एहसास (कविता)

बेनूर सी जलती-तपती गर्मी में,
दिल को समझाना मुस्किल था।
रिमझिम सी बरसती बरसातों में,
दिल काबू में रखना बेमानी था।
वह रुठ गई थी कबकी मुझसे,
इसलिए उसे मनाना जरुरी था।
काँपती-ठिठुरती अधियारें में,
मैं मनाने लगा, वह शर्माने लगी।
बिछने लगी जब ठंड़ की चादर,
वह फिसलनें लगी थी बातों में।
पतझड़ के झरते मौसम में,
वह मुस्कान अपनी बिखेरने लगी।
बसंत की मधुर मधुमास में,
कोयल सी वह कुहकने लगी।
फागुन की फागुनी बेला में,
वह अल्हड़ सी मतवाली हुई।
आगोश में समाया नूर उसका,
मतवाला मुझको करने लगा।
वह सिमटने लगी थी बाहों में,
मैं सांसों में उसे बाँधने लगा।
मौसम सी बदलती रंगत उसकी,
मुझे पगला-दिवाना बनाने लगी।
वह क्षण बहुत सुहाना था मेरे लिए,
जब मैं उसके एहसासों में रंगने लगा।
मैं भूल गया, अपनी फितरत, 
उसके बंधन में ड़ूबने व उतराने लगा।

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