हिट मी गुड्डे का कमाल (बाल कहानी)

अमोल अपने कुर्सी पर बैठा-बैठा उंघते हुए माँ प्रमिला     पर खिज़ रहा था। रोज की तरह आज सुबह भी प्रमिला उसे जबरजस्ती नींद से उठाकर पढ़ने के लिए कुर्सी पर  बैठा दी थी। पढ़ने में मन न लगने के कारण वह कुर्सी पर बैठा बैठा झपकी ले रहा था। आज भी उसे जोर से नींद आ रही थी। परंतु माँ के डर के कारण वह ठीक से सो नहीं पा रहा था, तभी अचानक माँ की आहट सुनकर वह सतर्क होकर पढ़ने का नाटक करने लगा। प्रमिला उसे पढ़ता देखकर अपने काम में लग गई।
उसी समय अमोल का ध्यान अपने छोटे भाई अंकित पर केन्द्रित होने लगा। अंकित जमीन पर बैठा हुआ एक छोटे  हिट मी गुड्डे से खेल रहा था। अमोल गुस्से से बुदबुदाया, 'इसे पढ़ना नहीं है इसलिए इसे नींद भी नहीं आ रही है। क्या मस्ती भरा खेल, खेल रहा है।' 
अंकित गुड्डे को बार बार नचाता और घुमाता तो गुड्डा नाचता और घुमता हुआ गिरता नहीं था बल्कि जब भी रुकता तो हमेशा उठकर खड़ा हो जाता। अमोल गुड्डे से आकर्षित होने लगा। तभी वह ध्यान से गुड्डे को एकटक निहारने लगा। उसको उस गुड्डे का नचाना और फिर उसके उठकर खड़े रहने की क्रिया बहुत भली लगी। वह देर तक गुड्डे को घूरता रहा, फिर जब उससे रहा नहीं गया तब वह अंकित से बोला,"अंकित, क्या तुम  अपना गुड्डा मुझे थोड़ी देर खेलने के लिये दोगें?"  
"नहीं भैया, मैं अपना गुड्डा आपको नहीं दूंगा। आप पढ़िए, नहीं तो मैं माँ से शिकायत कर दूंगा कि आप पढ़ने के बजाय, खेलने के लिए मेरा गुड्डा मांग रहे थे।" अंकित अपना गुड्डा छुपाते हुए बोला।
अमोल को अंकित पर गुस्सा बहुत आया, पर उसके मन में कुछ और चल रहा था, इसलिए वह अंकित को छोड़कर  दौड़ता हुआ माँ के पास पहुँच कर माँ से बोला," माँ, आप पूछ रही थी ना कि मुझे जन्मदिन के गिफ्ट में क्या चाहिए?"  
"हाँ, पूछ तो रही थी, पर तुमने बताया नहीं था। अब इतनी सुबह तुम्हें यह क्यों याद आया है? तुम तो पढ़ रहे थे।" प्रमिला अमोल का मंशा जाने बिना बोली।
"ठीक है, तो मैं बताता हूँ कि आप मुझे वह हिट मी गुड्डा दिला दीजिए, जो अंकित अभी-अभी खेल रहा है।"
प्रमिला अमोल की बचकानी फरमाईश सुनकर झल्लाते हुए बोली,"अरे बेवकूफ, तुम वह बेकार सा नाचने वाला  गुड्डा लेकर क्या करोगे? अब तुम बड़े हो गये हो। क्या तुम उस छोटे बच्चों के खेलने वाले खिलौने से खेलोगे?" 
"माँ, छोटे बच्चे और बड़े बच्चे से कुछ नहीं होता है। आपने मुझे वचन दिया था। इसलिए मुझे जो हिट मी गुड्डा चाहिए, तो आपको मुझे वही छोटा गुड्डा गिफ्ट में देना पड़ेगा।"
"ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी। मैं तुम्हारे लिए गिफ्ट में वहीँ गुड्डा ला दूंगी। अब तो खुश।" अमोल के इस अजीबोगरीब फरमाइश पर प्रमिला खिज़ रही थी, पर अमोल का मन रखने के लिए कुछ बोली नहीं।
जन्मदिन पर मिले उपहारों में अमोल को अपना सबसे अच्छा और प्रिय उपहार माँ का दिया हुआ हिट मी गुड्डा ही लगा। यद्यपि अमोल को माँ की तरफ से और भी उपहार मिला था पर अमोल के मन की इच्छा तो हिट मी गुड्डा  पाकर ही संतुष्ट हो गया था, जिसे वह अपने पढ़ने वाले मेज पर रखकर उसे बार-बार नचाने लगा।
प्रमिला पहले से ही अमोल के न पढ़ने के कारण बहुत दुखी रहती थी। अब तो जब देखो तब अमोल अपने गुड्डे को नचाता हुआ ही दिख जाता था। यह देखकर प्रमिला का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता पर माँ के चढ़ते तेवर से अलग अमोल अपने मेज पर बैठा-बैठा या तो पढ़ता रहता या बीच-बीच में हिट मी गुड्डे को नचाता रहता।
अमोल पढ़ने में बहुत कमजोर था। आठवीं कक्षा में वह किसी तरह घसीटकर पास हुआ था इसलिए नौवीं कक्षा में आते ही प्रमिला की चिंतायें बढ़ गयी थी। वह अमोल को बार बार समझाती कि यह समय फिर लौटकर नहीं आयेगा । अगले साल तुम्हारा बोर्ड की परीक्षा है। इसलिए मेहनत कर लो..पर अमोल के कानों पर जूं भी नहीं रेंगता। वह प्रमिला की बातों को अनसुना करके अपने में ही मस्त और व्यस्त रहता।
प्रमिला को अब भी यही लगता कि अमोल या तो गुड्डे से खेलता है या उंघता रहता है पर पढ़ता नहीं है। वह अमोल को समझाती, सिखाती, उत्साहित करती और न मानने पर डाटती, फटकारती और सजा भी देती पर अमोल पर इसका कोई असर उन्हें दिखता नहीं था। वह अपने ही तरीका से पढ़ता था। 
    टीचर्स-पेरैंट्स मिटिंग के समय प्रमिला को अमोल की शिकायतें सुनने को मिलती तो उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती। इसलिए वह कालेज जाने से हमेशा कतराती थी।आज भी छमाही परीक्षा के बाद वाले टीचर्स पैरेंट्स मिटिंग के समय वह तबीयत खराब होने का बहाना बनाने लगी तब सुधीर बोले," चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। वहाँ से मैं आफिस चला जाउंगा।" 
सुधीर के इस सहयोग के बाद वह तैयार होकर सुधीर के साथ अमोल के कालेज गई। कालेज में अमोल का रिपोर्ट कार्ड देखकर वह दंग रह गई। आश्चर्यचकित होकर वह कक्षाध्यापिका से बोली," मैम, लगता है आपने किसी और का रिपोर्ट कार्ड मुझे दे दिया है, क्योँकि अमोल के इतने अच्छे नंबर आ ही नहीं सकते है।"
"ओह, मैं तो समझी कि ये आप लोगों के मेहनतों का फल है, पर जब आप स्वंम् आश्चर्यचकित है तो यह परिवर्तन अमोल में कैसे हुआ...यह सोचने वाली बात होगी।"
इस प्रकार कालेज में अध्यापिकाओं द्वारा अमोल के  तारीफों के पुल जब बँधने लगे तब प्रमिला व सुधीर आश्चर्यचकित होकर एक दूसरे को निहारने लगे। उन्हें अमोल में आये इस परिवर्तन का जरा भी आभास नहीं था। प्रमिला बोली," मैम, मुझे अमोल में आये इस परिवर्तन से बेहद खुशी हो रही है। आज मुझे गर्व हो रहा था कि अमोल ने वह कर दिखाया जिसकी मुझे उम्मीद बिलकुल नहीं थी।"   
अमोल की कक्षाध्यापिका ने कहा," देखिए, ये अमोल की शुरुआती बदलाव और उन्नति है, अतः आप घर का माहौल वैसे ही रखकर उसपर ज्यादा दबाव मत बनायिएगा, जिससे उसका यह प्रयास अधुरा रह जाए।"
"ओके मैम, ऐसा ही होगा।"
घर आकर प्रमिला अमोल की इंतजारी करने लगी। अमोल जब आया तब प्रमिला उसे गले लगाकर बोली," बेटा, जिसे मेरी सहूलतें, समझाना, शिक्षा, डाँट-फटकार और उम्मीदेँ भी नहीं बदल पायी..उसमें इतना बड़ा परिवर्तन आया तो कैसे आया?"
"माँ, मुझमें यह बदलाव आपके द्वारा दिए गये गिफ्ट हिट मी गुड्डे के कारण आया है। अंकित जब इससे खेल रहा था तब मैंने देखा कि इसे चाहे जितना भी गिराओ, लेटाओ और घुमाओ फिर भी यह अंत में खड़ा हो जाता है। तब मेरी समझ में आया और सीख मिली कि जब यह बार बार गिरने के बाद भी उठ जाता है तब मैं क्यों नहीं गिरकर उठ सकता हूँ। यही सोचकर जब मुझे नींद आती थी तब मैं इसे घुमा देता था और जब यह खड़ा होता तब मैं इससे प्रभावित व उत्साहित होकर दुगने वेग से उठकर फिर पढ़ने लगता। बस यही मेरे सफलता का राज है।"
प्रमिला सोचने लगी,' मेरे प्रयासों और प्रयत्नों से न बदलने वाला अमोल... स्वयं ही इस नन्हें गुड्डे से प्रभावित होकर बदल गया। बदलाव का दौर स्वयं के ही दृढ़ निश्चय से आता है। जब खुद में आये जिद, जोश, जुनून और जिम्मेदारियों का बोझ उठाने की लगन आ गई तब अमोल उस असम्भव काम को भी कर दिखाया जो कभी उसे बोझ और नामुमकिन लगता था।'
इसके बाद अमोल कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह सदैव अपनी कक्षा मे अग्रणीय रहकर  प्रथम आने लगा और उसकी माँ को उस पर गर्व होने लगा।
                                

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