कौवा पक्षी (अटूट रिश्ता-5) (यादगार लम्हें)

पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के साथ व्यतीत कियें हुए अंतरंग अनुभव (अटूट रिश्ता-5)

कौवा बहुत चतुर, चालाक और फुर्तीला पक्षी होता है। ये हर घर का मेहमान बनता है, हर घर का मुंडेर इनके काँव - काँव से गुंजायमान होता है। ये आते है, मुंड़ेर पर बैठकर काँव-काँव करते है इधर-उधर खाने की चीज खोजते है। फिर दिख जाने पर चोंच में दबाये और फुर्र से उड़ जाते है। ये किसी घर के पालतू पक्षी नहीं बनते है। 
 पर बलिया में अपने प्रवास के दौरान कौवों से संबंधित एक अद्भुत नजारें से मेरा सामना हुआ। बाउंड्री के मुंडेर पर पच्चीसों कौवों की उतावली भीड़...  कुछ बैठी, कुछ उड़ती और कुछ रोटी को लपकती हुई काँव-काँव का बहुत शोर मचाती हुई। बाबूजी रोटी के टुकड़े-टुकड़े करके उसे कौवों की तरफ उछालतें तो कौवा उसे लपकने की होड़ में एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ लगाकर कोई कौवा चोंच में रोटी दबाकर सबसे अलग जा बैठता। वह विजयी कौवा खाने की ललक में सतर्कता भी नहीं भूलता और अपनी रोटी खा लेता। तभी तो कौवा को बहुत चालाक पक्षी कहा गया है।
ये नजारा मैं वहाँ प्रतिदिन देखती और मोहित होती। कभी-कभी मैं भी बाबूजी के साथ रोटी लोकाती और मजा लेती। ये कौवा बिना पाले हुए भी पालतू लगते थे। क्योंकि जब इनका समय हो जाता, तब ये मुंड़ेर पर आकर काँव-काँव  का शोर मचाते और ध्यान आकर्षित करते कि मुझे रोटी चाहिए। दो साल तक मैं इस मजेदार जैविक नजारें की प्रत्यक्ष गवाह बन भरपूर मजा लेती रही। बलिया से लौटने के बाद फिर कभी ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला। 
कौवे की चालाकी की एक कहानी मैंनें भी देखा है। एकदिन टहलाते समय मैं देखी कि बिजली के तार पर एक कौवा चोंच में एक रोटी के टुकड़े को दबायें बैठा था। थोड़ी देर बाद वह उड़ता हुआ नीचे आया और सड़क पर जमा पानी में अपने रोटी को भिगोया और फिर उड़कर बिजली के तार पर बैठकर टूकड़े को खा गया। रोटी सूखा और कड़ा था। कौवे ने अपनी बुद्धि से रोटी को गीला करके मुलायम कर लिया... है ना ये कौवे के बुद्धिमान होने की कहानी। 
कौवा जब अपने बच्चे को अपने साथ उड़ाते हुए खाना खिलाता है, उस समय वह बहुत सतर्क रहता है। ऐसे में जब कोई उसके पास से गुजरता है तो वह सतर्कता वश उसको कोई हानि पँहुचाये उससे पहले ही वह उस व्यक्ति को ठोकर मार देता है। मैं दो बार ऐसी घटना की शिकार हो चुकी हूँ। कहते है...ये अनिष्ट के आशंका वाली घटना होती है, पर मैंने इसकी चर्चा कभी किसी से नहीं किया। और इसे भूल जाने में ही अपनी भलाई समझकर चुप रही और भूल गयी। 
आज गोमतीनगर के जिस पार्क में मैं टहलने जाती हूँ, वहाँ कौवों की संख्या बहुत अधिक है। यहाँ मैं उनके चहल-पहल वाले क्रियाकलापों को देखती हूँ और मनोरंजन करती हूँ। 

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