें कर सकते है। मुझे तुम्हारी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ जानना है।" गुलकी फुदकते हुए मीठी के पीछे धीरे धीरे उड़ते हुए बोली।
उसी समय गुल्लू गुलकी को खोजती हुई आ गयी। वह गुलकी से बोली,"तुम बिना मुझसे पूछे यहाँ आ गयी। मैं तुम्हें कब से ढ़ूढ़ रही हूँ? चलो घर चलो।"
"माँ, मैं मीठी के साथ थी। हम दोनों दोस्त है। तुम परेशान मत होना।"
"अरे मीठी, ये गुलकी बहुत चंचल और शैतान है। ये बकबक करके तुम्हें परेशान कर देगी। पर मुझे खुशी है कि ये तुम्हारे साथ घुलमिल गई है।" गुल्लू मीठी को समझाते हुए बोली।
गुल्लू कुछ और समझाती उससे पहले ही गुलकी बोली," माँ, मैं मीठी के साथ खेलकर घोंसले में आ जाऊंगी। तुम घबड़ाना नहीं।"
"ठीक है, जल्दी आ जाना।" यह कहकर गुल्लू उड़ गयी। तब मीठी और गुलकी भी बातें करते हुए आगे बढ़ गयी। अब तक मीठी बन चुकी थी दोस्त गुलकी की। बरसात भर दोनों मिलकर साथ-साथ खूब बातें करती थी और मस्ती मारती थी। बरसात के बाद जब मीठी सुप्तावस्था में मिट्टी के अंदर सोने जा रही थी तब गुलकी बहुत दुखी हो गई। जाते समय मीठी बोली," दोस्त, अगले बरसात के मौसम में मैं तुमसे फिर मिलूंगी। तब तक तुम खूब मजे से मौज करती हुई रहना।"
"मैं भी तुम्हारी इंतजारी करुंगी।" यह कहकर गुलकी अपने पेड़ पर जाने के लिए उड़ गयी और मीठी तालाब की गीली मिट्टियों में विश्राम करने चली गई।
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