ढ़लते उम्र के पडाव पर (कविता)

रिश्तों में वह चमक नहीं है,
बातों में वह खनक नहीं।
किसको समझु मैं अपना,
जब अपनों सा व्यवहार नहीं।
रुठ गये सब जो अपने थे,
अब गैरों से क्या आस करु।
अपनों को अपनों की समझ नहीं,
क्योंकि अपनी समझ ही काफी है।
रिश्तों के चक्रव्यूह में फँसकर अब,
अब गले किसी के नहीं पड़ना है।
हार नहीं मानना है जिंदगी से,
हरदम आगे बढ़ते रहना है।
सर्वोपरि है अब अपनी अभिलाषा,
अपना गुरुर ही ताकत है।
अपनी हिम्मत अपनी जांबाजी ही,
जीवन नैया पार लगायेगी।

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