पूनी चुहिया की मुलाकात एक दिन चंचल वन के एक पेड़ पर खामोश बैठी मंकू बंदरिया से हो गई। पूनी मंकू से बोली," मंकू तुम तो बहुत चुलबुली और उछलकूद करने वाली बंदरिया हो, फिर तुम इस तरह उदास क्यों बैठी हो?"
"क्या करु? मेरी चुलबुली नन्हीं बच्ची लल्ली बहुत शैतान है। अभी वह खेलती हुई न जाने किधर चली गई है। मैं उसे खोजने जाऊं भी तो कहाँ जाऊं? यदि मैं यहाँ से हटती हूँ और वह यहाँ आ गई, तो वह मुझे ढ़ूढ़ने कहाँ जायेगी।"
"तुम ठीक कह रही हो। इस तरह तो यह तुम दोनों के बीच आँखमिचौली हो जायेगी। बच्चों को इस तरह बिना अपनी माँ को बताए कहीँ जाना नहीं चाहिए। वरना वे किसी मुसीबत में फँस सकते है।"
"तुम ठीक कहती हो, पूनी बहन। मुझे जरा सी झपकी आ गई तो लल्ली को अपनी मनमानी करने का मौका मिल गया। बहुत चंचल है। बिलकुल डरती नहीं है। जबकि मैं ही डरती हूँ कि कहीं उसके साथ कोई अनर्थ न हो जाए।"
"हाँ मंकू, मुझे भी डर लग रहा है। वह चाहे जहाँ हो, सुरक्षित हो।" पूनी चिंता व्यक्त करते हुए बोली।
उसी समय कल्लू कौआ कांव-कांव करता हुआ मंकू के पास आया और हड़बड़ाकर बोला," मंकू, तुम यहाँ गप्पे मार रही हो, वहाँ तुम्हारी लल्ली को कुछ लोग अपने जाल में फँसाने की कोशिश कर रहे है।"
"जल्दी बताओ, मैं अभी अपनी लल्ली को छुड़ाकर लाती हूँ।" मंकू घबड़ाकर बोली।
कल्लू और मंकू जाने लगे तो पूनी बोली," मंकू, मैं भी तुम लोगों के साथ चलूगी। तुम लोग जल्दी जाओ, मैं पीछे से आती हूँ।"
कल्लू पीनू की खिल्ली उड़ाते हुए बोला,"तुम नन्हीं सी जान। तुम इसमें मंकू की मदद क्या कर पाओगी? चुपचाप जहाँ हो, वहीं पड़ी रहो। पीछे-पीछे आना मत।"
"अरे, मदद करुं या न करुं, पर साथ तो दे सकती हूँ।" यह कहकर पूनी भी दोनों का पीछा करने लगी।
पूनी को देखकर कल्लू जोर से चिल्लाया," कांव-कांव पूनी, मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम हमारा पीछा मत करो, पर तुम मानती क्यों नहीं हो?"
यह शोर सुनकर खुन्नू खरगोश अपने बिल से बाहर निकल कर बोला,"कल्लू ,क्यों कांव-कांव करके शोर मचा रहे हो? नींद में बाधा पड़ रही है। कहीं और जाकर चिल्लाओ।"
" मैं क्या करु? इस नन्हीं-पीद्दी सी पूनी के कारण चिल्ला रहा हूँ। यह किसी काम की तो है नहीं, पर बेकार में पीछे पड़ी है। कहती है लल्ली को खोजने में मदद करुंगी? अपनी औकात समझती नहीं।" कल्लू गुस्साकर बोला।
"क्या मैं तुम लोगों के साथ चल चलू? मैं उड़कर लल्ली को ढ़ूंढ़ निकालूंगी।" अपने घोसलें से झांकती हुई मैना बोली।
" तुम भी रहने दो। तुम कौन सी बड़ी हो? उड़कर ढ़ूढ़ने का काम तो मैं भी कर सकता हूँ। पर शेरु बलवान है। वह हमारे लिए ज्यादा मददगार होगा। मैं शेरु कुत्ता से अनुरोध करुंगा। वह दौड़कर शिकारियों का पीछा कर लेगा।" यह कहकर कल्लू शेरु को बुलाने गया। शेरु मंकू के मदद को तैयार हो गया। वह कल्लू के साथ मंकू के पास आ गया।
लल्ली को ढ़ूढ़ने के लिए मंकू, कल्लू और शेरु एकसाथ चल दिए।
बिल से निकलकर खुन्नू खरगोश पूनी से बोला,"पूनी, तुम क्यों अपना दिमाग खराब कर रही हो? जब इन्हें तुम्हारे पर भरोसा नहीं है, तब तुम चैन से आराम करो। मैं भी सोने जा रहा हूँ।"
"न जाने का मुझे मलाल नहीं है। दुख तो इस बात का है कि ये मुझे छोटा और बेकार समझते है। मैं कभी किसी की मदद कर सकती हूँ कि नहीं, यही सोच रही हूँ।" पूनी मायूस होकर बोली।
"तुम सोचो। मैं तो चला।" यह कहकर खन्नू अपने बिल में घुस गया।
"दुखी मत हो पूनी। उन्हें हम लोगों की जरुरत नहीं थी। इसलिए जाओ आराम करो।" मीनू यह बोलकर अपने घोसलें में घुस गयी।
पूनी मुँह बनाती हुई अकेले अपने बिल की तरफ चली गयी।
इधर कल्लू सबके साथ जब वहाँ पहुचाँ, जहाँ वह लल्ली को कुछ लोगों के साथ छोड़कर आया था तो उसे वहाँ पूरा सन्नाटा पसरा दिखा। वहाँ न लल्ली थी और न उन्हेँ पकड़ने वाले आदमी।
मंकू घबड़ाकर बोली," कल्लू, कहाँ गई मेरी लल्ली? वे आदमी कहाँ है, जो लल्ली को पकड़े थे? तुमने लल्ली को ठीक से देखा था कि नहीं।"
"मैंने ठीक से देखा था। वरना मैं तुम्हें बुलाने क्यों जाता? रुको, हम लोग लल्ली को अभी ढ़ूढ़ते है। ढ़ूढ़ने में शेरु हमारी मदद करेगा। वह बहादुर है, सूंघकर शिकारियों को ढ़ूढ़ लेगा।" चिंतित स्वर में कालू बोला।
मंकू घबड़ाकर रोने लगी, बोली,"अरे, मेरी लल्ली इस समय न जाने किस हाल में होगी? उसे जल्दी से ढ़ूढ़ो।"
शेरु बोला," मंकू, घबड़ाओं नहीं। हम लल्ली को ढ़ूढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे। तुम थोड़ी देर सब्र करो।"
शेरु वहाँ की जमीन सूंघने लगा। फिर मंकू और कल्लू से बोला,"तुम लोग यहीं मेरा इंतजार करो। मैं लल्ली को ढ़ूढ़कर आता हूँ।"
शेरु जाने लगा तो मंकू बोली, "तुम चलो। हम दोनों भी तुम्हारे पीछे आते हैं।
शेरु आगे-आगे जिधर जाता। पीछे से मंकू और कल्लू उसका पीछा करते। काफी दौड़धूप करने की बाद एक सूनसान सी झोपड़ी में लल्ली एक जाल में बँधी मिल गई। खिड़की से झांककर तीनों ने देखा कि बेहोश लल्ली में थोड़ी बहुत हरकत हो रही थी।
उसकी यह दशा देखकर मंकू खिड़की से अंदर कूदने जा रही थी, तभी कल्लू बोला," मंकू, सब्र करो। अभी किसी को आहट लग जायेगा तो हमारी मुसीबत बढ़ जायेगी। फिर हम लल्ली को बचा नहीं पायेंगे। चलो, हम सोचते है कि लल्ली को कैसे बचाये।"
शेरु बोला," अब सोचना क्या है? लल्ली को अब कोई बचा सकता है तो वह पूनी ही है। इस समय हमें पूनी की सख्त जरूरत है।"
कल्लू चीखकर बोला,"वह छटंकी सी चुहिया पूनी लल्ली को बचाने में क्या मदद कर सकती है जो हम नहीं कर सकते?"
"जब वह लल्ली का जाल काटेगी, तभी हम लल्ली को वहाँ से निकाल पायेंगे। जो पूनी करेगी, वह हम कभी भी कर नहीं सकते। पूनी साथ आती तो हमारा समय बर्बाद नहीं होता। कहीं वे आदमी लौट न आयें, इसलिए छोटे-बड़े का चक्कर छोड़ो और पूनी को ढ़ूढ़कर जल्दी लाओ। हमें लल्ली को बचाना है।" शेरु हड़बड़ाकर बोला।
कल्लू को पूनी की महत्ता अच्छी नहीं लगी पर मजबूरी थी इसलिए वह पूनी को ढ़ूढ़ने के लिए उड़ गया।
मंकू शेरु से बोली," यह कल्लू न जाने किस घमण्ड में है। इसने पूनी के छोटेपन की खिल्ली उड़ाते हुए उसे आने नहीं दिया। मैं जाती हूँ यदि पूनी को मनाना पड़ेगा तो मैं उसे मना लूंगी।"
मंकू भी पूनी को खोजने चल दी। मंकू को जब पूनी मिली तो उसने देखा कि पूनी कल्लू के साथ आने को तैयार नहीं थी।
वह कल्लू से कह रही थी," मैं तो छोटी सी हूँ। मैं तुम लोगों के लिए मददगार नहीं हो सकती।"
यह सुनकर मंकू पूनी से विनम्रतापूर्वक बोली," पूनी, यह कल्लू की भूल थी। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। सबका अपना अस्तित्व व महत्व है। तुम्हारा काम हम नहीं कर सकते। इसलिए जल्दी चलो और मेरी लल्ली का जाल काटकर उसे उन आदमियों के आने से पहले बचा लो, जो उसे जाल में बाँधें हुए है।"
मंकू के साथ चलने को तैयार पूनी बोली," चलो मंकू, जल्दी चलो। मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ। मुझे भी लल्ली की बहुत चिंता सता रही थी।"
तीनों जल्दी से वहाँ आये जहाँ लल्ली जाल में फँसी थी। पूनी जल्दी-जल्दी जाल काट दी। लल्ली होश में आ चुकी थी। जाल से अलग होते ही वह मंकू से चिपट गई, बोली," अब मैं आपको बताए बिना कहीँ नहीं जाऊंगी।"
मंकू लल्ली को पेट में चिपकाकर सबके साथ चलने लगी। कल्लू बोला,"पूनी, मुझे माफ कर दो। आज मैं समझ गया कि छोटे-बड़े से कोई मतलब नहीं होता है। सबकी महत्ता अलग-अलग है। जो गुण तुम्हारे में है, वह मुझमें भी हो, यह जरुरी नहीं है।"
"हाँ कल्लू, तुमने देखा कि लल्ली को ढ़ूढ़ने में सबकी अहमियत अलग अलग थी। तुमने लल्ली का पता बताया, शेरु ने लल्ली को ढ़ूढ़ा और पूनी ने जाल काटा। यदि हम एक साथ मिलकर काम नहीं करते तो हमारी लल्ली हमें कभी वापस नहीं मिलती।" मंकू लल्ली के मिल जाने के कारण खुश थी।
शेरु ने कहा," साथ मिलकर काम करने का यही महत्व है कि कठिन काम भी आसान हो जाता है। हमें खुशी है कि पूनी के कारण लल्ली हमें मिल गई।"
"सिर्फ पूनी के सहयोग से नहीं, बल्कि सबके सहयोग से आज लल्ली हमारे पास है।" मंकू आभार व्यक्त करते हुए बोली।
कल्लू कांव-कांव करके गाने लगा....
"होता नहीं है, कोई छोटा-बड़ा,
सबकी होती है, अपनी महत्ता।
मिलजुल कर करने से, देखो,
कठिन काम हो जाता है, पूरा।"
"तुम ठीक कह रही हो। इस तरह तो यह तुम दोनों के बीच आँखमिचौली हो जायेगी। बच्चों को इस तरह बिना अपनी माँ को बताए कहीँ जाना नहीं चाहिए। वरना वे किसी मुसीबत में फँस सकते है।"
"तुम ठीक कहती हो, पूनी बहन। मुझे जरा सी झपकी आ गई तो लल्ली को अपनी मनमानी करने का मौका मिल गया। बहुत चंचल है। बिलकुल डरती नहीं है। जबकि मैं ही डरती हूँ कि कहीं उसके साथ कोई अनर्थ न हो जाए।"
"हाँ मंकू, मुझे भी डर लग रहा है। वह चाहे जहाँ हो, सुरक्षित हो।" पूनी चिंता व्यक्त करते हुए बोली।
उसी समय कल्लू कौआ कांव-कांव करता हुआ मंकू के पास आया और हड़बड़ाकर बोला," मंकू, तुम यहाँ गप्पे मार रही हो, वहाँ तुम्हारी लल्ली को कुछ लोग अपने जाल में फँसाने की कोशिश कर रहे है।"
"जल्दी बताओ, मैं अभी अपनी लल्ली को छुड़ाकर लाती हूँ।" मंकू घबड़ाकर बोली।
कल्लू और मंकू जाने लगे तो पूनी बोली," मंकू, मैं भी तुम लोगों के साथ चलूगी। तुम लोग जल्दी जाओ, मैं पीछे से आती हूँ।"
कल्लू पीनू की खिल्ली उड़ाते हुए बोला,"तुम नन्हीं सी जान। तुम इसमें मंकू की मदद क्या कर पाओगी? चुपचाप जहाँ हो, वहीं पड़ी रहो। पीछे-पीछे आना मत।"
"अरे, मदद करुं या न करुं, पर साथ तो दे सकती हूँ।" यह कहकर पूनी भी दोनों का पीछा करने लगी।
पूनी को देखकर कल्लू जोर से चिल्लाया," कांव-कांव पूनी, मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम हमारा पीछा मत करो, पर तुम मानती क्यों नहीं हो?"
यह शोर सुनकर खुन्नू खरगोश अपने बिल से बाहर निकल कर बोला,"कल्लू ,क्यों कांव-कांव करके शोर मचा रहे हो? नींद में बाधा पड़ रही है। कहीं और जाकर चिल्लाओ।"
" मैं क्या करु? इस नन्हीं-पीद्दी सी पूनी के कारण चिल्ला रहा हूँ। यह किसी काम की तो है नहीं, पर बेकार में पीछे पड़ी है। कहती है लल्ली को खोजने में मदद करुंगी? अपनी औकात समझती नहीं।" कल्लू गुस्साकर बोला।
"क्या मैं तुम लोगों के साथ चल चलू? मैं उड़कर लल्ली को ढ़ूंढ़ निकालूंगी।" अपने घोसलें से झांकती हुई मैना बोली।
" तुम भी रहने दो। तुम कौन सी बड़ी हो? उड़कर ढ़ूढ़ने का काम तो मैं भी कर सकता हूँ। पर शेरु बलवान है। वह हमारे लिए ज्यादा मददगार होगा। मैं शेरु कुत्ता से अनुरोध करुंगा। वह दौड़कर शिकारियों का पीछा कर लेगा।" यह कहकर कल्लू शेरु को बुलाने गया। शेरु मंकू के मदद को तैयार हो गया। वह कल्लू के साथ मंकू के पास आ गया।
लल्ली को ढ़ूढ़ने के लिए मंकू, कल्लू और शेरु एकसाथ चल दिए।
बिल से निकलकर खुन्नू खरगोश पूनी से बोला,"पूनी, तुम क्यों अपना दिमाग खराब कर रही हो? जब इन्हें तुम्हारे पर भरोसा नहीं है, तब तुम चैन से आराम करो। मैं भी सोने जा रहा हूँ।"
"न जाने का मुझे मलाल नहीं है। दुख तो इस बात का है कि ये मुझे छोटा और बेकार समझते है। मैं कभी किसी की मदद कर सकती हूँ कि नहीं, यही सोच रही हूँ।" पूनी मायूस होकर बोली।
"तुम सोचो। मैं तो चला।" यह कहकर खन्नू अपने बिल में घुस गया।
"दुखी मत हो पूनी। उन्हें हम लोगों की जरुरत नहीं थी। इसलिए जाओ आराम करो।" मीनू यह बोलकर अपने घोसलें में घुस गयी।
पूनी मुँह बनाती हुई अकेले अपने बिल की तरफ चली गयी।
इधर कल्लू सबके साथ जब वहाँ पहुचाँ, जहाँ वह लल्ली को कुछ लोगों के साथ छोड़कर आया था तो उसे वहाँ पूरा सन्नाटा पसरा दिखा। वहाँ न लल्ली थी और न उन्हेँ पकड़ने वाले आदमी।
मंकू घबड़ाकर बोली," कल्लू, कहाँ गई मेरी लल्ली? वे आदमी कहाँ है, जो लल्ली को पकड़े थे? तुमने लल्ली को ठीक से देखा था कि नहीं।"
"मैंने ठीक से देखा था। वरना मैं तुम्हें बुलाने क्यों जाता? रुको, हम लोग लल्ली को अभी ढ़ूढ़ते है। ढ़ूढ़ने में शेरु हमारी मदद करेगा। वह बहादुर है, सूंघकर शिकारियों को ढ़ूढ़ लेगा।" चिंतित स्वर में कालू बोला।
मंकू घबड़ाकर रोने लगी, बोली,"अरे, मेरी लल्ली इस समय न जाने किस हाल में होगी? उसे जल्दी से ढ़ूढ़ो।"
शेरु बोला," मंकू, घबड़ाओं नहीं। हम लल्ली को ढ़ूढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे। तुम थोड़ी देर सब्र करो।"
शेरु वहाँ की जमीन सूंघने लगा। फिर मंकू और कल्लू से बोला,"तुम लोग यहीं मेरा इंतजार करो। मैं लल्ली को ढ़ूढ़कर आता हूँ।"
शेरु जाने लगा तो मंकू बोली, "तुम चलो। हम दोनों भी तुम्हारे पीछे आते हैं।
शेरु आगे-आगे जिधर जाता। पीछे से मंकू और कल्लू उसका पीछा करते। काफी दौड़धूप करने की बाद एक सूनसान सी झोपड़ी में लल्ली एक जाल में बँधी मिल गई। खिड़की से झांककर तीनों ने देखा कि बेहोश लल्ली में थोड़ी बहुत हरकत हो रही थी।
उसकी यह दशा देखकर मंकू खिड़की से अंदर कूदने जा रही थी, तभी कल्लू बोला," मंकू, सब्र करो। अभी किसी को आहट लग जायेगा तो हमारी मुसीबत बढ़ जायेगी। फिर हम लल्ली को बचा नहीं पायेंगे। चलो, हम सोचते है कि लल्ली को कैसे बचाये।"
शेरु बोला," अब सोचना क्या है? लल्ली को अब कोई बचा सकता है तो वह पूनी ही है। इस समय हमें पूनी की सख्त जरूरत है।"
कल्लू चीखकर बोला,"वह छटंकी सी चुहिया पूनी लल्ली को बचाने में क्या मदद कर सकती है जो हम नहीं कर सकते?"
"जब वह लल्ली का जाल काटेगी, तभी हम लल्ली को वहाँ से निकाल पायेंगे। जो पूनी करेगी, वह हम कभी भी कर नहीं सकते। पूनी साथ आती तो हमारा समय बर्बाद नहीं होता। कहीं वे आदमी लौट न आयें, इसलिए छोटे-बड़े का चक्कर छोड़ो और पूनी को ढ़ूढ़कर जल्दी लाओ। हमें लल्ली को बचाना है।" शेरु हड़बड़ाकर बोला।
कल्लू को पूनी की महत्ता अच्छी नहीं लगी पर मजबूरी थी इसलिए वह पूनी को ढ़ूढ़ने के लिए उड़ गया।
मंकू शेरु से बोली," यह कल्लू न जाने किस घमण्ड में है। इसने पूनी के छोटेपन की खिल्ली उड़ाते हुए उसे आने नहीं दिया। मैं जाती हूँ यदि पूनी को मनाना पड़ेगा तो मैं उसे मना लूंगी।"
मंकू भी पूनी को खोजने चल दी। मंकू को जब पूनी मिली तो उसने देखा कि पूनी कल्लू के साथ आने को तैयार नहीं थी।
वह कल्लू से कह रही थी," मैं तो छोटी सी हूँ। मैं तुम लोगों के लिए मददगार नहीं हो सकती।"
यह सुनकर मंकू पूनी से विनम्रतापूर्वक बोली," पूनी, यह कल्लू की भूल थी। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। सबका अपना अस्तित्व व महत्व है। तुम्हारा काम हम नहीं कर सकते। इसलिए जल्दी चलो और मेरी लल्ली का जाल काटकर उसे उन आदमियों के आने से पहले बचा लो, जो उसे जाल में बाँधें हुए है।"
मंकू के साथ चलने को तैयार पूनी बोली," चलो मंकू, जल्दी चलो। मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ। मुझे भी लल्ली की बहुत चिंता सता रही थी।"
तीनों जल्दी से वहाँ आये जहाँ लल्ली जाल में फँसी थी। पूनी जल्दी-जल्दी जाल काट दी। लल्ली होश में आ चुकी थी। जाल से अलग होते ही वह मंकू से चिपट गई, बोली," अब मैं आपको बताए बिना कहीँ नहीं जाऊंगी।"
मंकू लल्ली को पेट में चिपकाकर सबके साथ चलने लगी। कल्लू बोला,"पूनी, मुझे माफ कर दो। आज मैं समझ गया कि छोटे-बड़े से कोई मतलब नहीं होता है। सबकी महत्ता अलग-अलग है। जो गुण तुम्हारे में है, वह मुझमें भी हो, यह जरुरी नहीं है।"
"हाँ कल्लू, तुमने देखा कि लल्ली को ढ़ूढ़ने में सबकी अहमियत अलग अलग थी। तुमने लल्ली का पता बताया, शेरु ने लल्ली को ढ़ूढ़ा और पूनी ने जाल काटा। यदि हम एक साथ मिलकर काम नहीं करते तो हमारी लल्ली हमें कभी वापस नहीं मिलती।" मंकू लल्ली के मिल जाने के कारण खुश थी।
शेरु ने कहा," साथ मिलकर काम करने का यही महत्व है कि कठिन काम भी आसान हो जाता है। हमें खुशी है कि पूनी के कारण लल्ली हमें मिल गई।"
"सिर्फ पूनी के सहयोग से नहीं, बल्कि सबके सहयोग से आज लल्ली हमारे पास है।" मंकू आभार व्यक्त करते हुए बोली।
कल्लू कांव-कांव करके गाने लगा....
"होता नहीं है, कोई छोटा-बड़ा,
सबकी होती है, अपनी महत्ता।
मिलजुल कर करने से, देखो,
कठिन काम हो जाता है, पूरा।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें