स्कूल का अन्तिम पीरियड (बाल कविता)

स्कूल   का  अंतिम   पीरियड,
कितना नीरस ,कितना उबाऊ।
पल-पल   घड़कन  बढ़ता  था,
पर पल्ले कुछ नहीं पड़ता था ।
दम थामकर  के हम  बैठते थे,
अंदर मचती थी उथल-पुथल ।
अध्यापक   ज्ञान    बढ़ाते   थे,
पर  मन  शून्य में विचरता था ।
बेताब  दिल  की  बेकरारी  में,
घण्टा  बजने की इंतजारी थी ।
पेट  की  ज्वाला  कुड़कती थी, 
तब  घर  की  याद सताती थी ।
कब बजेगी, कब बोलेगी,
कब टन-टनकर टुनटुनाएगी ।
तभी बजी छुट्टी की घंटी,
सपने हो गये साकार ।
मस्ती    से    शोर   मचाते   हुए,
मन की खुशियाँ बाहर निकली । 
चिखते-चिल्लाते, उछलते-कूदते, 
दौड़   लगाकर   सरपट   भागे ।
छूटा  हो  जैसे  पिंजरे  से  पक्षी,
विचरण  को  हम  उन्मुक्त हुए ।
दौड़ने  लगे, सड़को पर,
वह   मस्ती  बहुत  सुहानी  थी। 

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