अबोध सी निश्चल आँखों में,
सपने हजार सुकुमार लिए,
मैं इस धरती पर आई,
अपनी नई पहचान लिए।
खिली-खिली पंखुड़ियों सी,
पली-बढ़ी मैं फूलों सी,
अपनी छटा बिखेरते हुए,
पग-पग आगे बढ़ती रही।
पृथ्वी जैसी धैर्य लिए,
चाँद जैसी शीतल हूँ मैं,
सूरज जैसा तेज है मुझमें,
सागर सी गहरी हूँ मैं।
जीवन की परिभाषा को,
एक नया आयाम दिया,
कुछ खोया, कुछ पाया मैंनें,
फिर भी विजय रथ बढ़ाया।
माँ-बाप, भाई-बहन के साथ,
रिश्ते प्रबल प्रगाढ़ किए,
सखियों संग खेलकूद कर,
उम्मीदें सुदृढ़-साकार हुए।
प्रेम पुजारिन बन प्रियतम की,
जीवन को आलोकित की,
सुंदर-सुंदर फूल खिलायें,
जिनसे जीवन में खुशियाँ आई।
अनगिनत अनुपम उपहारों से,
सतरंगी सुंदर अरमानों से,
अपने चमन को आबाद किया,
तब गुलशन भी गुलजार हुआ।
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