मेरे जीवन की आधारशिला...मेरी माँ (कविता)

इन्द्रधनुष के सात रंगों सा,
है व्यक्तित्व मेरी माँ का।
जिनकी ममतामयी छाँव में,
खिला मेरा बचपन-यौवन।

जाने कितने पैर चलाये,
मैंने माँ की कोख में।
स्पर्श मिला कोमल हाथों का,
सहलाया उसने सौ बार मुझे।

रुदन करते जब पहली बार,
आया मैं इस धरा पर।
माँ की गोद में मुझको,
शरण मिला था, प्यार से।

गूजां जब माँ का घर आँगन,
मेरे किलकारी की गूंज से,
हल्की-हल्की थाप दे कर,
सुलाया था, बड़े दुलार से।

सू -सू करके भिगों दिया,
उसे ठंड़ भरी हर रात में।
मुझे सूखे में सुला कर,
चूमा था, हर बार मुझे।

चलने और बढ़ने की ताकत,
मिली माँ के दूध से।
संबल और सामर्थ्य मिला,
अमृत रुपी आशीर्वाद से।

हर पल की शैतानी से,
मैंने माँ को परेशान किया।
समझाया मुझे, बहुत प्यार से,
फिर धमकाया था, अधिकार से।

बड़ी-बड़ी गलतियाँ मेरी,
सहर्ष उन्होंने माफ किया।
मेरी राहों के काँटे चुनकर,
मेरी मंजिल आसान किया।

शिखर तक पँहुचाकर मुझको,
मेरे सपनों को साकार किया।
मजबूत हुई, जब मेरी नींव,
उनके जीवन को सुकून मिला।

ऐसा भी आया एकदिन,जब,
माँ मुझको अचानक छोड़ गई।
आघात हुआ, वज्रपात हुआ,
उस दिन जीवन विरान हुआ।

माँ के समुचे अस्तित्व को,
जब अग्नि के सुपुर्द किया।
तब स्नेह भरी अपनी मुस्कान,
वह छोड़ गई, मेरे दिल में।

माँ के प्यार भरी भावना का,
मैंनें सदैव सत्कार किया।
माँ से जुड़े हर लम्हें को,
मैंनें तहें दिल से याद किया।

आदर्श भरी मिसाल माँ की,
हरपल है, स्वीकार मुझे।
जिस डगर पर बढ़ाया मुझे,
वह डगर बहुत बहुमूल्य है।

ममतामयी माँ के रुप से,
मुझको मिली अनमोल निधि।
माँ के प्यार भरी मुस्कान से,
मेरे जीवन की ज्योति जली।

ऐसी ही होती है, माँ सबकी,
जिनकी लीला असंख्य है।
उस अमूल्य निधि को दिल में,
धरोहर बना लो, बहुत प्यार से।

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