दोस्ती की कड़ी.... जो अचानक टूट गई (कविता)

साथी थी
सहयोगी थी
नम्रता की मूरत थी
संबल थी
विश्वास थी
जीने का आधार थी
प्यार थी
मिठास थी
सुनहरे पल का एहसास थी
अधिकार थी
अभिमान थी
सच्चे राह की पहचान थी
आशा थी
उम्मीद थी
पूर्णता की आभास थी
ऐसे साथी
ऐसी दोस्ती
की सबल कड़ी अचानक टूट गई
बचपन का साथ
बुढ़ापे का सहयोग
एकपल में वह छोड़ गई
भीगी पलकों से
हृदय की डोर से
श्रद्धा -सुमन की बरसात करेंगें
विह्वल होकर
स्मृति लेकर
जीवन डगर को पार करेंगे।

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