बदल गई नन्दू की सोच (बाल कहानी)

नन्दू पार्क से दौड़ता हुआ घर आया तो देखा माँ चुनिया को गोद में लेकर टहल रही थी। यह देख कर नन्दू को गुस्सा आ गया। 'माँ ऐसा क्यों करती है?' यह सोचता हुआ वह माँ के पास पहुँचा।
वह माँ से शिकायत भरे लहजे में बोला," माँ, आप ने नकबहनी चुनिया को फिर से गोद में उठा लिया, क्यों? अब मैं आप के पास कैसे आऊं? मेरे कपड़े गंदे हो जाएगें।" 
माँ सलोनी चौंक गई,बोली,"नन्दू ये क्या कह रहा है?"
वे नन्दू को समझाने के लिए बोली," बेटा, चुनिया को गोद में लेने से मेरे कपड़े गंदे नहीं हुए है। तुम मेरे पास आ सकते हो। इसकी माँ काम में व्यस्त है और यह रो रही थी। इसलिए मैंने इसे चुप करा दिया, बस। देखो, हसँते हुए  यह कितनी प्यारी लग रही है? तुम्हारी बहन जैसी" माँ नन्दू को लुभाने का प्रयास करने लगी ।
"नहीं माँ, यह नाक बहाती है, इसका फ्राक भी सुंदर नहीं है। यह सू सू भी कर देती है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह काम वाली आंटी की बेटी है। इस लिए आप जब तक इसे ली है तब तक मैं आप के पास आ नहीं सकता । मैं फिर से खेलने जा रहा हूँ। आप चुनिया से ही खेलिए।" यह कह कर बारह-तेरह साल का नन्दू रौब से अकड़ता हुआ वहाँ से चला गया।
सलोनी जब भी चुनिया को गोद में लेती, नन्दू नाराज हो जाता। उन्हें चुनिया बहुत प्यारी लगती थी इसलिए जब उनका मन उसे खिलाने को होता तब वे उसे गोद में उठा लेती। सलोनी जानती थी कि नन्दू की यह नाराजगी सही नहीं है। सलोनी उँच नीच के भेदभाव को नहीं मानती थी और वह चाहती थी कि नन्दू भी इस भेदभाव से दूर रहे।
सलोनी को दुख हुआ। वह मायूस हो कर बुदबुदाई ...'जाने कब नन्दू को अक्ल आएगी।' नन्द किशोर...सरकारी सेवा में कार्यरत बड़े अफसर मुकुल चंद्र का इकलौता बेटा था। जिसे सभी प्यार से नन्दू पुकारते थे। चुनिया सलोनी के घर काम करने वाली कमला की आठ महीने की बेटी थी। कमला उसी को ले कर वह काम करने आती और बरामदे में एक तरफ लिटा कर काम करती थी।
मुकुल चंद्र रौबदार, कड़क स्वभाव वाले दबंग अफसर थे। मातहतों और घर में काम करने वालों को ड़ाटना ड़पटना और उनसे चिल्लाकर बोलना उनके आदत में शुमार था। उनके इस आदत व व्यवहार के कारण सब उनसे डरते थे । पर उनके इस व्यवहार का असर नन्दू पर विशेष पड़ा। नन्दू पापा का नकल करके वैसे ही रौबदार और हठिला हो गया था। बात बात में अकड़ना, जिद करना, रौब गाँठना, रुठना, रोना और चिल्लाना उसके आदत में शामिल हो गया।     
सलोनी को यह अच्छा नहीं लगता था। वह मृदुभाषी, सरल स्वभाव वाली महिला थी। वह सबको बराबर समझती और सबसे मिलजुल कर रहती। यही कारण था कमला के काम करते समय जब चुनिया रोती, तब वह उसे गोद में उठा लेती। सलोनी का चुनिया को गोद में लेना नन्दू को बिलकुल नहीं भाता था। वह माँ से जिद़ करता कि वे चुनिया को गोद में न लिया करें, क्योंकि उनका स्तर उनके अनुकूल नहीं था। पर सलोनी मानती नहीं थी बल्कि वह नन्दू से भी यह उम्मीद करती कि वह उचँ नीच के भेदभाव भूल कर चुनिया से खेले।
नन्दू को कभी कभी चुनिया बहुत अच्छी अपनी छोटी बहन जैसी लगती थी। उस समय उसे चुनिया को खिलाने या उसके साथ खेलने का मन करता था। पर अमीर पिता का इकलौता और दुलारा बेटा होने के कारण उसके स्वभाव में जो विकृक्तियां आ गई थी, उसके कारण अपने घर काम करने वालों से दूरी बना कर अकड़ में रहना उसने सीख लिया था।
एकदिन चुनिया नया फ्राक पहन कर आई थी। कमला के आते ही सलोनी उसे गोद में लेकर खिलाने लगी। वह नन्दू से बोली," नन्दू देखो, चुनिया कितनी प्यारी लग रही है। यह साफ सुथरी है, सुंदर है। इस समय तुम इससे खेल सकते हो।"      
"माँ, आप जानती है, मैं इसके साथ कभी भी  नहीं खेल सकता। फिर आप ज़िद क्यों करती है ?" नन्दू जोर से चिल्लाते हुए बोला।
"बेटा, सारे बच्चे समान होते है। इसलिए मैं कह रही थी। तुम कब सीखोगे यह सब? एक बार इसके पास आओ तो, फिर देखना यह तुम्हें कितनी अच्छी लगती है।" सलोनी प्यार से नन्दू को समझा रही थी।
"कभी नहीं।" नन्दू चिल्ला कर फिर बोला। उसी समय मुकुल जी आ गए। माँ बेटे की बातें सुनकर बोले,"तुम नन्दू को क्या उल्टी सीधी बातें सीखा रही हो? वह चुनिया के साथ खेले? और तुम्हारे पास भी कोई काम नहीं है तो नन्दू को ही  कुछ पढ़ाओ, कुछ मेहनत करो। ताकि बड़ा हो कर वह मेरी तरह बड़ा अफसर बने।"  मुकुल चंद्र और सलोनी के रहन सहन और बात व्यवहार में यही अंतर था। नन्दू पर पापा का प्रभाव ज्यादा था। सलोनी चाहती थी कि उस के सीख का असर भी कभ नन्दू में दिखता तो उन्हें कितनी खुशी मिलती?
एकदिन सलोनी नन्दू का एक पुराना झुनझुना चुनिया को पकड़ा दी। चुनिया उसे बजा बजा कर खेलने लगी। उसी समय नन्दू आ गया। चुनिया के हाथ में अपना झुनझुना देख कर वह चुनिया से छिन लिया तो सलोनी नाराज हो गई । पर चन्दू माना नहीं। सलोनी के सीख का असर चन्दू में दिखा नहीं तो वह दुखी हो गई। 
एक दिन कमला चुनिया को सुला कर काम में व्यस्त हो गई। नन्दू की माँ घर में नहीं थी। नन्दू को सोती चुनिया बहुत प्यारी लग रही थी। उसे चुनिया को खिलाने का मन करने लगा। पर मन का अकड़पन उसे रोके और बाधें रहा। वह अपने कमरे में जाकर होमवर्क करने लगा।
अचानक चुनिया जाग कर रोने लगी। कमला पता नहीं कहाँ, किस काम में व्यस्त थी कि सुन नहीं रही थी। माँ भी नहीं थी जो उसे चुप कराती।
नन्दू सोच में डूब गया,' इस नाक बहनी लड़की को कौन चुप करायेगा? मैं क्यों कराऊ? रोती है तो रोने दो। कोई न कोई तो इसकी आवाज सुन कर आ ही जाएगा। मुझे क्या लेना देना है इससे?'
नन्दू चुपचाप अपना होमवर्क करने लगा। यद्यपि चुनिया की रुलाई से वह बार बार विचलित हो रहा था। पर वह अपने होमवर्क में व्यस्त होने का नाटक करता रहा। अचानक उससे रहा नहीं गया। उसके मन की अकुलाहट ने सोचा,'चुनिया को देखा तो जाय' क्योंकि उसका रोना बंद नहीं हुआ था। वह चौंककर उठा। वह चुनिया को देखने आया तो देखा चुनिया सीढ़ियों के पास पहुँच कर सीढ़ी पर आधी लटकी पड़ी चिल्ला रही है।
नन्दू घबड़ा गया। वह बुदबुदाया,'ओह, यह सरकती हुई यहाँ कैसे पहुँच गई? यदि यह यहाँ से गिर जाती तो क्या होता? इसके तो हाथ-पैर ही टूट जाते। मेरे अकड़पन के कारण यह अपंग हो जाती तो मैं किसी को क्या जवाब देता?'
इस एकपल में नन्दू को न तो चुनिया का फ्राक ही गंदा लगा और न अपने नए शर्ट पैंट की चिन्ता सताई और न ही वह नाक बहाने वाली नकबहनी लड़की लगी। उसे बस यही महसूस हुआ कि यदि उसने एक पल भी गंवाया तो चुनिया गिर जाएगी। यदि वह गिर जाती तो उसे बहुत चोट लगती। वह झटपट लपका और चुनिया को गोद में उठा लिया।
वह उसे चुप कराते हुए चहलकदमी करने लगा । उसने पहली बार किसी नन्ही बच्ची को गोद में उठाया था। उसे चुनिया को चुप कराना अच्छा लगने लगा। गोद का सहारा पा कर धीरे -धीरे चुनिया चुप हो गई।
नन्दू को राहत महसूस हुआ। ऐसी सुखद अनभूति का अनुभव उसे पहली बार हुआ। वह बहुत खुश था कि उसने गिरती हुई चुनिया को बचा लिया वरना उसे न जाने कितनी चोट लग जाती।
अचानक सलोनी आ गई। नन्दू के गोद में चुनिया? वे हतप्रभ हो गई। घबड़ा कर बोली," नन्दू क्या हो गया चुनिया को। कमला कहाँ है? तुम इसे गोद में क्यों लिए हो?"
सलोनी जल्दी से नन्दू के पास आई और चुनिया को झपट कर अपने गोद में ले ली, फिर घबड़ा कर बोली," बेटा, क्या हुआ चुनिया को। जल्दी बोलो।" 
"माँ, आप बेकार में घबड़ा गई। मैंने चुनिया को कुछ नहीं किया। मैंने तो बस उसे गिरने से बचा लिया। यह रोते रोते सीढ़ियों तक आ गई थी। आप नहीं थी तो मैं इसे गिरने कैसे देता?" नन्दू  शांत स्वर में बोला क्योंकि वह भी सहमा हुआ था।
"शाबास बेटा। आज मुझे तुम पर गर्व महसूस हो रहा है। तुमने मेरी सोच की लाज रख ली। मैं बहुत खुश हूँ।" सलोनी नन्दू को भी गोद में समेट ली।
तभी कमला भी आ गई। सलोनी को इस स्थित में बैठे देख कर घबड़ा गई। वह सलोनी के पास आ कर बोली ," मेम साहब क्या हुआ? आप इस तरह क्यों बैठी है?" 
"कुछ नहीं। तुम घबड़ाओ नहीं। आज नन्दु ने बहुत अच्छा काम किया है। उसने चुनिया को सीढ़ियों पर  गिरने से बचा लिया। मेरा बेटा लायक और समझदार हो गया है। मैं बहुत खुश हूँ।" सलोनी नन्दू को दुलराते हुए बोली।नन्दू भी माँ की गोद में लेटी चुनिया को सहलाने लगा।
बेटी की सलामती की खबर से कमला भी बहुत खुश हुई, बोली," मैं भी बहुत खुश हूँ। बाबा ने मेरी बेटी को नई जिंदगी दी है। मैं यह कभी नहीं भुलूगीं। चुनिया मेरी सहारा है। इसे कुछ हो जाता तब तो मैं कहीं की नहीं रह जाती।"
इस घटना ने नन्दू के नजरिए को बदल दिया। अब वह चुनिया के साथ खेलता, उसे अपना खिलौना भी देता और खिलाता भी। अब उसमें पहले जैसी अकड़, ज़िद और हेठी भी कम थी। उसे अपने भूल का एहसास हो गया। सलोनी नन्दू के बदले व्यवहार से बेहद अभीभूत थी।
              

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