चंदन वन के एक बड़े वृक्ष पर रहने वाली गौरी गौरेया और गिच्चू गिलहरी की बहुत दोस्ती थी। दोनों एक साथ दाना चुनते और बाते करते हुए अपना दिन बिताती थी। गौरी धीरे धीरे उड़ती हुई गिच्चू के साथ ही पूरे दिन रहती, खाती-पीती और मस्ती भी करती थी। जब सोना होता तभी दोनों अलग होती थी।
एकदिन भोर की बेला में पेड़ पर बैठी गौरी पेड़ के नीचे दाना चुनते हुए गिच्चू को देखती है ,तो वह झटपट पेड़ के नीचे आकर गिच्चू के साथ खेलने लगती है।
खेलते-खेलते वह गिच्चू से बोली," गिच्चू, मुझे तुम्हारी पूँछ बहुत सुंदर लगती है। झबरे बालों वाले पूँछ को हवा में लहराते हुए जब तुम शान से फुदुकते हुए दौड़ती हो, तब तुम्हारी चाल बहुत अच्छी लगती है।"
" अच्छा, तो तुम्हें मेरी यह मोटी पूँछ अच्छी लगती है? जबकि यह मुझे भारी और बेकार लगती है।" गिच्चू हैरान होकर बोली।
"काश, जिसे तुम मोटी और बेकार कह रही हो, वह मेरे पास होती तो मैं खुशी से इठलाती हुई दिनभर दौड़ लगाती रहती।" गौरी खुशी से इठलाती हुई बोली।
"एक बात अपने मन की तुम्हें बताऊ गौरी, जब कोई आहट होती है, तब तुम मुझे छोड़कर झट से पेड़ की उँची डाल पर जाकर बैठ जाती हो, उस समय मुझे बहुत खराब लगता है?"
"खराब क्यों लगता है?" गौरी आश्चर्यचकित होकर पूछी।
कल्पनाओं में ड़ूबते-उतराते हुए गिच्चू ने जवाब दिया,"उस समय मुझे यही लगता है कि काश, मेरे भी पास भी तुम्हारे जैसे प्यारे और सुंदर पंख होते। तब मैं भी फुर्र से उड़कर तुम्हारे साथ पेड़ की सबसे उँची डाल पर जाकर बैठ जाती।"
"क्या तुम्हारा भी मन उड़ने का करता है?"
"हाँ, उड़ने को बहुत मन करता है। उस समय ये जो झबरे बालों वाली पूँछ है। जिसे तुम बहुत सुंदर कहती हो, वह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। मन करता है इसे निकालकर अलग कर दूं और तुम्हारी तरह सुंदर व हल्के पंख लगाकर उड़ने लगूं।"
"काश, कितना अच्छा होता ,जो हम ये कर सकते। कुछ समय के लिए तुम मेरा पंख ले लेती और मैं तुम्हारी पूँछ।" गौरी की इतनी बातें सुनने के बाद दोनों दोस्त कल्पनाओं के लोक में विचरने लगी।
थोड़ी ही देर बाद अचानक बादल गरजने और बिजली चमकने लगी। दोनों चौंक गयी। वे कुछ समझती या घर लौटने को सोचती कि उसके पहले ही एक प्यारी सी सुंदर और सुनहरे बालों वाली परी मनमोहक सुगंध बिखेरती हुई आकर उनके सामने खड़ी हो गई।
अजनबी परी को देखकर दोनों घबड़ा गयी। और एक साथ बोली,"तुम कौन हो और यहाँ हमारे पास क्या करने आयी हो?"
यह सुनकर परी हँसती हुई बोली," मैं परियों की राजकुमारी चुनमुनी परी हूँ। मैं इस लोक में घुमने आयी तो तुम्हारे इसी पेड़ की मेहमान बनकर तुम लोगों के साथ इसी पेड़ पर रहने लगी। तुम मुझे नहीं जानती हो, क्योंकि तुम मुझे देख नहीं सकती हो। तुम मुझे तभी देख सकती हो जब मैं स्वयं तुम्हारे सामने आकर प्रकट न हो जांऊ। अभी तक मेरा कोई ऐसा काम तुम लोगों से नहीं पड़ा था, जिसके कारण मैं तुम लोगों के सामने आती।"
"फिर आज क्यों आयी हो?" गौरी ने प्रश्न किया।
"मैं तुम दोनों को जानती और तुम दोनों की दोस्ती को पहचानती भी हूँ। इसीलिए मुझे तुम लोगों के सामने तुम्हारी इच्छा की पूर्ति के लिए आना पड़ा।" चुनमुनी बोली।
"लेकिन तुम्हें हम लोगों के इच्छा के बारे में जानकारी कैसे हुई? हम तो अभी आपस में ही बाते ही कर रहे थे।" गिच्चू बोली।
"मैंने तुम लोगों की बातेँ सुन ली थी। मैंने सोचा मैं तुम लोगों के पेड़ की निवासी और तुम्हारी मेहमान हूँ। और तुम लोग मेरे लिए प्रिय भी हो, इसलिए मुझे तुम्हारी मदद करनी चाहिए।" चुनमुनी प्यार से बोली।
" अच्छा, अब तो तुम्हें हमारी इच्छा पता ही चल गया है। तब क्या, तुम हमारी इच्छा पूरी कर सकती हो?" गौरी और गिच्चू एक साथ उत्साहित होकर बोली।
"हाँ भाई हाँ। मैं आई ही इसीलिए हूँ। लो तुम्हारी इच्छा अभी से पूरी हो जाती है। अब तुम लोग अपने इच्छानुसार मजे करो। मेरी जब जरुरत होगी, मेरा नाम लेकर पुकारना , मैं प्रगट हो जाऊंगी।" यह कहकर चुनमुनी गायब हो गयी।
अभी गौरी और गिच्चू कुछ समझ पाते उससे पहले ही बिजली चमकी और उनकी आकृति बदल गई। दोनों आश्चर्यचकित होकर कभी अपने को तो कभी दूसरे को निहारने लगी। गिच्चू के पूँछ की जगह पंख लग गया और गौरी के पंख की जगह लम्बी झबरे बालों वाली पूँछ लग गयी।
"वाह भाई वाह। चुनमुनी ने हमारी सोच के अनुसार हमें बदल दिया। अब हम लोग मजे करेंगे।" गौरी अपने पूँछ को देखकर इतराती हुई बोली।
पर थोड़ी देर बाद जब गौरी को भारी लगने वाली पूँछ को सम्भालना पड़ा तो वह गिच्चू को ढ़ूढ़ने लगी। गिच्चू तब तक उड़कर पेड़ पर पँहुच चुकी थी। वह पेड़ की सबसे उँची डाल पर बैठकर मंद मंद बहते हवा के झोंको का मजा ले रही थी।
गौरी ने आवाज लगाई , तब उसे सुनकर गिच्चू नीचे आई। गौरी नाराज होकर बोली," तुम तो मुझे छोड़कर उड़ गई। ये भी नहीं देखी कि मैं कैसी हूँ? और पूँछ को सम्भाल पा रही हूँ कि नही।"
गिच्चू बोली," माफ करना गौरी। मुझे तो उड़ने में बहुत मजा आने लगा, तो मैं सब कुछ भूल गयी। पर तुम बोलो। क्या तुम्हें झबरे बालों वाली पूँछ को उठाकर इठलाते हुए चलना अच्छा नहीं लग रहा है।"
"अच्छा की कौन कहे। तुम मुझे पहले चार पैरों पर चलना तो सिखाओ।" गौरी खिजती हुई बोली।
"अपने आप सीखों। और मुझे मस्ती मारने दो।" यह कहकर गिच्चू उड़ने को हुई तो गौरी चिल्ला पड़ी," गिच्चू, मेरी मदद करो। मैं तुम्हारी भारी-भरकम पूँछ सम्भाल नहीं पा रही हूँ।" गौरी की दयनीय दशा देखकर गिच्चू रुक गयी। वह गौरी से बोली,"ये भारी नहीं होती है। बस तुम्हें इसे सम्भालना नहीं आ रहा है। तुम पूँछ को थोड़ा हिलाओ और फिर उसे उपर करके दौड़ने लगो।"
गौरी गिच्चू के तरीके से पूँछ को उपर की और फिर चार पैरों की सहायता से दौड़ने और दाना चुनने लगी।
दो दिन तक दोनों को मजा आया। लेकिन तीसरे दिन दोनों साथ बैठी तो दोनों उदास थी। सरलता से मनमाफिक मिला उपहार अब उनके मन को बोझ लगने लगा।
गिच्चू बोली, "गौरी, थोड़ी सी जरुरत को पूरा करने के लिए बार-बार उपर-नीचे आना-जाना बिलकुल अच्छा नहीं लगा। दूर से आकर्षित करने वाली चीजें जब आसानी से मिल जाती है, तब वह बोझ हो जाती है। हमें इस तरह दूसरे की चीजें देखकर लालच नहीं करना चाहिए। मैं अब अपने पुराने रुप में आना चाहती हूँ। क्या तुम अपने पहले रुप में आना चाहोगी?"
गौरी बोली," हाँ गिच्चू, तुम मुझे छोड़कर पेड़ की उँची डाल पर जाकर बैठ जाती हो तो मुझे अच्छा नहीं लगता था। और मेरे लिए भी तुम्हारे झबरे बालों वाले पूँछ को सम्भालना मुश्किल हो गया है। हमें लालच नहीं करना चाहिए। मैं भी अपने पहले रुप में आना चाहती हूँ।"
यह सुनकर गिच्चू बोली," गौरी, इस परिवर्तन से हमें एक सीख मिली। हमें दूसरों की चीजें अच्छी लगती है तो हमें उसकी ओर आकर्षित होने का हक है। पर उसे अपनाने के लिए लालच करना गलत है, क्योंकि प्रकृति ने बहुत सोच समझकर हमें जो आकृति दी है , हमें उसी आकृति में खुश रहना होगा, वरना परिवर्तन मुसीबत पैदा करेगा।"
"हाँ, गिच्चू, मैं भी घबड़ा चुकी हूँ इस झबरे बालों वाली पूँछ से। हमें चुनमुनी को पुकारना पड़ेगा।"
गिच्चू और गौरी दोनों मिलकर आग्रह भरे स्वर में चुनमुनी को पुकारने लगी। उनके आग्रह भरे पुकार को सुनकर चुनमुनी झटपट मुस्कुराते हुए दोनों के सामने प्रगट हो गयी। इन दोनों के उतरे मुख मंडल को देखकर चुनमुनी हँसती हुई बोली," हो गयी तुम्हारी इच्छायें पूरी?"
"हाँ, पूरी हो गयी। अब हमें अपने पहले रुप में आना है।" गिच्चू और गौरी एकसाथ बोल पड़ी।
"देखा, तुम लोगों ने। दूसरों की चीजें देखकर आकर्षित होना सरल है, पर उसे अपनाना कठिन होता है। यह प्रकृति के विपरीत है।"
"हाँ चुनमुनी, हमें अपनी भूल स्वीकार है। अब हम ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे। लालच बहुत बुरी बला है। हमें लालची बनना स्वीकार नहीं है। मुझे अपने पहले रुप में जल्दी से बदल दो। हमें अपने पहले रुप में आने की जल्दी है।" गिच्चू-गौरी साथ-साथ बोली।
चुनमुनी ने दोनों का रुप बदल दिया तो दोनों अपने असली रुप को पाकर बहुत खुश हो गयी। और खुशी से झूमती हुई उछल-कूदकर नाचने और कूदने लगी। खुशी-खुशी उन्होंने चुनमुनी को धन्यवाद कही। चुनमुनी उनकी खुशी कुछ पल निहारती रही, फिर मंद-मंद मुस्कुराते हुए उनसे विदा ली और गायब हो गयी।
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