अपनी व्यथा बतलाकर, हम दिल का दर्द दिखाते है:
कोरोना वायरस से जान बचाने के लिए,
लाॅकडाउन की नयी परम्परा अपना लिए।
घर के अंदर स्वयं को ही नहीं,
परिवार के अन्य सदस्यों को भी दुबुका लिए।
जिन दोस्तों से हरदम की पक्की यारी थी,
चाय-काफी के दौर में कहकहाते थे हर रोज कभी।
उनके साथ सोशल डिस्टेंडिंग की दूरी बनाकर,
अब उठना-बैठना, टहलना व गप्पे मारना भी भूल गये।
बाजार, माॅल और पिक्चर का सुरम्य नजारा,
किस बला का नाम है, ये भी हमनें बिसरा दिए।
मन्दिर, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिद बंद करके,
घर पर ही दिन-रात पूजा व अर्चना में जुट गये।
मोटे होते जा रहे है, सिर्फ घर पर बैठकर खाने से,
पर इसमें भी शर्त है, पल-पल इम्यूनिटी बढ़ानी है।
व्यायाम कर-करके थक गये, तो क्या हुआ,
कोरोना को भगाने का संकल्प जो मन से ले लिए है।
कोरोना से दूरी और छुटकारा मिल जाये,
इसलिए बहुसूत्रीय कार्य में लगे और जुटे रहे।
ताली भी बजाये, फूलों की बरसात भी किए,
घर की रोशनी बुझाकर, दीपक भी जला लिए।
स्कूटर,कार, ट्रेन व हवाई जहाज का सफर भूल कर,
घुमने की तमन्ना को दिल ही दिल में दफना लिए।
रामायण में राम व हनुमान की भक्ति भी देख लिए,
महाभारत में भाईयों का द्वंद्व भी समझ लिए।
शक्तिमान के शक्ति से दो-दो हाथ करना सीखकर,
हम लोग, बुनियाद और व्योमकेशबक्सी में फँस गये।
चश्मे के साथ मास्क भी, मुँह पर चस्पा कर लिए,
गर्मी में पीपीइ किट पहन, गर्मी के दर्द को सह लिए।
जितनी कसरत व मसक्त, कोरोना तुमने हमसे करवा लिए,
ऐसी तपस्या कभी नहीं की, जितनी तुम्हारी कर लिए।
अब हमें छोड़कर जाओ तुम, तांड़व अपना बंद करो,
तुम्हारे बिना हमें जीना है, बिना खौफ भरे एहसासों में।
शांति सुकून की महफिल सजाकर, हमें जीना है शान से।
हम कूदेंगे, हम खेलेंगे, चहककर हम खुशियाँ मनायेंगे।
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