चाँद सितारे सूरज धरती,
सबकी नियमित है अपनी लीला।
नहीं अटकतें, नहीं भटकते,
नहीं कभी वे थकते है।
सही समय पर, सही डगर पर,
प्रतिदिन चलायमान रहते है।
जब कभी कहीं वे छुप जाते है,
तब हमको नजर नहीं वे आते है
पर जगमग-जगमग करके वे,
फिर अपनी छटा बिखेरते है।
नित नये उमंगों से भरकर वे,
हमको आकर्षित करने आते है।
ऐसी नियमित, ऐसी सीख,
दिन, प्रतिदिन हम उनसे पाते है।
खुली आँखों से उन्हें देखते रोज,
पर सीख-सम्भल नहीं कुछ पाते है।
गर अपना ले, हम उनकी बातें,
होगी हमारी भी एक दिनचर्या।
नहीं भटकना पड़ेगा हमको,
हम सदैव सतर्क हो जायेंगे।
अपनी जिम्मेदारी से हम निशदिन,
फिर कभी जी नहीं चुरायेंगे।
तब नियमित और सुदृढ़ होकर,
अपनी मंजिल को पायेंगें फिर चूमेंगें।
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