अंतर (लघुकथा)

नन्हें कुंज की मम्मी..अच्छी मम्मी है..तभी तो नानी के आने पर वे बहुत प्यारी-प्यारी बातें करती है, दिनभर व्यस्त रहती है, अच्छे-अच्छे पकवान बनाती है, प्यार से नानी को परसती है, खूब चहकती है, मस्त रहती है, घूमने जाती है और उसे भी खूब ढ़ेर सा प्यार करती है।
पर उसी अच्छी मम्मी की तबीयत अचानक दादी के आने पर खराब हो जाती है। मम्मी उस समय प्यार भरी बातें करना भूल जाती है, दर्द से कराहती है, अच्छा खाना नहीं बनाती और ना ही परसती है, कहीं घूमने भी नहीं जाती है और बात-बात में उसे डाटती-मारती और पापा से लड़ती भी है।
नन्हें कुंज को अपनी नानी और दादी दोनों से बहुत लगाव था। इसलिए दोनों के आने पर कुंज को बहुत मजा आता था। कुंज की नानी जल्दी-जल्दी आती थी, पर दुख तो कुंज को तब होता था जब दादी उसके घर आने का जल्दी नाम नहीं लेती थी।
अपने घर होने वाले इस अंतर में कुंज उलझकर रह जाता था...क्योंकि नानी और दादी दोनों है... तो आखिर मम्मी ही...एक  मम्मी की मम्मी और दूसरी पापा की मम्मी।
कुंज सोचता था, जब उसकी और सबकी मम्मी अच्छी मम्मी होती है तो उसके घर में एक अच्छी मम्मी और दूसरी अच्छी मम्मी नहीं... यह कैसे हो सकता है?...कैसे?...आखिर उनमें इतना अंतर क्यों?????

कोई टिप्पणी नहीं: