जिंदगी का किनारा (कविता)

धीरे-धीरे बहती जिंदगी में ,
मैं ढ़ूढ़ रहा हूँ जीवन का किनारा।
देखो ,मेरे साथ ही बह रही  है ,
दरिया में बहता, मेरा अपना साया।
तन्हा पड़ गया हूँ, तो क्या हुआ ,
हौसला मेरा बुलंदियों पर है।
फूलों  की  खुशबू  साथ-साथ है,
नाव को बना लिया है सहारा।
ढ़ूढ़ना है हर हाल में अपनी मंजिल ,
क्योकि पतवार मेरे हाथ में है ।
हमराह बन गयी है बहती दरिया, 
इसलिए मिल जाएगा, मुझे किनारा।
बढ़ता ही जाऊंगा पल-पल आगे,
कभी कहीं भी नहीं करना है,आलस्य ।
सही हो सामंजस्य ,सोच-सलिका व मेहनत से,
कठिन नहीं है कभी, मंजिल को पाना।

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