नवचेतना इण्टर कालेज की छात्रा कूकी और लाली पक्की सहेलियाँ थी। जबसे कूकी इस कालेज में पढना शुरु की तभी से लाली उसकी पक्की सहेली बन गई थी। कक्षा में और छात्राओं के होने बावजूद दोनों की अपनी अलग गूटर गूं चलती थी क्योंकि दोनों के सुर-लय और ताल हमेशा एक समान गति से बजती थी। यही कारण था कि दोनों की दोस्ती कालेज में एक मिसाल बन गई।
होली का रंगों वाला त्यौहार आने वाला था। चारों तरफ खुशियों और मस्ती के माहौल के कारण चहल-पहल थी। इसलिए कालेज में पढ़ाई कम, पर बातें अधिक होती थी। आज कालेज में रौनक अधिक थी क्योंकि आज पढ़ाई के बाद कालेज में होली के पर्व की छुट्टियाँ होने वाली थी। अनुशासन के कारण कालेज प्रशासन की तरफ से निर्देश था कि कालेज परिसर में कोई छुट्टी से पूर्व अबीर का प्रयोग नहीं करेगा। गीले रंगों का प्रयोग तो बिलकुल नहीं होना चाहिये, वरना खेलने वालों को सजा मिलेगी ।
होली के त्यौहार के कारण मन उमंग और उत्साह से लबरेज होने के बावजूद भी कोई रंग से खेल नहीं सकता था। इसलिए सिर्फ पकवानों के सपनें और रंगों से सराबोर होने की मस्ती भरी बातें आपसी बातचीत में बुने और गुने जाने लगे।
धीरे-धीरे आखिर वह दिन आ ही गया जब पढ़ाई के बाद होली की छुट्टी होने वाली थी। उस दिन सभी लड़कियाँ अपने घर में बने पकवान को लेकर आयी थी। इंटरवल में मैदान में बैठकर सबने अपना टिफिन मिलजुलकर एक दूसरे से साझा किया। लाली और कूकी का घर एक दूसरे के घर से दूर था। लाली कूकी के लिए मीठी पूड़ी और लड्डू लेकर आयी थी क्योंकि वह जानती थी कि कूकी को मीठे पकवान बहुत पसंद है। वहीं कूकी विभिन्न प्रकार के नमकीन लेकर आयी थी। वे जानती थी कि लाली को नमकीन व्यंजन पसंद है। टिफिन समाप्त होने के बाद लाली बोली,"
कूकी, अपना पानी का बोतल देना। मुझे प्यास लगी है। मैं अपना बोतल क्लासरूम में ही भूल आयी हूँ।"
कूकी बोली,"मैं आज पानी नहीं लायी हूँ। मैं अभी दौड़ कर तुम्हारा बोतल क्लासरूम से लेकर आती हूँ।"
कूकी दौड़कर लाली के बैग से पानी का बोतल लेकर आयी। दोनों उसी बोतल से पानी पी। दोनोँ सहेलियाँ मिलकर अन्य दोस्तों के साथ भी टिफिन शेयर की और बातों के चकचक दौर में बहकर मजा ली।
छुट्टी के समय कालेज में रंगों का वातावरण हो गया था। सभी लड़कियाँ मिलकर एक दूसरे को सौहार्दपूर्ण तरीके से अबीर लगाकर गले मिल रही थी।
अचानक कूकी अपने बैग से पानी का बोतल निकाली और उसे खोलकर लाल रंग का रंगीन पानी लाली पर उड़ेल दी और रंग लगे हथेली को लाली के चेहरे पर रगड़ दी। पूरी तरह से भींग चुकी लाली कूकी के इस अप्रत्याशित तरीका से रंग खेलने से तिलमिला गई, बोली, "कूकी, ये कौन सा तरीका है। तुमने मुझे गीले रंग से क्यों भिगोया है? तुम जानती हो मुझे गीले रंग से होली खेलना बिलकुल पसंद नहीं है। और इससे खेलना अनुशासन भंग करना भी है।"
"सॉरी लाली, मुझे तुमसे होली खेलने का बहुत मन कर रहा था। मैं तुम्हारे घर आ सकती नहीं। इसलिए मैंने अपने मन की इच्छा यहीं पूरी कर ली। देखों तुम कितनी सुंदर दिख रही हो।"
"सुंदर क्या लगूंगी, खाक। अपने मन की इच्छा पूरी कर ली बिना यह सोचे-समझे कि मुझे गीले रंगों से कितनी नफरत है। तुम जानती थी फिर भी तुमने मेरा मान नहीं रखा। तुम मेरी पक्की सहेली हो नहीं सकती हो। मैं तुमसे कुट्टी हूँ। अब मुझसे बोलने की कोशिश मत करना।"
यह कहकर लाली तेज कदमों से भागने लगी तो कूकी उसके पीछे सॉरी-सॉरी बोलती हुई कुछ दूर गयी पर लाली पैर पटकती हुई अपने घर चली गयी।
छुट्टियों बाद कालेज खुलने पर लाली अपना बैग लेकर अलग बैठ गई। कूकी के सॉरी बोलने के बावजूद भी लाली कूकी से बोली नहीं। प्रार्थना सभा में जब कूकी और लाली का नाम पुकारा गया तो कूकी हतप्रभ हो गई। प्रधानाचार्य महोदया लाली से पूछी,"कालेज बन्द होने वाले दिन क्या कूकी तुम्हारे उपर पानी वाला रंग डाली थी।" क्रोध से कांपती कूकी लाली को देख नहीं पायी कि लाली ने हाँ कहा या ना। लाली के झुके नजरों को कूकी ने देखना उचित ही नहीं समझा वरना उसे महसूस हो जाता कि इस चुगलखोरी में लाली का कोई हाथ नहीं है। उसके मन में तो बस यही बैठ गया कि यह शिकायत लाली ने ही किया वरना किसे गरज थी इस छोटी सी बात का बतंगड़ बनाने की। गीले रंग से खेलने के कारण कूकी को प्रार्थना सभा में पूरे बच्चों के सामने कान पकड़कर खड़ा होना पड़ा। कूकी ने इसे अपना बहुत बड़ा अपमान समझा। लाली-कूकी के बीच पासा पलट चुका था। लाली अब अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती थी तो कूकी मुँह बिचकाकर चेहरा फेर लेती। क्रोध व गलतफहमी के जंजीरों में जकड़ने के कारण दोनों के आँख और कान ऐसे बंद हुए कि दोनों एक दूसरे को देखना और सुनना बंद कर दी। गुरुर के मकड़जाल में दोनों फँस गई। दो दोस्तों की गहरी दोस्ती होली के बेमेल रंगीन रंग के कारण बदरंग होकर टूट गई।
परीक्षा हुई, पास होकर दोनों अगली क्लास में भी पहुचँ गयी, पर उनकी दोस्ती में मिलाप नहीं हुआ तो नहीं हुआ।
नये साल का होली का त्यौहार फिर आने वाला था। दोनों सहेलियों के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। कक्षा में होली का उमंग दिखने के बाद भी दोनों इस खुशी के माहौल में कटी-कटी सी थी। वे दूसरी लड़कियों के साथ भी खुलकर मजा नहीं ले पा रही थी।
छुट्टियों के पहले कालेज का आखिरी दिन था। आज के बाद होली की छुट्टी होने वाली थी। दोनों सहेलियों के बुझे मन को देखकर कई सहेलियों ने समझाने, खेलने और आपस में मेल कराने की काफी कोशिश की। पर दोनों के मन में पड़ा मैल साफ नहीं हो रहा था। दोनों क्लास में उदासीन बैठी थी। उन्हें रंग खेलने से जैसे परहेज था। पर लोगों को खेलते देखकर दोनों के मन की तरंगें उछाल मारने लगी। उन्हें अपनी फीकी होली कचोटने और चुभने लगी। वे निष्क्रिय व खामोश बैठी एक दूसरे को अपने तिरछी नजरों से भाप लेती,पर पहल कैसे हो क्योंकि अभिमान की जंजीर दोनों को जकड़े हुए थी।
छुट्टी का समय था। चकचक करते उत्साहित बच्चों के बीच में पेबंद लगी दो सहेलियाँ सधे कदमों से खामोश आगे गेट की तरफ बढ़ रही थी। गेट का वही जगह आ गया ,जहाँ पिछली होली से पूर्व उनकी दोस्ती टूटी थी।
अचानक लाली अपने हाथ में अबीर लेकर आयी और कूकी के मुँह पर मलती हुई बोली,"सॉरी दोस्त, मैं तुम्हारे बिना इस तरह अकेली अब और अधिक नहीं रह सकती। मुझे माफ कर दो। मैंनें बहुत बड़ी गलती की थी जो मैं तुम पर उबल पड़ी। मुझे इस तरह क्रोध में बरसना नहीं चाहिए। प्रिंसिपल मैम से मैंने कोई शिकायत नहीं की थी।"
यह सुनकर कूकी कुछ बोली नहीं। वह लाली के गले लिपटकर रोने लगी। दोनों के इस अप्रत्याशित अद्भुत मिलन पर और लड़कियाँ रुक गयी। वे 'बुरा न मानों होली है।' का उच्चारण करते हुए हर्षोउल्लास से एक दूसरे को और अबीर लगाने लगी।
होली खेलने के बाद जब सारी छात्राएं जाने लगी तो लाली बोली,"कूकी, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि हम कैसे बिना बोले इतने दिन रह गये। ये अहंकार और क्रोध की बातें बहुत बुरी चीज है। इसी ने हम दोनों को इतने दिन दूर रखा। अब हम कभी ऐसे गलत चीजों का अनुसरण नहीं करेंगे।"
"नहीं लाली, गलती मेरी थी। यह जानते हुए कि तुम्हें गीले रंगों से परहेज है.. मैं ये गुस्ताखी कर बैठी।"
"छोड़ो पिछले बातों को। चलो, अब हमारी दोस्ती टूटेगी नहीं। मैं इस होली पर तुम्हारे यहाँ आऊंगी। फिर हम मिलकर खूब पानी वाला रंग खेलेंगे।
"पानी वाला रंग..क्या पानी वाले रंग से तुम्हें डर नहीं लगेगा?" कूकी आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोली।
"नहीं, तुमने मुझे जब रंग से भिगोकर मेरा मुड काफी दिनों तक के लिए खराब कर दिया। पर मनन करने पर मेरा मैल अपने आप धुल गया जिससे मेरा डर भी छूमंतर हो गया। अब मैं पानी वाले रंग से बिलकुल नहीं डरती।"
"ओह, ऐसी बात है। तब तो यह बहुत अच्छा हुआ।"
"हाँ, तुमने मेरे मन का डर समाप्त कर दिया। इसके लिए तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।"
" मेरे मन की ग्लानि भी दूर हो गई। अब हमारी दोस्ती और अधिक पक्की हो गयी।" कूकी लाली को बाहों के बंधन में जकड़ती हुई बोली।
थोड़ी देर बाद जब दोनों दोस्त हाथ में हाथ डाले कालेज से बाहर निकली और होली का त्यौहार मंगलमय हो बोलकर अपने-अपने घर को चलने लगी। तभी पीछे से उनकी क्लासमेट नीरा जोर से चिल्लाते हुए गाने लगी...
"बिछुड़े दोस्त को मिलाये,
होली का मस्त त्यौहार,
गिले-शिकवे सब दूर करें,
होली का रंगीन त्यौहार।
आओ मिलकर खेलें हम,
होली है दोस्तों का पर्व।"
होली के त्यौहार के कारण मन उमंग और उत्साह से लबरेज होने के बावजूद भी कोई रंग से खेल नहीं सकता था। इसलिए सिर्फ पकवानों के सपनें और रंगों से सराबोर होने की मस्ती भरी बातें आपसी बातचीत में बुने और गुने जाने लगे।
धीरे-धीरे आखिर वह दिन आ ही गया जब पढ़ाई के बाद होली की छुट्टी होने वाली थी। उस दिन सभी लड़कियाँ अपने घर में बने पकवान को लेकर आयी थी। इंटरवल में मैदान में बैठकर सबने अपना टिफिन मिलजुलकर एक दूसरे से साझा किया। लाली और कूकी का घर एक दूसरे के घर से दूर था। लाली कूकी के लिए मीठी पूड़ी और लड्डू लेकर आयी थी क्योंकि वह जानती थी कि कूकी को मीठे पकवान बहुत पसंद है। वहीं कूकी विभिन्न प्रकार के नमकीन लेकर आयी थी। वे जानती थी कि लाली को नमकीन व्यंजन पसंद है। टिफिन समाप्त होने के बाद लाली बोली,"
कूकी, अपना पानी का बोतल देना। मुझे प्यास लगी है। मैं अपना बोतल क्लासरूम में ही भूल आयी हूँ।"
कूकी बोली,"मैं आज पानी नहीं लायी हूँ। मैं अभी दौड़ कर तुम्हारा बोतल क्लासरूम से लेकर आती हूँ।"
कूकी दौड़कर लाली के बैग से पानी का बोतल लेकर आयी। दोनों उसी बोतल से पानी पी। दोनोँ सहेलियाँ मिलकर अन्य दोस्तों के साथ भी टिफिन शेयर की और बातों के चकचक दौर में बहकर मजा ली।
छुट्टी के समय कालेज में रंगों का वातावरण हो गया था। सभी लड़कियाँ मिलकर एक दूसरे को सौहार्दपूर्ण तरीके से अबीर लगाकर गले मिल रही थी।
अचानक कूकी अपने बैग से पानी का बोतल निकाली और उसे खोलकर लाल रंग का रंगीन पानी लाली पर उड़ेल दी और रंग लगे हथेली को लाली के चेहरे पर रगड़ दी। पूरी तरह से भींग चुकी लाली कूकी के इस अप्रत्याशित तरीका से रंग खेलने से तिलमिला गई, बोली, "कूकी, ये कौन सा तरीका है। तुमने मुझे गीले रंग से क्यों भिगोया है? तुम जानती हो मुझे गीले रंग से होली खेलना बिलकुल पसंद नहीं है। और इससे खेलना अनुशासन भंग करना भी है।"
"सॉरी लाली, मुझे तुमसे होली खेलने का बहुत मन कर रहा था। मैं तुम्हारे घर आ सकती नहीं। इसलिए मैंने अपने मन की इच्छा यहीं पूरी कर ली। देखों तुम कितनी सुंदर दिख रही हो।"
"सुंदर क्या लगूंगी, खाक। अपने मन की इच्छा पूरी कर ली बिना यह सोचे-समझे कि मुझे गीले रंगों से कितनी नफरत है। तुम जानती थी फिर भी तुमने मेरा मान नहीं रखा। तुम मेरी पक्की सहेली हो नहीं सकती हो। मैं तुमसे कुट्टी हूँ। अब मुझसे बोलने की कोशिश मत करना।"
यह कहकर लाली तेज कदमों से भागने लगी तो कूकी उसके पीछे सॉरी-सॉरी बोलती हुई कुछ दूर गयी पर लाली पैर पटकती हुई अपने घर चली गयी।
छुट्टियों बाद कालेज खुलने पर लाली अपना बैग लेकर अलग बैठ गई। कूकी के सॉरी बोलने के बावजूद भी लाली कूकी से बोली नहीं। प्रार्थना सभा में जब कूकी और लाली का नाम पुकारा गया तो कूकी हतप्रभ हो गई। प्रधानाचार्य महोदया लाली से पूछी,"कालेज बन्द होने वाले दिन क्या कूकी तुम्हारे उपर पानी वाला रंग डाली थी।" क्रोध से कांपती कूकी लाली को देख नहीं पायी कि लाली ने हाँ कहा या ना। लाली के झुके नजरों को कूकी ने देखना उचित ही नहीं समझा वरना उसे महसूस हो जाता कि इस चुगलखोरी में लाली का कोई हाथ नहीं है। उसके मन में तो बस यही बैठ गया कि यह शिकायत लाली ने ही किया वरना किसे गरज थी इस छोटी सी बात का बतंगड़ बनाने की। गीले रंग से खेलने के कारण कूकी को प्रार्थना सभा में पूरे बच्चों के सामने कान पकड़कर खड़ा होना पड़ा। कूकी ने इसे अपना बहुत बड़ा अपमान समझा। लाली-कूकी के बीच पासा पलट चुका था। लाली अब अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती थी तो कूकी मुँह बिचकाकर चेहरा फेर लेती। क्रोध व गलतफहमी के जंजीरों में जकड़ने के कारण दोनों के आँख और कान ऐसे बंद हुए कि दोनों एक दूसरे को देखना और सुनना बंद कर दी। गुरुर के मकड़जाल में दोनों फँस गई। दो दोस्तों की गहरी दोस्ती होली के बेमेल रंगीन रंग के कारण बदरंग होकर टूट गई।
परीक्षा हुई, पास होकर दोनों अगली क्लास में भी पहुचँ गयी, पर उनकी दोस्ती में मिलाप नहीं हुआ तो नहीं हुआ।
नये साल का होली का त्यौहार फिर आने वाला था। दोनों सहेलियों के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। कक्षा में होली का उमंग दिखने के बाद भी दोनों इस खुशी के माहौल में कटी-कटी सी थी। वे दूसरी लड़कियों के साथ भी खुलकर मजा नहीं ले पा रही थी।
छुट्टियों के पहले कालेज का आखिरी दिन था। आज के बाद होली की छुट्टी होने वाली थी। दोनों सहेलियों के बुझे मन को देखकर कई सहेलियों ने समझाने, खेलने और आपस में मेल कराने की काफी कोशिश की। पर दोनों के मन में पड़ा मैल साफ नहीं हो रहा था। दोनों क्लास में उदासीन बैठी थी। उन्हें रंग खेलने से जैसे परहेज था। पर लोगों को खेलते देखकर दोनों के मन की तरंगें उछाल मारने लगी। उन्हें अपनी फीकी होली कचोटने और चुभने लगी। वे निष्क्रिय व खामोश बैठी एक दूसरे को अपने तिरछी नजरों से भाप लेती,पर पहल कैसे हो क्योंकि अभिमान की जंजीर दोनों को जकड़े हुए थी।
छुट्टी का समय था। चकचक करते उत्साहित बच्चों के बीच में पेबंद लगी दो सहेलियाँ सधे कदमों से खामोश आगे गेट की तरफ बढ़ रही थी। गेट का वही जगह आ गया ,जहाँ पिछली होली से पूर्व उनकी दोस्ती टूटी थी।
अचानक लाली अपने हाथ में अबीर लेकर आयी और कूकी के मुँह पर मलती हुई बोली,"सॉरी दोस्त, मैं तुम्हारे बिना इस तरह अकेली अब और अधिक नहीं रह सकती। मुझे माफ कर दो। मैंनें बहुत बड़ी गलती की थी जो मैं तुम पर उबल पड़ी। मुझे इस तरह क्रोध में बरसना नहीं चाहिए। प्रिंसिपल मैम से मैंने कोई शिकायत नहीं की थी।"
यह सुनकर कूकी कुछ बोली नहीं। वह लाली के गले लिपटकर रोने लगी। दोनों के इस अप्रत्याशित अद्भुत मिलन पर और लड़कियाँ रुक गयी। वे 'बुरा न मानों होली है।' का उच्चारण करते हुए हर्षोउल्लास से एक दूसरे को और अबीर लगाने लगी।
होली खेलने के बाद जब सारी छात्राएं जाने लगी तो लाली बोली,"कूकी, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि हम कैसे बिना बोले इतने दिन रह गये। ये अहंकार और क्रोध की बातें बहुत बुरी चीज है। इसी ने हम दोनों को इतने दिन दूर रखा। अब हम कभी ऐसे गलत चीजों का अनुसरण नहीं करेंगे।"
"नहीं लाली, गलती मेरी थी। यह जानते हुए कि तुम्हें गीले रंगों से परहेज है.. मैं ये गुस्ताखी कर बैठी।"
"छोड़ो पिछले बातों को। चलो, अब हमारी दोस्ती टूटेगी नहीं। मैं इस होली पर तुम्हारे यहाँ आऊंगी। फिर हम मिलकर खूब पानी वाला रंग खेलेंगे।
"पानी वाला रंग..क्या पानी वाले रंग से तुम्हें डर नहीं लगेगा?" कूकी आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोली।
"नहीं, तुमने मुझे जब रंग से भिगोकर मेरा मुड काफी दिनों तक के लिए खराब कर दिया। पर मनन करने पर मेरा मैल अपने आप धुल गया जिससे मेरा डर भी छूमंतर हो गया। अब मैं पानी वाले रंग से बिलकुल नहीं डरती।"
"ओह, ऐसी बात है। तब तो यह बहुत अच्छा हुआ।"
"हाँ, तुमने मेरे मन का डर समाप्त कर दिया। इसके लिए तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।"
" मेरे मन की ग्लानि भी दूर हो गई। अब हमारी दोस्ती और अधिक पक्की हो गयी।" कूकी लाली को बाहों के बंधन में जकड़ती हुई बोली।
थोड़ी देर बाद जब दोनों दोस्त हाथ में हाथ डाले कालेज से बाहर निकली और होली का त्यौहार मंगलमय हो बोलकर अपने-अपने घर को चलने लगी। तभी पीछे से उनकी क्लासमेट नीरा जोर से चिल्लाते हुए गाने लगी...
"बिछुड़े दोस्त को मिलाये,
होली का मस्त त्यौहार,
गिले-शिकवे सब दूर करें,
होली का रंगीन त्यौहार।
आओ मिलकर खेलें हम,
होली है दोस्तों का पर्व।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें