समय की महिमा (कविता)

जिसका नहीं कहीं जोड़ है,
वहीं समय है, बहुत बलवान।
समय की महिमा अपरंपार है,
निर्भय, निरंकुश व निरंकार है।

यह गतिशील व गतिमान है,
हरदम आगे ही आगे बढ़ता है।
रुकने का कभी नाम नहीं लेता,
क्षणभर को भी विश्राम न करता।

पीछे मुड़ना इसको आता नहीं,
निशब्द, निश्चल व निस्वार्थ है।
समय सबल व सामर्थ्य बहुत है,
बाँध नहीं सकते इसको मुट्ठी में।

खिलवाड़ न करो,समय की गति से,
दुष्कर्म व दुस्साहस से दूर रहो।
तप-कर्म व वचन में बाँधकर मन को,    
समय के आँच पर तपकर निकलो।

सार्थक-संबल व विश्वास से पूर्ण होकर, 
समय की गति को जो पकड़ता है।
जीवन को जीवंत व खुशहाल करके,
सफलता का रस भी वही पीता है।

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