पशु-पक्षियों की बोलियाँ (बाल कविता)

मुर्गा कुकड़ू कू बोलता है,
सबको रोज जगाता है।
चिड़िया चीं-चीं करती है,
डाल-डाल पर फुदकती है।

कोयल कुहू-कुहू करती है,
आम कुतुर कर खाती है।
कौवा कांव-कांव करता है,
मुंड़ेरी पर शोर मचाता है।

कबूतर गुटर गूँ करता है,
अपने लय में मगन रहता है।
तोता टें-टें करता है,
अमरुद व मिर्ची खाता है।

भौरा गुन-गुन करता है,
फूलों पर मड़राता है।
मक्खी भिन-भिन करती है,
भोजन गंदा करती है।

बत्तख क्वे-क्वे करता है,
पानी में तैरता रहता है।
मेढ़क टर्र-टर्र करता है,
फुदुक कर फुदुकता है।

गाय रम्भाती है,
बछड़े को बुलाती है।
बकरी मिमियाती है,
मेमना को दूथ पिलाती है।

घोड़ा हिनहिनाता है,
सरपट-सरपट दौड़ता है।
उँट बलबलाता है,
बालू में दौड़ लगाता है।

गदहा ढ़ेचू-ढ़ेचू करता है,
मालिक का कहना मानते है।
शेर दहाड़ता है,
पशु-पक्षियों को डराता है।

सांप फुफकारता है,
सबको दूर भगाता है।
हाथी चिंघारता है,
महावत के वश में रहता है।

बंदर खों-खों करता है,
उछल कूद मचाता है।
सियार हुँआ-हुँआ करता है,
जंगल में शोर मचाता है।

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