मंगल वन में जूली जिराफ के बेटा जीरस के जन्मदिन के समारोह की धुम मची थी । वन के सभी जीव-जंतु के साथ राजा शेरसिंह, इंस्पेक्टर गब्दू घोड़ा और सभ्य सदस्य आमंत्रित थे । खुशियों के माहौल के साथ अच्छे -अच्छे पकवानों से आसपास का माहौल महक उठा था ।
पड़ोसी कनक वन की धूर्त लम्मू लोमड़ी उधर से गुजर रही थी, तो जूली के घर की चहल-पहल को देखकर वह रुक गई । खाने की खुशबूदार महक से उसके मुँह में पानी आने लगा । वह चारों तरफ घुमकर किसी ऐसे जानवर की तलाश करने लगी, जिसकी वह मदद लेकर ऐसे स्वादिष्ट भोजन का लुफ्त उठा सकें ।
तभी उसने देखा कि मंकू बंदर तैयार हो कर पेड़ पर उछलकूद मचा रहा है ।
लम्मू तैयार मंकू को देखकर समझ गयी कि मंकू समारोह में आमंत्रित है । वह मंकू के उछलकूद को रोकती हुई उसके पास जाकर बोली ," अरे भाई , तुम इस तरह पेड़ की ड़ालों पर इधर-उधर कूदकर धमाचौकड़ी क्यों मचा रहे हो ? "
मंकू चौंककर ध्यान से देखने लगा कि कौन अजनबी उसे पुकार रहा है । तभी लम्मू बोली ,"अरे भाई , मैं तुम्हीं से बातें कर रही हूँ । मैं तुम्हारी पड़ोसी लम्मू लोमड़ी कनक वन से टहलते टहलते यहाँ आ गयी । "
अपने उत्साह में बाधा पहुँचने के कारण मंकू खिज गया । वह गुर्राकर बोला " मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं हूँ । तुम टहल रही हो , तो टहलों । मैं क्या करु ? मैं मना तो नहीं कर रहा । " मंकू अपना पिंड़ छुड़ाना चाहता था ।
" अरे , मैं काफी दूर से चलकर आ रही हूँ । इस समय काफी थकी हुई और भूखी भी हूँ । क्या तुम किसी भूखे की मदद नहीं कर सकते हो ? " लम्मू दयनीय स्थिति बनाकर बोली ।
"भूखे को भोजन कराना तो अच्छी बात होती है । पर इस समय मैं मजबूर हूँ ,क्योंकि इस समय मेरे पास कुछ खाने को नहीं है । और मैं भी भूखा रहकर अपना समय व्यतीत कर रहा हूँ ।"
" तुम क्यों भूखे हो ? भूखे होते तो पहले खाने पीने का इंतजाम करते । इस तरह सजधज कर तैयार होकर टहलते नहीं । क्या तुम कहीं किसी समारोह में जा रहे हो ?" लम्मू अपनी चालाकी को छिपाते हुए , मुँह में आये पानी को गटकते हुए बोली ।
"हाँ , जा तो रहा हूँ । पर तुम्हें इससे क्या ? तुम मेरा पीछा छोड़ों । कहीं और जाओ और अपने खाने का इंतजाम करों । " मंकू बोला , क्योंकि वह लम्मू को अपने साथ ले जाना नहीं चाहता था ।
"क्यों भाई , क्या तुममें जरा भी दया भाव नहीं है , जो तुम एक घर आये भूखे जानवर को छोड़कर मौज-मस्ती मारने जा रहे हो ? " लम्मू ने अपनी तिकड़मी चाल चल दी तो मंकू सोच में पड़ गया । वह लम्मू को बताना नहीं चाहता था कि वह जन्मदिन के पार्टी में जा रहा है । लेकिन लम्मू उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए अगला पासा फेकतें हुए बोली ," इस समय तो तुम्हें कुछ करना भी नहीं पड़ेगा । तुम जहाँ जा रहे हो , वहीं मुझे भी अपना दोस्त बनाकर लेते चलो । मेरा पेट भर जायेगा। तुम्हारा कुछ नुकसान भी नहीं होगा। "
अब मंकू सोच में पड़ गया , फिर बोला ," मुझे तुम पर विश्वास कैसे हो कि तुम वहाँ कोई उंटपटांग हरकत नहीं करोगी ? तुम इतनी सीधी तो हो नहीं , जो सिर्फ खाना खाकर ही लौट आओगी । "
" मेरा विश्वास करो । मैं बहुत भूखी हूँ । कुछ मिला नहीं तो मर जाउंगी । इसलिए विश्वास करो, सिर्फ खाना खाकर वापस लौट जाऊंगी । "
मंकू लम्मू की चाल में फँस गया । उसने सोचा जहाँ इतने लोग खाना खायेंगें वहाँ एक लम्मू के खाने से कोई असर नहीं पड़ेगा । वह लम्मू से बोला," तुम्हारे पर विश्वास करके ले चल रहा हूँ , पर कोई गलत काम मत करना जिससे मुझे सबके सामने लज्जित होना पड़े। "
" क्या मैं तुम्हें ऐसी दिख रही हूँ । " लम्मू इस समय बहुत सीधी लग रही थी ।
मंकू के साथ लम्मू जीरस के जन्मदिन समारोह में गई , तो लोग बार बार मंकू से लम्मू का परिचय पूछने लगे , क्योंकि लम्मू सभी के लिए अजनबी थी । मंकू लम्मू का परिचय अपने दोस्त के रुप में कराया तो लोग आश्चर्य से मंकू को देखने लगते क्योंकि कभी किसी ने मंकू के साथ लम्मू को देखा नहीं था ।
केक कटने के बाद खाने वालों में लम्मू सबसे आगे थी । लम्मू छककर खाना खायी । शेरसिंह के खाने की व्यवस्था अलग थी । वे खाना खाकर अपने दलबल के साथ चले गये।
खाने के बाद जब मंकू लम्मू का पीछा करता तो लम्मू कभी इधर दिखती , कभी उधर । वह मंकू के सामने आने से कतराने लगी । मंकू उसकी चालाकी भांप गया । मंकू परेशान था कि लम्मू कहीं कोई गड़बड़ी न फैला दे ।
पर होनी को कौन टाल सकता था ? थोड़ी देर बाद ही गब्दू बकरी अपने गले का हार खोजने लगी । उसने बताया कि अभी तो लम्मू उससे बात कर रही थी । उस समय तो वह हार उसके गले में थी । उसी समय उन्नी उल्लू उड़ती हुई वहाँ आकर बोली ," मेरी झुमकी कहीं गिर गया है । क्या तुम लोगों में से किसी को मिला है ।"
सब आश्चर्य से एक दूसरे का मुँह देखने लगे । यह उन लोगों के लिए पहली घटना थी जिसमें किसी समारोह से कोई सामान गायब हुआ हो ।
तभी सभा में मौजूद इंस्पेक्टर गब्दू बोला , " अरे , मंकू का दोस्त लम्मू कहाँ है ? कोई तो उसे ढ़ूढ़ों । मंकू कहाँ है ? क्या वह भी नदारत हो गया है ?"
मंकू सर नीचे किए हुए वहीं खड़ा था , बोला ," मैं यहाँ हूँ । मैं तो स्वयं उस धूर्त को खोज रहा हूँ । पर लगता है ..वह हमें घोखा देकर गायब हो गई है ।"
गब्दू हिनहिनाता हुआ जोर से बोला ," कैसे दोस्त हो , जो अपने दोस्त के बारे में नहीं जानते हो ? "
अब मंकू लज्जित होता हुआ सारी बातें जब सबके सामने बताया तो जूली जिराफ जोर से चिल्लाते हुए बोली ,"तुम एक अजनबी को लेकर मेरे दावत में आने की हिम्मत कैसे कर लिए । तुम इतने बेवकूफ बन जाओगे, मैं सोच भी नहीं सकती । अब गब्दू तुम अपने दो-चार सिपाहियों के साथ जाओ । उसे खोजकर कहीँ से भी पकड़कर ले आओ । सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए ।"
गब्दू के जाने के बाद मंकू की खूब खिचाई हुई कि कैसे उसने एक अजनबी पर विश्वास कर लिया । मंकू दुखी होकर बताया कि कैसे लम्मू ने अपनी दयनीय भूखी स्थिति बताकर उसे अपने वश में कर लिया था ।
लगभग एक घंटा बाद गब्दू लम्मू को चोरी के सामान के साथ पकड़कर ले आया ।
सबका सामान वापस दिलाने के बाद मंकू लम्मू से बोला ,"धूर्त अपनी धूर्तयी जल्दी छोड़ते नहीं है । मैं इस बात को भूलकर तुम्हारी मदद की तब भी तुमने सभा में मुझे लज्जित कर दिया।" गब्दू लम्मू को थाना ले जाकर जेल में बंद कर दिया ।
मंकू उस दिन सबके सामने अपनी गलती स्वीकार करके सबसे क्षमा याचना करते हुए बोला ,"आज अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । अब ऐसी गलती कभी नहीं करुंगा । किसी अजनबी पर इतना विश्वास करना अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा ही हुआ । "
इसके बाद सभा में मौजूद सभी सदस्यों को एक नयी सीख मिल गई कि किसी अंजान अजनबी पर कभी इतना भरोसा मत करो कि वह तुम्हें घोखा दे दे और तुम्हें पता भी नहीं चले ।
तभी उसने देखा कि मंकू बंदर तैयार हो कर पेड़ पर उछलकूद मचा रहा है ।
लम्मू तैयार मंकू को देखकर समझ गयी कि मंकू समारोह में आमंत्रित है । वह मंकू के उछलकूद को रोकती हुई उसके पास जाकर बोली ," अरे भाई , तुम इस तरह पेड़ की ड़ालों पर इधर-उधर कूदकर धमाचौकड़ी क्यों मचा रहे हो ? "
मंकू चौंककर ध्यान से देखने लगा कि कौन अजनबी उसे पुकार रहा है । तभी लम्मू बोली ,"अरे भाई , मैं तुम्हीं से बातें कर रही हूँ । मैं तुम्हारी पड़ोसी लम्मू लोमड़ी कनक वन से टहलते टहलते यहाँ आ गयी । "
अपने उत्साह में बाधा पहुँचने के कारण मंकू खिज गया । वह गुर्राकर बोला " मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं हूँ । तुम टहल रही हो , तो टहलों । मैं क्या करु ? मैं मना तो नहीं कर रहा । " मंकू अपना पिंड़ छुड़ाना चाहता था ।
" अरे , मैं काफी दूर से चलकर आ रही हूँ । इस समय काफी थकी हुई और भूखी भी हूँ । क्या तुम किसी भूखे की मदद नहीं कर सकते हो ? " लम्मू दयनीय स्थिति बनाकर बोली ।
"भूखे को भोजन कराना तो अच्छी बात होती है । पर इस समय मैं मजबूर हूँ ,क्योंकि इस समय मेरे पास कुछ खाने को नहीं है । और मैं भी भूखा रहकर अपना समय व्यतीत कर रहा हूँ ।"
" तुम क्यों भूखे हो ? भूखे होते तो पहले खाने पीने का इंतजाम करते । इस तरह सजधज कर तैयार होकर टहलते नहीं । क्या तुम कहीं किसी समारोह में जा रहे हो ?" लम्मू अपनी चालाकी को छिपाते हुए , मुँह में आये पानी को गटकते हुए बोली ।
"हाँ , जा तो रहा हूँ । पर तुम्हें इससे क्या ? तुम मेरा पीछा छोड़ों । कहीं और जाओ और अपने खाने का इंतजाम करों । " मंकू बोला , क्योंकि वह लम्मू को अपने साथ ले जाना नहीं चाहता था ।
"क्यों भाई , क्या तुममें जरा भी दया भाव नहीं है , जो तुम एक घर आये भूखे जानवर को छोड़कर मौज-मस्ती मारने जा रहे हो ? " लम्मू ने अपनी तिकड़मी चाल चल दी तो मंकू सोच में पड़ गया । वह लम्मू को बताना नहीं चाहता था कि वह जन्मदिन के पार्टी में जा रहा है । लेकिन लम्मू उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए अगला पासा फेकतें हुए बोली ," इस समय तो तुम्हें कुछ करना भी नहीं पड़ेगा । तुम जहाँ जा रहे हो , वहीं मुझे भी अपना दोस्त बनाकर लेते चलो । मेरा पेट भर जायेगा। तुम्हारा कुछ नुकसान भी नहीं होगा। "
अब मंकू सोच में पड़ गया , फिर बोला ," मुझे तुम पर विश्वास कैसे हो कि तुम वहाँ कोई उंटपटांग हरकत नहीं करोगी ? तुम इतनी सीधी तो हो नहीं , जो सिर्फ खाना खाकर ही लौट आओगी । "
" मेरा विश्वास करो । मैं बहुत भूखी हूँ । कुछ मिला नहीं तो मर जाउंगी । इसलिए विश्वास करो, सिर्फ खाना खाकर वापस लौट जाऊंगी । "
मंकू लम्मू की चाल में फँस गया । उसने सोचा जहाँ इतने लोग खाना खायेंगें वहाँ एक लम्मू के खाने से कोई असर नहीं पड़ेगा । वह लम्मू से बोला," तुम्हारे पर विश्वास करके ले चल रहा हूँ , पर कोई गलत काम मत करना जिससे मुझे सबके सामने लज्जित होना पड़े। "
" क्या मैं तुम्हें ऐसी दिख रही हूँ । " लम्मू इस समय बहुत सीधी लग रही थी ।
मंकू के साथ लम्मू जीरस के जन्मदिन समारोह में गई , तो लोग बार बार मंकू से लम्मू का परिचय पूछने लगे , क्योंकि लम्मू सभी के लिए अजनबी थी । मंकू लम्मू का परिचय अपने दोस्त के रुप में कराया तो लोग आश्चर्य से मंकू को देखने लगते क्योंकि कभी किसी ने मंकू के साथ लम्मू को देखा नहीं था ।
केक कटने के बाद खाने वालों में लम्मू सबसे आगे थी । लम्मू छककर खाना खायी । शेरसिंह के खाने की व्यवस्था अलग थी । वे खाना खाकर अपने दलबल के साथ चले गये।
खाने के बाद जब मंकू लम्मू का पीछा करता तो लम्मू कभी इधर दिखती , कभी उधर । वह मंकू के सामने आने से कतराने लगी । मंकू उसकी चालाकी भांप गया । मंकू परेशान था कि लम्मू कहीं कोई गड़बड़ी न फैला दे ।
पर होनी को कौन टाल सकता था ? थोड़ी देर बाद ही गब्दू बकरी अपने गले का हार खोजने लगी । उसने बताया कि अभी तो लम्मू उससे बात कर रही थी । उस समय तो वह हार उसके गले में थी । उसी समय उन्नी उल्लू उड़ती हुई वहाँ आकर बोली ," मेरी झुमकी कहीं गिर गया है । क्या तुम लोगों में से किसी को मिला है ।"
सब आश्चर्य से एक दूसरे का मुँह देखने लगे । यह उन लोगों के लिए पहली घटना थी जिसमें किसी समारोह से कोई सामान गायब हुआ हो ।
तभी सभा में मौजूद इंस्पेक्टर गब्दू बोला , " अरे , मंकू का दोस्त लम्मू कहाँ है ? कोई तो उसे ढ़ूढ़ों । मंकू कहाँ है ? क्या वह भी नदारत हो गया है ?"
मंकू सर नीचे किए हुए वहीं खड़ा था , बोला ," मैं यहाँ हूँ । मैं तो स्वयं उस धूर्त को खोज रहा हूँ । पर लगता है ..वह हमें घोखा देकर गायब हो गई है ।"
गब्दू हिनहिनाता हुआ जोर से बोला ," कैसे दोस्त हो , जो अपने दोस्त के बारे में नहीं जानते हो ? "
अब मंकू लज्जित होता हुआ सारी बातें जब सबके सामने बताया तो जूली जिराफ जोर से चिल्लाते हुए बोली ,"तुम एक अजनबी को लेकर मेरे दावत में आने की हिम्मत कैसे कर लिए । तुम इतने बेवकूफ बन जाओगे, मैं सोच भी नहीं सकती । अब गब्दू तुम अपने दो-चार सिपाहियों के साथ जाओ । उसे खोजकर कहीँ से भी पकड़कर ले आओ । सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए ।"
गब्दू के जाने के बाद मंकू की खूब खिचाई हुई कि कैसे उसने एक अजनबी पर विश्वास कर लिया । मंकू दुखी होकर बताया कि कैसे लम्मू ने अपनी दयनीय भूखी स्थिति बताकर उसे अपने वश में कर लिया था ।
लगभग एक घंटा बाद गब्दू लम्मू को चोरी के सामान के साथ पकड़कर ले आया ।
सबका सामान वापस दिलाने के बाद मंकू लम्मू से बोला ,"धूर्त अपनी धूर्तयी जल्दी छोड़ते नहीं है । मैं इस बात को भूलकर तुम्हारी मदद की तब भी तुमने सभा में मुझे लज्जित कर दिया।" गब्दू लम्मू को थाना ले जाकर जेल में बंद कर दिया ।
मंकू उस दिन सबके सामने अपनी गलती स्वीकार करके सबसे क्षमा याचना करते हुए बोला ,"आज अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । अब ऐसी गलती कभी नहीं करुंगा । किसी अजनबी पर इतना विश्वास करना अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा ही हुआ । "
इसके बाद सभा में मौजूद सभी सदस्यों को एक नयी सीख मिल गई कि किसी अंजान अजनबी पर कभी इतना भरोसा मत करो कि वह तुम्हें घोखा दे दे और तुम्हें पता भी नहीं चले ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें