होनहार बच्चे (बाल कहानी)

महुआ गाँव में जमुना नाम का एक गरीब किसान था। गोपी जमुना का बेटा था। खेती के लिए कम जमीन होने के कारण जमुना के खेत से उतना ही अनाज पैदा होता, जितने से उसके परिवार का भरण पोषण अच्छे से हो जाता था। भरण पोषण के अतिरिक्त जमुना कुछ और करने के लिए नहीं सोच पाता था। क्योंकि अतिरिक्त काम के लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती जो जमुना के पास नहीं था। गोपी जमुना के इस मजबूरी को समझता था इसलिए पढ़ने की प्रबल इच्छा होते हुए भी गोपी कभी अपने माँ बाप से खुलकर नहीं कह पाया कि वह पढ़ना चाहता है। अपनी इच्छा को मन में दबाने के कारण गोपी दुखी रहता, पर अपने भावों को कभी अपने माँ-बाप पर प्रगट नहीं कर पाया। वह खेती में अपने पापा की मदद पूरी लगन और निष्ठा से करता, ताकि उसके घर की स्थिति में कुछ सुधार आ सके।
कहते है..मेहनत करो तो सफलता जरुर मिलती है। गोपी के कारण जमुना के घर में भी सुधार होने लगा। जमुना गोपी को सदैव खुश और अपने काम में लीन देखता तो उनकी समझ में यह नहीं आता कि गोपी कहीं से भी असन्तुष्ट है। मेहनत मशक्कत के कारण घर में धन का अभाव अब नहीं था। पर गोपी को अफसोस अब इस बात का था कि उसकी पढ़ने की उम्र समाप्त हो चुकी थी। जमुना ने ग्वारी गाँव की एक लड़की से गोपी की शादी कर दी। गोपी अपनी पत्नी नलिनी को भी बड़े शान शौकत से रखता जिससे उसे किसी चीज की कमी न अखरें। धीरे-धीरे समय बीतता गया। गोपी के दो प्यारे प्यारे बच्चे हुए। गोपी ने उनका नाम मुकुल और मुकुंद रखा। बच्चे बहुत प्यारे और सुंदर थे। गोपी अपने बच्चों के लालन पालन में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहता था जिससे किसी अभाव की कुंठा उसके मन में बनी रह जाए।
मुकुल व मुकुंद का बचपन खुशहाल तरीके से बीतने लगा।
मुकुल और मुकुंद धीरे धीरे बड़े होने लगे। अब गोपी अपने बच्चों के लिए महंगे महंगे खिलौने और किताब-कापी लाने लगा। जमुना यह फिजुलखर्ची देखकर बहुत घबड़ाते। वे गोपी को समझाते, कहते,"देखो गोपी, बच्चों को अच्छे से या संपन्न तरीके से रखना ठीक है...यदि आमदनी उतनी हो तो। परंतु यदि आमदनी कम हो तो कभी भी अपने चादर से अधिक पांव नहीं फैलाना चाहिए। अपनी जरुरते समेटकर रखने में ही अपनी भलाई होती है ताकि चादर फटने न पाये। एक बार चादर फट गयी तो सम्भाले नहीं सम्भलेगी।"
यह सुनकर गोपी चुप था पर उसकी पत्नी नलिनी बोली," बाबु जी, आप सदैव गरीबी में रहे है इसलिये आपको बच्चों का यह सुख देखा नही जाता है। गोपी जो कर रहे है, ठीक कर रहे हैं।"
"नहीं बहू , मुझे बच्चों से कोई चिढ़ नहीं है। पर मैं यही चाहता हूँ कि तुम लोग अपनी औकात को पहचानों और अपनी आय की सीमा में रहो। तुम गोपी को समझाने की जगह उसके सुर में सुर मिला रही हो। मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी।"
"ठीक है ,ठीक है। हमें ज्यादा शिक्षा की जरुरत नहीं है। हम अपने बच्चों को जैसे चाहे वैसे पाले। किसी को बीच में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं हैं।" यह कहकर गोपी की पत्नी वहाँ से उठकर चली गयी।
जमुना बोले ,"गोपी बेटा, मैं तुम्हें समझा रहा हूँ। तुम समझदार हो। तुम तो समझो। बच्चें मिटृटी के घड़ा होते है..उन्हें जैसे ढ़ालोगे..वे वैसे ही ढ़ल कर निकलेंगे। तुम उन्हें अच्छे संस्कारों की सीख दो। वे बड़े होकर नेक इंसान बनेंगे।"
"बाबु जी,आपने हमें नेक इंसान बनाया है ना। क्या फायदा मिला मुझे? जिंदगी भर खेती में जुझता रहा। तब भी कोई गत का काम नहीं कर सका। अब अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता हूँ ताकि वे बड़े होकर बड़े आदमी बने तो आपको पसंद नहीं आ रहा है।"
"बेटा, मैं तुम्हारे सोच का विरोध नहीं कर रहा हूँ। मेरे कहने का उद्देश्य बस इतना है कि तुम अपना चादर देख कर ही पांव फैलाना वरना बाद में पछताओगें।"गोपी मन ही मन में जमुना की बात समझ रहा था। पर वह सच का सामना नहीं करना चाहता था।
गोपी अपने धुन का पक्का था। अपने जिद के चलते उसने अपने बच्चों का नाम ऐसे स्कूल में लिखवा दिया जँहा फीस बहुत अधिक थी। फीस देना तो ठीक था पर फीस के साथ ही साथ जो उपरी खर्च था उसे पूरा करने के लिए गोपी को अब उधार लेना पड़ा। गोपी के थोड़े छुट का फल यह मिला कि बच्चों के बड़े होने के साथ ही साथ गोपी के उधार की सीमा भी बढ़ने लगी ।
क्योंकि नलिनी और बच्चों का खर्च इतना बढ़ गया कि गोपी के लिए पीछे मुड़ना असम्भव हो गया। घर का खर्च... सुरसा की भांति मुँह फैलाने लगा और धीरे धीरे गोपी उसके गर्त में डूबने लगा। अब नलिनी भी मन की इतनी बढ़ी हो गई थी कि वह गोपी को सही सलाह न देकर उकसाती थी। गोपी कभी कभी उसे समझाने की कोशिश करता कि वह अपने खर्चे कम कर दे पर नलिनी मानती नहीं थी। गोपी को अब अपने आय से बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था जिसके कारण वह सेठ करोड़ीमल से उधार लेने लगा। सेठ भी उसे अपने जाल में फँसाना चाहता था इसलिए वह उसे मना नहीं करता। उसकी आँखों में गोपी का खेत फँसा था। जिसे अधिक कर्ज होने पर वह हथियाना चाहता था। गोपी को रोकने वाले उसके पिता जमुना भी अब उसके पास नहीं थे।
नलिनी की तो चाँदी ही चाँदी हो गयी। वह स्वतंत्रतापूर्वक अच्छे अच्छे कपड़े,गहने पहनती और बच्चों को भी वैसे ही रखती। बच्चे गोपी की हैसियत से अधिक उँचे स्कूल में पढ़ने लगे। नादान और भोला गोपी अपनी एक उँची महत्वाकांक्षा के कारण कर्ज रुपी दलदल में फँसने लगा।
मुकुल दसवीं में और मुकुंद आठवीं में पढ़ता था। मुकुंद का परीक्षा समाप्त हो गया तो वह अपने पापा के साथ खेत पर जाने लगा।
मुकुल बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुआ तो गोपी की बाछें खिल गई। अब वह मुकुल का नाम और बड़े स्कूल में लिखवाने को सोच रहा था। मुकुल बोला ,"पापा, आप क्यों चिंता करते हैं। हम जहाँ पढ़ रहे है वह ठीक है। यहाँ पहले से ही फीस अधिक है ..नये स्कूल में तो फीस की कोई सीमा नहीं है।" मुकुल अपने पापा को समझाने की कोशिश कर रहा था तभी नलिनी बीच में बोली," मुकुल क्या तुम अपने बाप से बड़े हो गये हो? वे तुम्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते है तो तुम्हें क्यों तकलीफ हो रही है?"
"माँ, आपने कभी पापा को समझाने की कोशिश नहीं की।बाबा पापा को सही शिक्षा देते थे तो आप लोगों ने कभी उनकी बातों की कद्र नहीं की। मैं अपने पुराने स्कूल में ही पढ़ूंगा ।"
अभी वे बातें कर ही रहे थे कि सेठ करोड़ीमल साहूकार अपने लठैत के साथ गोपी के घर धावा बोल दिया। लठैत गोपी के सामने अपनी लाठी ठोकते हुए चिल्लाया," गोपी, आज तुम रुपये लेकर आने वाले थे। तुम नहीं आये तो मजबुरन मुझे आना पड़ा।बोलो रुपया देते हो कि पुलिस बुलाऊ।"
मुकुल को बहुत अपमान लगा कि कोई उसके पापा से इस तरह चिल्लाकर बोले। अभी वह कुछ बोलता तभी गोपी बोला," भैया, सोम भैया, हमें रुपया देने को बोले थे। आज वे मिले नहीं, इसलिए हम आपका रुपया लेकर आ नहीं पाये। वे मुकुल के दाखिले के लिए भी रुपया देने को बोले थे वरना आज मुकुल का दाखिला भी बड़े स्कूल में हो जाता।"
"गोपी तुम मुझे रुपया देने के लिए सोम से रुपया उधार लेने जा रहे थे। तुम्हारा तो बेड़ा गर्त ही समझो। तुम इस नरक से कभी निकल नहीं पाओगे।" सेठ करोड़ीमल को यह पसंद नहीं आया कि उसका ग्राहक उसे छोड़कर कहीं और जाये।
तभी नलिनी झल्लाती व तमतमाती हुई अंदर से आई, बोली,"क्या अंट शंट बोल रहे हो, भैया।हम जितना मर्जी उतना उधार लेंगें। हमें किसी का डर पड़ा है क्या, जो हम डर जायेंगे। लेंगें तो कभी न कभी चुकता कर ही देंगे।"
"माँ, अब आप कुछ नहीं बोलेंगी। आप ने ही उकसा उकसा कर ही पापा को इस हाल में पहुँचाया है वरना पापा की ऐसी स्थित न होती।"
"हाँ हाँ अब तुम बोलोगे क्यों नहीं? पढ़ा लिखाकर तुम्हें इतना बड़ा इसलिये ही तो किया हैं कि माँ को आँखे दिखाओ।"नलिनी जोर जोर से बोलने लगी।
"माँ बात की गम्भीरता को समझो और चुप हो जाओ। पापा को इस स्थिति में पहुँचाने के जिम्मेदार हम सभी है इसलिए इससे छुटकारा पाने की जिम्मेदारी हम सभी की हैं। हमें कुछ उपाय सोचने दीजिए।"
मुकुल अब साहुकार से बोला," अकंल, हमें पता ही नही था कि पापा हम लोगों को खुश करने की इतनी बड़ी कुर्बानी देकर खुद को गढ़ढ़े में गिरा रहे हैँ। पापा को कर्ज से छुटकारा दिलाने की जिम्मेदारी अब हमारी है। "तुम्हारी... तुम अभी छोटे हो, तुम क्या कर पाओगे, जरा मैं भी तो सुनु ।"
"अंकल, बड़े छोटे से कुछ नहीं होता। हौसला बुलन्द हो और परिवार में लगन और निष्ठा हो तो कठिन से कठिन दौर भी सरलता से गुजर जाते है। हम इसी सोच और संकल्प से आगे बढ़ेंगे।"
"मैंने बड़ो बड़ो को गरजते और बरसते देखा है। तुम कह रहे हो तो एक बार तुम्हें भी आजमा लेता हूँ। फिर ये मत कहना कि सेठ करोड़ीमल ने कोई मौका नहीं दिया।"
"ठीक है अंकल, आपकी बड़ी मेहरबानी। बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।"
"ठीक है बेटा, अपने जोश व आश्वासन पर कायम रहना। वैसे अब मैं  गोपी को ज्यादा दिन का मौका नहीं दे सकता।  क्योंकि ये अपने बच्चों को पूरे ऐश वाली जिंदगी दिये हुए है पर उधार चुकता करने में इन्हें नानी याद आ जाती हैं। अब तुम्हें आजमाना बाकी है।" यह कहकर साहुकार चला तो गया पर वह सोच रहा था कि गोपी उधार चुका नहीं सकता इसलिए बच्चों को एक मौका दे देता हूँ। अपना ही नाम बढ़ेगा।लोग कहेंगे सेठ दयालू और मौके पर मददगार भी है। 
सेठ के जाने के बाद मुकुल गोपी के चेहरे को हाथो में भरकर रुधें हुए स्वर में बोला "पापा, आपने सुना। ये साहूकार कितना कुछ बोल रहा था। आपने ये क्यों किया पापा...यदि आप सच्चाई बताकर हमें अपनी हैसियत में रखते तो हम उसी हैसियत में रहने के अभ्यस्त होते। जलालत भरी बाते सुनकर ऐसी ठेस तो नहीं लगती जैसी आज लगी है।"
गोपी आँखों में आँसू भरकर बोला," बेटा ,मैं तुम लोगो को पढ़ाना चाहता था इसलिए ऐसी गलती हुई है। मैं पढ़ना चाहता था पर मजबुरी बस अनपढ़ रह गया इसलिए मैं तुम दोनों को अनपढ़ नहीं देख सकता था।"
"आपकी सोच ठीक है पापा, पर इसके लिए अपने हैसियत से आगे बढ़कर वह नहीं करना चाहिए जो आपने किया है।बच्चों को भूलभुलैया में फँसाने के बजाय यथार्थ जिंदगी से सामना करना सिखाना चाहिए। यहीं जिंदगी की असली सीख होती है जिससे आपने हमें वंचित कर दिया,"
"अनपढ़ होने से यहीं गलती हो गई। पढ़ा-लिखा होता तो शायद ऐसी भूल कदापि नहीं करता।" गोपी सर झुकाकर बोला ।
"पापा, मेरे अच्छे पापा। अब मैं सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद...वह बनकर दिखाऊंगा जो आप हमें बनाना चाहते थे ।और हम मिलकर इतना काम करेंगे कि सेठ का कर्ज भी माफ हो जाएगा और आपको कर्ज भी लेना नहीं पड़ेगा।आप चिंता मत करिये पापा, हमें अपनी हैसियत में रहकर ही आगे बढ़ना है।"
गोपी मुकुल को गले से लगा लिया। मुकुंद भी आकर उनसे लिपट गया। गोपी दोनों को बाहों में भरकर बोला," मेरे प्यारे बच्चों ,तुम इतने समझदार होगे..मुझे पता नहीं था। तुमने मेरी आँखे खोल दी। माँ बाप को कभी अपनी हैसियत बच्चों से छुपा कर उन्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहिए ।आज मुझे तुम पर बहुत गर्व हो रहा है।"
"मुझे भी माफ कर दो बच्चों, मैंने भी नादान और अनपढ़ों जैसा व्यवहार किया।समझदार होती तो ऐसी नौबत आने नहीं देती।"नलिनी बात की गम्भीरता समझकर बोली ।
मुकुंद दौड़कर माँ के गले लग गया ।
सही समय पर बच्चों की समझदारी से गोपी का परिवार गर्त में जाने से बच गया।

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