बारिश की बरसती बूंदों ने,
मेरे तनहाँ मन को भिगो दिया।
सिहराकर मेरे तन-बदन को,
तेरी यादों में लिपटा दिया।
भींग गयी दिल की तारें ,
तेरे बदन की खुशबू से।
भर गई आँखों की तरुणाई,
तेरे सजीले रुप की छाया से।
लब से लब टकरा गये थे,
कमसिन कमसिन सी यादों में।
सुखद एहसास में डूबी मैं,
समझ न पाई मदहोशी को।
मदहोशी का आलम टूटा,
तो बिखर गई मैं जालों में।
कब तक मुझे भटकना होगा,
तनहाई के आलम में ।
दूर होगी कब बेकरारी के पल,
यह मुझे तुम समझा जाओ।
कब आओगे मधुर मुस्कान लिए,
मेरी बाहों के आगोश में।
कब निकलूंगी बाहर मैं,
विरहव्यथा की छाया से।
मैं प्रतीक्षारत खड़ी हूँ अब तक,
बरसती बूंदों के पहलू में।
इन बूंदों को चरितार्थ करों,
बाँधकर आलिंगन के घेरों में।
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